Last Updated: Friday, April 11, 2014, 21:43
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्सइसमें कोई शक नहीं है कि संजय बारू की किताब `Accidental Prime Minister : The making and Unmaking on Manmohan Singh` में जो खुलासे हुए है उससे ना सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की तरफ से लंबे वक्त से लगाए जा रहे आरोपों को बल मिला है बल्कि इन खुलासों की वजह से कांग्रेस के लिए मुश्किलें भी बढ़ती दिख रही हैं। विरोधियों को एक और मौका मिला है कि वो कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर दें।
मनमोहन सिंह के बारे में विपक्ष लगातार दस साल तक ये आरोप लगाता रहा कि सत्ता की चाभी सोनिया के हाथ में है और ये देश के हित में नहीं है कि प्रधानमंत्री पद पर ऐसा व्यक्ति हो जो फैसले रखने का अधिकार तक नहीं रखता हो या जो अपने अधिकार दूसरे `पावर सेंटर` के हाथ में सौंप दे, हालांकि विपक्ष की तरफ से लगाए जा रहे आरोपों का कई बार मनमोहन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके खुद खंडन किया है लेकिन उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू कि किताब ने मनमोहन सिंह की उन सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया है जिसमें वो कहते रहे कि किसी के हाथों की `कठपुतली` नहीं हैं।
संजय बारू ने बहुत ही बेबाकी से इस बात को सामने रखा है कि कैबिनेट की बैठकों में भी मनमोहन सिंह के सुझावों को खारिज किया जाता रहा। एक बात अब साफ हो गई है कि बीजेपी की तरफ से लगाए जा रहे आरोप सही थे। मनमोहन सिंह एक कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर देश चलाते रहे जिसकी वजह से देश में एक के बाद एक घोटाले होते रहे, देश की तमाम प्राकृतिक संपदा की लूट होती रही फिर चाहे वो कोल घोटाला हो या फिर स्पेक्ट्रम या फिर 2 जी घोटाला ही क्यों ना हो, खुद मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अब इसकी पुष्टि कर दी है।
संजय बारू का मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहना ही इस बात की पुष्टि करता है कि मनमोहन सिंह को सिर्फ कुर्सी प्यारी थी, उन्हें ना तो देश की चिंता थी ना ही अपनी सार्वजनिक छवि की। इसके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हर तरह के समझौते करते रहे, अपने सहयोगी मंत्रियों, अधिकारियों के साथ समझौता किया। यूपीए चेयरपर्सन के सामने घुटने टेके और इसके पीछे उनका एक ही मकसद था कि वो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहें। फिर चाहे उन्हें रिमोट कंट्रोल से ही क्यों ना संचालित किया जाता रहे, मनमोहन सिंह ने लगभग दस साल तक इसी रूप में काम किया है।
हालांकि इस किताब की टाइमिंग पर जरूर सवाल उठाए जा सकते हैं कि ऐन चुनाव के दौरान ही ये किताब क्यों रिलीज हुई। क्या इसमें उनके विरोधियों का हाथ है फिर चाहे वो पार्टी के अंदर ही क्यों ना हों लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि ये खुलासा कांग्रेस पार्टी की तरफ से नहीं हुआ है, ये खुलासा पीएम के पूर्व मीडिया एडवायजर संजय बारू की तरफ से हुआ है जो देश के वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं। खासतौर से आर्थिक जगत के जाने-माने नाम हैं, ऐसे में उनकी बातों को सियासी चश्मे से देखना उचित नहीं होगा और शायद इस किताब की क्रेडिबिलिटी पर शक जाहिर करना भी गलत होगा।
मनमोहनसिंह की घुटना टेकू नीति के चलते वो भले ही दस साल तक प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर बने रहने में कामयाब रहे हों लेकिन देश और देश की 120 करोड़ जनता को विरासत के तौर पर जो भ्रष्टतंत्र और भ्रष्टाचार का बुके मिल रहा है उससे निजात पाने में सालों लगेंगे।
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First Published: Friday, April 11, 2014, 21:41