राजस्थान सरकार के गठन में युवा मतदाताओं की भूमिका अहम

राजस्थान सरकार के गठन में युवा मतदाताओं की भूमिका अहम राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालने वाले युवा मतदाताओं की भूमिका अहम होगी। वैसे भी इस बार युवा वोटरों की तादाद काफी बढ़ी है। ऐसे में इनकी भूमिका काफी खास होगी। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में युवाओं को लेकर खासे प्रस्‍ताव हैं ताकि उन्‍हें आकर्षित किया जा सके।

सूबे में पिछले विधानसभा चुनाव चुनाव के समय जिन लोगों की उम्र 18 साल थी, वे अब मतदाता बन गए हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में पहली बार अपने मतदान का प्रयोग करेंगे। साल 2008 के चुनाव के बाद से आगामी विधानसभा चुनाव तक प्रदेश में 45 लाख नए मतदाता बने हैं, जिनका सरकार बनाने में अहम योगदान रहने वाला है। इनमें करीब साढे पंद्रह लाख मतदाताओं की उम्र 18.19 वर्ष है। नए मतदाताओं में चुनावों चुनावों के लेकर उत्साह है। यदि उनका उत्साह इसी प्रकार बरकरार रहा, तो प्रदेश भर में नए बने करीब साढ़े पन्द्रह लाख मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित करेंगे। अब देखना यह है कि ये मतदाता किसको चुनते है। इस बार के चुनाव में राजस्थान में 18 से 20 वर्ष की उम्र वाले पन्द्रह लाख नये मतदाता जुड़े हैं। इस हिसाब से 200 विधानसभा क्षेत्रों में औसतन 7500 मतदाता प्रति क्षेत्र आते हैं।

2008 के विधानसभा चुनाव राजस्थान में 53 ऐसे विधानसभा क्षेत्र थे, जहां हार-जीत का फैसला 4000 से कम मतों के अन्तर से हुआ था। इनमें 14 क्षेत्रों में तो हार-जीत में एक हजार से कम मतों का अंतर रहा था, जबकि 13 क्षेत्रों में 2000 मतों, 13 में 3000 मतों और 13 में ही 4000 मतों के अंतर से हार-जीत हुई थी। गत विधानसभा चुनाव में नाथद्वारा से डा. सीपी जोशी तो मात्र एक वोट से चुनाव हार गए थे।

इसी तरह लक्ष्मणगढ़ में 34, नसीराबाद में 71, चौमू में 135, पोकरण में 339, मंडावा में 405, हवामहल में 580, बेगू में 643, अजमेर उत्तर में 688, भीम में 730, कोटपूतली में 893, राजगढ में 937, लाडपुरा 750 और कुशलगढ विधानसभा क्षेत्र में 957 मतों के मामूली अन्तर से हार-जीत का फैसला हुआ था। पिछले विधानसभा चुनाव में 1000 से कम वोटों के अंतर से जीतने वाले विधायकों में भाजपा के 4 और कांग्रेस के 6 थे। 1000 से तीन हजार वोटों के अन्तर से भाजपा के 13 और कांग्रेस के 7 उम्मीदवार जीते। तीन से पांच हजार वोटों के अन्तर से भाजपा के 10 और कांग्रेस के 5 तथा पांच से दस हजार के अन्तर में कांग्रेस के 29 और भाजपा के 16 उम्मीदवार ही जीते थे। पिछले चुनाव में 118 सीटें 10 हजार से कम और 66 सीटें पांच हजार से कम वोटों के अन्तर में सिमट गई थी। दस हजार से ज्यादा वोटों के अन्तर से जीतने वाले विधायक 82 है। इनमें 36 विधायक ऐसे थे, जो 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट ले सके। इनमें कांग्रेस के 19, भाजपा के 16 और एक निर्दलीय थे।

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में डेढ प्रतिशत से कम वोट के अंतर से भारतीय जनता पार्टी से सत्ता छीनने वाली कांग्रेस को इस बार अपना सिंहासन बचाने के लिये कड़ी मेहनत करनी होगी। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी एक दिसंबर को होने वाले चुनाव में इन्हीं दोनों दलों के बीच सीधी टक्कर होगी तथा एक बार फिर कांग्रेस की ओर से अशोक गहलोत और भाजपा की ओर से वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। दोनों दलों की ओर से मुख्य प्रचारक राहुल गांधी तथा नरेंद्र मोदी रहे। राज्य की जनता पिछले कुछ समय से एक बार कांग्रेस तो अगलीबार भाजपा को सत्ता सौंपती आई है। कांग्रेस को महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर लोंगों की नाराजगी के अलावा सत्ता विरोधी रुझान का भी सामना करना पडेगा। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर हुई थी और कांग्रेस मात्र 1.32 प्रतिशत अधिक मत हासिल कर सत्ता में काबिज हुई थी।

कांग्रेस को कुल 36.92 प्रतिशत मत मिले थे और उसे 96 सीटें हासिल हुई थी, जो स्पष्ट बहुमत से पांच कम थी। भाजपा को 35.60 प्रतिशत मत तथा 78 सीटें मिली थी। इन दोनों दलों के बाद माकपा को 9.22 प्रतिशत तथा बहुजन समाज पार्टी को 7.66 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन माकपा को तीन और बसपा को छह सीटें मिली थी। राजस्थान विधानसभा के चुनाव 2008 में महज छह लाख 13 हजार 218 वोटरों ने भाजपा को सत्ता से बाहर करके कांग्रेस को सत्तासीन कर दिया था। इन हालातों में युवाओं पर सभी राजनीतिक दलों की पैनी नजर है। उनका रुझान क्‍या होता है यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा।
First Published: Monday, November 11, 2013, 14:28

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aशीला दीक्षित
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