Last Updated: Monday, November 11, 2013, 12:54

छत्तीसगढ़ के राजनीति का एजेंडा है -विकास ,जिसका अलाप-प्रलाप दोनो राजनैतिक दल कर रहे है। क्योंकि यह नवगठित राज्य है जिसके अधिकतर जिले नक्सलवाद से प्रभावित है इसलिए विकास बनाम नक्सलवाद में कौन सी पार्टी अपने मुद्दे को मतदाताओं के बीच रख पाती है ,ये भविष्य के गर्त में है। लेकिन इतना तो तय है कि पिछले दस वर्षों से सत्ता में काबिज भाजपा के एंटी-इनकंबेसी वोटो का ध्रुवीकरण यदि कांग्रेस पार्टी एकजुट होकर अपने पक्ष में कर लेती है तो सत्ता परिवर्तन हो सकता है।
कारण कि केवल 2 फीसदी के मतों के अंतर से ही भाजपा सत्तासीन है और कांग्रस पार्टी विकास के साथ-साथ नक्सलवाद के बढ़ते चरण को भी मुद्दा बनाकर सफल हो सकती है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जीरम घाटी का नक्सल हमला है जिसमें कांग्रेस के कई दिग्गज नेता शहीद हुए और उनके परिजनों को तीन विधानसभा क्षेत्रों से कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है जिनके जीतने की प्रबल संभावना भी है। ऐसी स्थिति में मुद्दों पर विचार किया जाए तो कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में भाजपा से सत्ता छिनकर सत्तासीन हो सकती है।
नक्सली समस्या का निदान, किसानों को कृषि हेतु अधिकाधिक सहायता एवं धान के बोनस में वृद्धि, अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में पुनः वृद्धि, सरकारी नौकरियों में अधिकाधिक पद संरचना कर युवा बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराना भी ऐसे मुद्दे होंगे जिन्हें दोनों पार्टियां इस चुनाव में भुनाना चाहेगी।
यूं तो कांग्रेस के पास बीजेपी को घेरने के लिए कई मुद्दे तो हैं लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता है कि महेंद्र कर्मा जैसे कई दिग्गज नेताओं को वह नक्सली हिंसा में खो चुकी है और उनके बगैर चुनाव लड़कर सत्ता हासिल करना टेढी खीर भी साबित हो सकती है।
First Published: Monday, November 11, 2013, 12:54