संयुक्त राष्ट्र ने बदायूं रेप-मर्डर की निंदा की

संयुक्त राष्ट्र ने बदायूं रेप-मर्डर की निंदा की

संयुक्त राष्ट्र ने बदायूं रेप-मर्डर की निंदा कीसंयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र ने उत्तरप्रदेश के बदायूं जिले में दो दलित लड़कियों के ‘‘बर्बर’’ सामूहिक बलात्कार और उनकी हत्या की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और पूरे भारत में महिलाओं एवं लड़कियों के खिलाफ हिंसा पर अंकुश लगाने का आह्वान किया है।

भारत में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की स्थानीय समन्वयक लिज ग्रांडे ने कहा, ‘‘दो किशोरियों के परिवारों को और निम्न जातीय समुदायों की तमाम महिलाओं और लड़कियों को इंसाफ मिलना चाहिए जिन्हें ग्रामीण भारत में निशाना बनाया गया और जिनका बलात्कार किया गया।’’

ग्रांडे ने कहा, ‘‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोई महिला मुद्दा नहीं है। यह मानवाधिकार का मुद्दा है।’’ संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने भी भारत से ले कर पाकिस्तान और कैलीफोर्निया से ले कर नाइजीरिया में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की हाल की घटनाओं को ‘‘स्तब्धकारी’’ करार दिया था।

बान ने पिछले हफ्ते टोरंटो में पत्रकारों से कहा था, ‘‘हाल के दिनों में, हमने दीगर पाकिस्तान से ले कर भारत और कैलिफोर्निया से ले कर नाइजीरिया तक त्रासदीपूर्ण घटनाएं देखीं जिनमें महिलाओं को स्तब्धकारी हिंसा का निशाना बनाया गया।’’

भारत में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा रोकना विश्व निकाय का एक बुनियादी लक्ष्य है। उसने देश भर के लोगों को यह सुनिश्चित करने में समर्थन का आश्वासन दिया कि हर जगह हर एक महिला और हर एक लड़की सुरक्षा एवं इज्जत से रह सके। भारत में ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ की प्रतिनिधि रेबेका टैवारेज ने कहा, ‘‘हर एक लड़की और महिला सुरक्षित रहने में सक्षम हो, सुरक्षित महसूस करे और हिंसा से मुक्त पले-बढ़े।’’

टैवारेज ने कहा, ‘‘जो ढेर सारी कार्रवाइयां की जानी चाहिए उनमें संयुक्त राष्ट्र आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 को द्रुत गति से लागू करना है और इनमें ऐसे एक एकल संकट केन्द्र की स्थापना शामिल है (जहां सभी संकट हल हो जाए और कहीं और नहीं जाना पड़े)।’’ ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ के उद्देश्यों में दुनिया भर में यौनिक समानता लाने और महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के प्रयासों में मदद करना है।

ग्रांडे ने रेखांकित किया कि दिसंबर 2013 में दिल्ली में एक किशोरी के बर्बर सामूहिक बलात्कार ओैर हत्या के बाद अनेक ‘‘प्रगतिशील सुधार एवं बदलाव’’ किए गए। इसके साथ ही, उन्होंने लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों को लागू करने की जरूरत पर भी जोर दिया।

भारत में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की प्रवक्ता ने कहा, ‘‘लेकिन कानून बनाना समाधान का बस एक हिस्सा है - उनका क्रियान्वयन भी मायने रखता है और साथ ही मानसिकता भी बदलना।’’ ग्रांडे ने कहा, ‘‘महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा अपरिहार्य नहीं है, यह रोकी जा सकती है। 18 साल से कम उम्र की पीड़िताओं के लिए ‘यौनिक अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम’ (पॉस्को), 2012 का अनवरत क्रियान्वयन और विशेष अदालतों की स्थापना एवं बालोन्मुखी प्रक्रियाएं भी प्रमुख प्राथमिकताएं हैं।’’

उत्तरप्रदेश में लड़कियों के खिलाफ हिंसा की नवीनतम बर्बर घटना उजागर करती है कि शौचालय नहीं होने के चलते पूरे भारत में लड़कियों और महिलाओं को खतरा है। भारत में यूनिसेफ की प्रतिनिधि लुइ जार्जेज आरसेनो ने कहा कि भारत में ग्रामीण आबादी का तकरीबन 65 प्रतिशत खुले में शौच करता है और महिलाओं तथा लड़कियों से उपेक्षा की जाती है कि वे शौच के लिए रात में जाएं। (एजेंसी)

First Published: Monday, June 2, 2014, 14:35

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