Last Updated: Sunday, December 8, 2013, 17:05

नई दिल्ली : भ्रष्टाचार विरोधी लहर के चलते अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में वही काम कर दिखाया, जो 1967 के लोकसभा चुनाव में जार्ज फना’डिस ने मुंबई में अपने पहले चुनाव में किया था। अपने समय के तेज तर्रार मजदूर यूनियन नेता फना’डिस ने कांग्रेस के कद्दावर नेता एस के पाटिल को हराया था। तब फर्नांडिस को ‘जाइंट किलर’ कहा गया।
उन्होंने पाटिल को दक्षिण मुंबई सीट पर हराया था। पाटिल के बारे में कहा जाता था कि वह बंबई के बेताज बादशाह हैं। तीन बार बंबई के मेयर रह चुके पाटिल जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के समय में केन्द्रीय मंत्री रहे। तीन बार सांसद रह चुके पाटिल को चौथी लोकसभा के लिए 1967 में हुए चुनाव में फर्नांडिस ने हराया। पाटिल ने तब अपने चुनाव अभियान में नारा दिया था-पाटिल फार प्रोग्रेस प्रास्पेरिटी एंड परफारमेंस। इसके जवाब में फर्नांडिस ने मराठी में नारा दिया ‘पाटिल पदलेच पाहिजेत, तुम्हे याना पादू शक्त’ यानी पाटिल को अवश्य ही हराया जाना चाहिए और आप ऐसा कर सकते हो।
इधर, दिल्ली में शीला दीक्षित ने विकास के नारे पर चुनाव प्रचार किया तो केजरीवाल भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दों पर लड़े। 45 वर्षीय केजरीवाल ने तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी 75 वर्षीय शीला को मात दी। आजाद भारत में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने वाली महिला का गौरव हासिल करने वाली शीला दिल्ली की तस्वीर बदलने के बाद एक समय घर घर का ब्रांड बन गयी थीं। आम आदमी पार्टी के केजरीवाल ने दिल्ली के चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर खिसका दिया। ये लक्ष्य उन्होंने अपनी पार्टी ‘आप’ के गठन के एक साल में हासिल किया। पूर्व आयकर अधिकारी केजरीवाल ने लोकपाल मुद्दे पर अन्ना हजारे के साथ आंदोलन किया था और वहीं से वह सुखिर्यों में आए। बाद में वह अन्ना से अलग हो गये और अपने संगठन इंडिया अगेन्स्ट करप्शन को राजनीतिक पार्टी ‘आप’ में तब्दील कर दिया। (एजेंसी)
First Published: Sunday, December 8, 2013, 17:05