सीबीआई के गठन पर नई बहस

सीबीआई के गठन पर नई बहस

सीबीआई के गठन पर नई बहसवासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स


देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) के गठन को असंवैधानिक करार देने वाले गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर देश की एपेक्स कोर्ट ने रोक लगा दी है, लेकिन इससे ये नहीं कहा जा सकता कि सीबीआई के गठन पर खड़ा हुआ विवाद थम गया है। दरअसल अपनी कार्यशैली की वजह से ही हमेशा से विवादों में रही इस जांच एजेंसी पर अब नई बहस शुरू हो गई है।

देश के ज्यादातर गैर कांग्रेसी राजनैतिक दल एक अरसे से सीबीआई की निष्पक्षता और उसकी कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ही कोलगेट में सीबीआई की हीलाहवाली से नाराज होकर उसे पिंजरे में बंद तोता तक कह डाला था। इतना ही नहीं सीबीआई को कभी Compromise bureau of investigation तो कभी Congress bureau of investigation जैसे नाम भी मिलते रहे हैं।

अब तक कॉन्स्टीट्यूशनल बॉडी मानी जाने वाली सीबीआई पर लगातार सत्तारुढ दल के दवाब में काम करने के आरोप भी लगते रहे हैं। ऐसे में गौहाटी हाईकोर्ट का फैसला ऐसे तमाम राजनैतिक दलों और संगठनों के लिए स्वागत योग्य था, जो अलग-अलग कारणों से और अलग-अलग समय पर सीबीआई का दंश झेलते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही संवैधानिक व्यवस्था के तहत गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी हो, लेकिन सीबीआई के गठन और औचित्य पर शुरू हुई बहस लंबे समय तक चल सकती है।

दरअसल गौहाटी हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई के गठन पर ही सवाल खड़े कर दिए थे। गौहाटी हाईकोर्ट ने कहा था कि सीबीआई के गठन संबंधी गृह मंत्रालय का प्रस्ताव न तो केन्द्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही राष्ट्रपति की ओर से स्वीकृत कोई कार्यकारी निर्देश। ऐसे में इस प्रस्ताव को विभागीय निर्देश ही माना जा सकता है। गौहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि मामला दर्ज करने, आरोपियों को गिरफ्तार करने, तलाशी लेने जैसी सीबीआई की कार्रवाई संविधान की धारा 21 का उल्लंघन है और ये असंवैधानिक करार दिए जाने लायक है।

सरकार ने गौहाटी हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिका दाखिल की और सुनवाई के दौरान सीबीआई को बचाने के लिए मुख्य न्यायाधीश के सामने कई दलीलें दीं। अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती ने कहा कि वर्तमान में सीबीआई के 9 हज़ार मामलों का ट्रायल चल रहा है, वहीं करीब 1000 मामले ऐसे हैं जिसकी सीबीआई जांच कर रही है । वाहनवती ने दलील दी कि हाईकोर्ट के फैसले का इन सभी मामलों पर असर पड़ेगा, इसके साथ ही पूरी कानूनी मशीनरी भी प्रभावित होगी।

वाहनवती ने अपनी दलील में कहा कि सीबीआई का गठन Government of India (Transaction of Business) Rules के तहत किया गया है और महज इसीलिए सीबीआई को असंवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसके गठन के लिए लाए गए प्रस्ताव में DSPE एक्ट 1946 का जिक्र नहीं किया गया है, और इसे राष्ट्रपति से स्वीकृति नहीं मिली है।

सीबीआई की संवैधानिकता को लेकर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी 2010 में संसद में प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर चुके हैं । अपने इस बिल में मनीष तिवारी ने सीबीआई को वैधानिक दर्जा दिए जाने को जरूरी बताया था। इस बिल में मनीष तिवारी कह चुके हैं कि सीबीआई का गठन का गैरकानूनी है और इसीलिए इसे वैधानिक दर्जा दिया जाना जरूरी है लेकिन वर्तमान में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे मनीष तिवारी का कहना है कि वो सरकार के फैसलों से बंधे हुए हैं।
वैसे तो मामले की अगली सुनवाई अब 6 दिसंबर को होगी लेकिन सत्ता और सीबीआई दोनों को अपनी कार्यशैली और अपनी छवि को और पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की कोशिश करनी होगी।

फिलहाल देश के कई बड़े नेताओं के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है या फिर लंबित है। इनमें लालकृष्ण आडवाणी, मायावती, मुलायम सिंह यादव सरीखे दिग्गज नेता भी शामिल हैं। इनमें 1984 सिख विरोधी दंगों के आरोपी सज्जन कुमार भी हैं जिन्होंने गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले को आधार बनाकर अपने खिलाफ की जा रही जांच को गैरकानूनी करार देने की मांग भी कर डाली है। इसके अलावा 2जी घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला जैसे कई अहम मामले हैं जिसकी जांच सीबीआई कर रही है और इसमें कई दिग्गजों की किस्मत का फैसला होना है। देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा चुके लालू यादव तो इन दिनों सीबीआई जांच के आधार पर ही जेल की हवा खा रहे हैं।

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First Published: Sunday, November 10, 2013, 13:34

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