Last Updated: Friday, January 10, 2014, 09:51

न्यूयार्क : हमारी आकाश गंगा `मिल्की वे` में पाए जाने वाले भारी स्थलीय उपग्रहों या `सुपर अर्थ` का वातावरण वैज्ञानिकों की उम्मीद से कहीं अधिक पृथ्वी के वातावरण से मेल खाता दिख रहा है। एक शोध में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि अत्यधिक द्रव्यमान का होने के बावजूद इन `सुपर अर्थ` के कोर एवं उपरी ठोस सतह के बीच में अधिकांश जल संग्रहित है तथा वहां समुद्र और धरातलीय सतह दोनों मौजूद हैं।
वाशिंगटन में अमेरिकी खगोलीय सोसायटी (एएएस) के सम्मेलन में कोवान ने कहा कि सुपर अर्थ पर हम 80 गुना अधिक जल छोड़ सकते हैं, इसके बावजूद इसकी सतह पृथ्वी की तरह ही बनी रहेगी। इन अत्यधिक भारी ग्रहों पर समुद्र का सतही दबाव बहुत अधिक होता है, जिसके कारण सारा जल कोर और ऊपरी ठोस सतह के बीच चला जाता है। कोवान ने इन ग्रहों पर उपस्थित इस समुद्र के सतही दबाव को गुरुत्वाकर्षण का समानुपातिक बताया।
शिकागो के नार्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय में शोध छात्र रह चुके निकोलस बी. कोवान ने कहा कि हमारा नया मॉडल इस बात को चुनौती देता है कि `सुपर अर्थ` हमारी पृथ्वी से काफी अलग होंगे, तथा हर `सुपर अर्थ` का अपना जलसंसार होगा जिसकी सतह पूरी तरह जल से ढकी होगी। शोध में कहा गया कि `सुपर अर्थ` की महाद्वीप निर्मित करने की क्षमता ग्रहीय जलवायु के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पृथ्वी जैसे उभरे हुए महाद्वीपों वाले ग्रह पर सतही तापमान के कारण कार्बन चक्र नियंत्रित रहता है जो संतुलित वातावरण निर्मित करने में सहायक है। (एजेंसी)
First Published: Friday, January 10, 2014, 09:51