दिमागी बुखार से इस साल मौतों का आंकड़ा 623 तक पहुंचा

दिमागी बुखार से इस साल मौतों का आंकड़ा 623 तक पहुंचा

गोरखपुर : रोकथाम के तमाम प्रयासों के बावजूद पूर्वी उत्तर प्रदेश में हर साल किसी महामारी की तरह फैलने वाले इंसेफेलाइटिस से इस वर्ष अब तक कम से कम 623 मरीजों की मृत्यु हो चुकी है। विशेषज्ञों की नजर में यह भयावह स्थिति इस बीमारी के खिलाफ कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं होने और राज्य तथा केन्द्र सरकार के लापरवाहीपूर्ण रवैये का नतीजा है।

गोरखपुर मण्डल के अपर स्वास्थ्य निदेशक कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल कालेज तथा गोरखपुर एवं बस्ती मण्डल के सरकारी अस्पतालों में इस साल अब तक भर्ती हुए इंसेफेलाइटिस के 2978 बच्चों में से 623 की मृत्यु हो चुकी है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 से अब तक इस बीमारी से मृत लोगों की यह तीसरी सबसे बड़ी संख्या है। इसमें निजी चिकित्सालयों में इस बीमारी से मरे मरीजों की तादाद शामिल नहीं है। आमतौर पर बच्चों को होने वाली यह बीमारी तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रही है। विशेषज्ञ इसके कई कारण गिनाते हैं।

पूर्वाचल में इंसेफेलाइटिस के खिलाफ मुहिम चला रहे वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर आर. एन. सिंह ने ‘भाषा’ को बताया कि सरकार मच्छरजनित जापानी इंसेफेलाइटिस के खात्मे पर ध्यान दे रही है जबकि 98 प्रतिशत मरीज जलजनित इंटेरो वायरल इंसेफेलाइटिस से ग्रस्त होते हैं। उसे खत्म करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2005 में उनके प्रयासों से सरकार ने गोरखपुर तथा बस्ती मण्डलों में बच्चों को एक टीका लगवाया गया था जिसके बाद मच्छरजनित जापानी इंसेफेलाइटिस के मामले बहुत कम हो गये। बहरहाल, इंसेफेलाइटिस से अब भी उसी संख्या में मौतें हो रही हैं। ये मौतें इंटेरो वायरल इंसेफेलाइटिस की वजह से हो रही हैं।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इंसेफेलाइटिस की चपेट में आकर मरने वाले बच्चों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आयी है। पूर्वाचल में इंसेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के संयोजक सिंह ने बताया कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2011 में एक मंत्रिसमूह बनाया था जिसने इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने को कहा था लेकिन वह कार्यक्रम आज तक लागू नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि सरकार के पास इंसेफेलाइटिस उन्मूलन के लिये कोई दूरगामी सोच नहीं है। वह इस बीमारी के इलाज पर ध्यान दे रही है, रोकथाम पर नहीं। जलजनित इंसेफेलाइटिस मुख्यत: गंदे पानी और कुपोषण के कारण होता है लेकिन सरकार इस जड़ को खत्म करने के प्रति ठोस कदम नहीं उठा रही है।

सिंह ने बताया कि गत सितम्बर में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने गोरखपुर में आयोजित जनसुनवाई में पाया था कि इंसेफेलाइटिस के लिये मुख्यत: दूषित पानी और कुपोषण जिम्मेदार हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य और केन्द्र सरकारें इंसेफेलाइटिस के मुद्दे पर सिर्फ राजनीति कर रही हैं। इसके अलावा सरकारें रोग के भयंकर रूप अख्तियार करने के बाद ही इलाज और रोकथाम का काम शुरू करती हैं, नतीजतन लोग इस बीमारी से मरते रहते हैं।

ज्ञातव्य है कि देश के 17 राज्य इंसेफेलाइटिस से प्रभावित हैं जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में इसका सबसे ज्यादा असर है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महराजगंज, कुशीनगर, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर इस बीमारी से अतिप्रभावित जिलों में शुमार किये जाते हैं। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, December 10, 2013, 14:17

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