मध्य प्रदेश का महाभारत, शिवराज बनाम `महाराज`

मध्य प्रदेश का महाभारत, शिवराज बनाम `महाराज`निहारिका माहेश्वरी

हिंदुस्तान के दिल मध्यप्रदेश में 14वें विधानसभा के लिए होने वाले मतदान की लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है जहां रणबांकुरे तैयार हैं वहीं क्षत्रप अपने इलाके में घिरे हैं। इस सब के बीच सत्ता पर काबिज़ होने की जद्दोजहद शुरू हो चुकी है। दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों की बात करें तो बीजेपी हैट्रिक लगाने को बेकरार है वहीं काग्रेस 10 साल बाद वापसी के लिए बैचेन है। विधानसभा चुनाव के मतदान में कुछ ही समय बता है लेकिन दोनों पार्टियों के भीतर असंतोष, बगावत और विरोध अपने चरम पर है। बीजेपी जहां स्थानीय मुद्दों से दूर संगठनिक विचारधारा से दूर व्यक्ति विशेष की राजनीति कर रही है वहीं इस निर्णायक लड़ाई के लिए कांग्रेस अपने अगुआ पेश नहीं कर पाई है। टिकट वितरण में दोनों ही पार्टियों ने तमाम फीडबैक,सर्वे और मीडिया रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया है।

बात अगर बीजेपी की करें तो शिवराज सिंह का व्यक्तित्व इतना बड़ा हो गया है कि पार्टी के सभी नेता छोटे हो गए हैं। कैडरबेस पार्टी में दल से बड़ा व्यक्ति हो गया है। प्रदेश में मोदी की लहर और शिवराज की लोकप्रियता का दावा करने वाली पार्टी अपनी अनेक योजनाओं का लाभ आम आदमी तक नहीं पहुंचा पाई। शहरी इलाकों में विकास का जाल बुना लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कमल नहीं खिला। केंद्र के कुशासन को मुद्दा बनाने वाली बीजेपी ज़मीनी हकीकत से थोड़ी दूर है। भ्रष्टाचार पर सड़क से संसद तक विरोध तो किया लेकिन अपने ही राज्य में लोकायुक्त के छापे, केंद्रीय योजनाओं में भ्रष्टाचार ,ब्याज़ मुक्त कर देने के बाद भी किसानों की दयनीय स्थिति, नेताओं की बेलगाम बयानबाज़ी , रघुराम राजन समिति रिपोर्ट में शिवराज कहीं पीछे जाते दिख रहे हैं। 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव परिणाम में 172 से सीधे 143 सीटों पर आना,वोट शेयर में गिरावट इसका सीधा उदाहरण है कि बीजेपी जीती तो लेकिन जनता के मन तक नहीं पहुंच पाई और इसका कही ना कही लाभ कांग्रेस को उसकी निष्क्रियता के बावजूद मिल गया। जर्जर स्थिति के बावजूद भी कांग्रेस पिछले 10 सालों से देश में शासन कर रही है।

लचर हालात में भी कांग्रेस बीजेपी से उत्तराखंड, कर्नाटक और हिमाचल की सत्ता छीन चुकी है। चुनावी संभावनाओं की बात करें तो मध्यप्रदेश में बीते 10 सालों में चौहान की लोकप्रियता बढ़ी है जिसका लाभ पार्टी को तीसरी बार मिल सकता है लेकिन करीब दर्जन भर मंत्रियों पर आधे से ज्यादा विधायकों के खिलाफ जनता में रोष है। हालात य़ह हैं कि अपने आप को जनता के सेवक कहने वाले शिवराज को विपक्ष भ्रष्ट सरकार का कैप्टन कहता है। वो कैप्टन जो इस चुनावी जंग में एंटी एनकम्बेंसी से जूझ रहा है।

अब अगर बात कांग्रेस की करें तो 2003, 2008 में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था बावजूद इसके सीट 38 से 71 हुई। सत्ता में वापसी के लिए बेकरार राज्य कांग्रेस का चेहरा कौन होगा लेकिन यह अभी साप नहीं। अगुआ की कमी और रणनीतिक विफलता से जूझ रही कांग्रेस दिल्ली में बैठे कुछ चुनिंदा नेताओं की कठपुतली बनती दिख रही है। शिवराज सरकार के भ्रष्टाचार के कारण लोगों में नाराज़गी है जिसका राजनैतिक लाभ कांग्रेस उठा सकती है लेकिन बढ़ती आतंरिक गुटबाज़ी , महाराजा के आड़े आ चुके राजा, कुछ केंद्रीय मंत्रियों का व्यक्तिगत फायदा पार्टी पर भारी पड़ गया है। कोटा परमिट, गणेश परिक्रमा, 2 गुटों की सक्रियता से जूझ रही कांग्रेस एक कुशल चेहरे के अभाव में दिशाहीन नज़र आ रही है। या तो हारेगी या अपनों को ही हरा देगी। राहुल गांधी जानते हैं कि अगर शिवराज की बढ़ती लोकप्रियता ,कद, जनाधार को चुनौती देनी है तो बड़ा नाम देना ही होगा और इसकी स्क्रिप्टिंग भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रमोट कर प्रतीकात्मक ‘पावर’ यानी ऊर्जा मंत्रालय और इर चुनाव प्रचार अभियान समिति की कमान सौंपकर कर ली गई थी।

बीजेपी को जहां एक चेहरा होने का फायदा है, उसे ध्वस्त करने के लिए 35 फीसदी युवाओं को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने युवा नेता ज्योतिरादित्य पर दांव लगाने का मन अंदर ही अंदर बना लिया है। उम्मीद की जा रही है कि युवा और बेदाग छवि वाले सिंधिया को लाने से आंतरिक दरारों से जूझ रही कांग्रेस में नई ऊर्जा आएगी और वो बीजेपी की नाकामयाबियों का लाभ उठाकर बीजेपी को सीधी टक्कर देगी लेकिन टिकट वितरण में राहुल गांधी के फॉर्मूले, यूथ सर्वे , सिंधिया के चहेतो को टिकट ना देने से एक बार फिर बहस शुरू हो गई है कि मध्य की इस सियासी जंग में सिंधिया अपने आप को कितना स्थापित और साबित कर पाते हैं। बहरहाल शिवराज और महाराज दोनों को ही पता है कि लोकतंत्र के इस पर्व और सोशल मीडिया के इस दौर में वो ही सिंहासन पर काबिज़ होगा जो जन के मन तक जाएगा। ऐसे में क्रांति की दहलीज़ पर खड़े मतदाता को आज आर्थिक सामाजिक बदलाव चाहिए जो उसे देने में सक्षम होगा वो ही मध्यप्रदेश का `राजा` होगा










First Published: Monday, November 11, 2013, 16:24

comments powered by Disqus

पिछले चुनाव के नतीजे

  • दिल्ली
  • (70/70) सीट
  • delhi
  • पार्टी
  • कांग्रेस
  • बीजेपी
  • बीएसपी
  • अन्य
  • सीट
  • 43
  • 23
  • 2
  • 2

चुनावी कार्यक्रम

  • दिल्ली
  • 70 सीट
  • मतदान
  • मतगणना
  • Dec 4
  • Dec 8

सीएम प्रोफाइल

aशीला दीक्षित
aडॉ. हर्षवर्धन
क्या रमन सिंह छत्तीसगढ़ में तीसरी बार सत्ता पर काबिज होंगे?