Last Updated: Monday, November 11, 2013, 13:56
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार ने नया इतिहास रच दिया है या ये कहें कि उसने अपना ही पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। लगातार दो चुनावों में जीत दर्ज कर शिवराज सिंह चौहान जहां जीत की हैट्रिक लगाना चाहते हैं वहीं लगातार दो बार हार का सामना करने वाली कांग्रेस पार्टी इस बार हार की हैट्रिक बनाने की जद में है।
1956 में राज्य गठन के बाद 2003-2008 में भाजपा ने पहली बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था और अब वह लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा करने जा रही है। हालांकि पहला कार्यकाल तीन मुख्यमंत्रियों के साथ पूरा हुआ था लेकिन यह कार्यकाल शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही पूरा हुआ है और वे तीसरी पारी के लिए दांव लगा रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस जिस तरह से विभाजित दिख रही है, अगर वैसी ही चुनाव के दौरान भी रही तो शिवराज सिंह चौहान बिना किसी हिचक के जीत की हैट्रिक ठोकेंगे।
1956 में राज्य निर्माण के बाद से ही सूबे में दो राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है, कांग्रेस और भाजपा। अब 14वीं विधानसभा का गठन होने जा रहा है। ज़्यादातर समय सत्ता कांग्रेस के हाथ में ही रही है। भाजपा को पहला मौक़ा मिला था 1977 में आपातकाल के बाद, दूसरी बार 1990 में, जब केंद्र की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा ख़त्म होने का सिलसिला शुरू हुआ। तीसरी बार 2003 में। फिर यह पारी 2008 में भी जारी रही। पहली दो सरकारें अपना कार्यकाल पूरा न कर सकीं। 1977 की जनता सरकार 1980 तक ही चल सकी। दूसरी बार 1990 में जो बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद बर्खास्त कर दी गई। दिग्विजय सिंह के लगातार दो कार्यकाल के बाद सड़क-पानी-बिजली के मुद्दे पर कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुई।
दिसंबर 2003 में जीत के बाद उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं लेकिन एक पुराने मामले के चलते उन्हें अगस्त 2004 में इस्तीफ़ा देना पड़ा और बाबूलाल गौर को पद पर बिठाया गया लेकिन वे एक साल से कुछ ही अधिक समय पद पर रह सके और नवंबर 2005 में उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान को शपथ दिलाई गई। तब से वे सत्ता को संभाले हुए हैं। शिव के राज मध्यप्रदेश को सरप्लस (मांग से अधिक बिजली उत्पादन करने वाला) बिजली वाला राज्य कहना शुरु कर दिया है।
इसके अलावा उनकी ` बेटी बचाओ` योजना भी कारगर रही है। पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश की सकल घरेलू आय औसत से अच्छी रही है। इन सब की वजह से शिवराज का अपना कद इतना बढ़ गया है कि उनको चुनौती देने वाला कोई नेता इस समय प्रदेश में दिखाई नहीं देता। अगर शिवराज तीसरी बार चुनकर आते हैं तो उनकी तुलना नरेंद्र मोदी से ही की जाएगी।
एक जमाने में मध्यप्रदेश दिग्गज कांग्रेसियों का गढ़ रहा है। डीपी मिश्रा से लेकर अर्जुन सिंह तक और प्रकाश चंद सेठी से लेकर माधवराव सिंधिया तक। वैसे विद्याचरण शुक्ल से लेकर मोतीलाल वोरा भी अविभाजित मध्यप्रदेश के नेता रहे लेकिन छत्तीसगढ़ बन जाने के बाद उनकी गिनती मध्यप्रदेश के नेताओं में नहीं होती। इस समय केंद्र की राजनीति में प्रदेश के सबसे बड़े कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ही दिखते हैं। नई पीढ़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया। ये सब बड़े नेता इस समय अलग-अलग ध्रुवों की तरह दिख रहे हैं। अगर वे किसी जादुई प्रभाव में एकजुट हो सके तो ही शिवराज सिंह चौहान को चुनौती दे सकेंगे। वरना मध्यप्रदेश में लगातार 15 साल सत्ता से बाहर रहने का एक नया रिकॉर्ड कांग्रेस बनाएगी।
First Published: Monday, November 11, 2013, 13:56