Last Updated: Sunday, November 10, 2013, 21:03
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स`मंदिर मस्जिद बैर कराते..
मेल कराती मधुशाला`
ये लाइनें हिंदी के मशहूर साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन की कविता मधुशाला से हैं और ये इस बात को ताकीद करती रही हैं कि मधुशाला में जाकर मजहब का भेदभाव मिट जाता है, लेकिन अब नया ट्रेंड साधू संतों कथावाचकों की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी और सत्ता-कॉरपोरेट घरानों के बीच में शुरू हुई लॉबिंग के खेल में उनकी सक्रियता के चलते पूरा का पूरा समीकरण बदलता दिखाई दे रहा है।
यूपी के मुरादाबाद जिले में आयोजित कल्कि महोत्सव के मौके पर जुटे नेताओं, धर्मगुरुओं, कथावाचकों के बीच का मेल मिलाप एक नए ट्रेंड की तरफ इशारा कर रहा है। ये ट्रेंड है साधू संतों कथावाचकों की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी और सत्ता-कॉरपोरेट घरानों के बीच में शुरु हुई लॉबिंग के खेल में उनकी सक्रियता, जिसकी वजह से पूरा का पूरा समीकरण बदलता दिखाई दे रहा है।

कल्कि महोत्सव के आयोजक आचार्य प्रमोद कृष्णम और कांग्रेस पार्टी के रिश्ते जगजाहिर हैं, भगवान कृष्ण और कल्कि भगवान के सामने भजन सुनाने वाले प्रमोद कृष्णम कांग्रेस पार्टी के टिकट से चुनाव भी लड़ चुके हैं। इसके अलावा मालेगांव ब्लास्ट में भावेश पटेल की तरफ से किए गए खुलासे में दिग्विजय सिंह और प्रमोद कृष्णम के बीच की नजदीकियां जगजाहिर हो गए थे, भावेश पटेल ने कहा था कि उसने प्रमोद कृष्णम से मदद मांगी थी और उन्होंने उसे दिग्विजय सिंह से मिलवाया जिसके बाद उसे गिरफ्तार किया गया था।
प्रमोद कृष्णम पिछले कई सालों से कल्कि महोत्सव का आयोजन करते रहे हैं और उनके इस आयोजन में राजनैतिक तौर पर एक दूसरे से 36 का रिश्ता रखने वाले नेतागण एक मंच पर दिखाई देते रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला, भारतीय जनता पार्टी की हेमा मालिनी, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत और फिल्मी हस्तियां अपनी मौजूदगी से प्रमोद कृष्णम के बॉलीवुड से लेकर पॉलिटिक्स तक में बढ़ते वर्चस्व का प्रमाण पेश करती रही हैं। इसीलिए इस बार अगर दिग्विजय सिंह और विवादास्पद मौलाना तौकीर रज़ा एक मंच पर दिखाई दिए हैं तो ये उस बदलते सत्ता, राजनीति और मजहब के गठजोड़ और कॉकटेल का नतीजा ही माना जाना चाहिए। मौलाना तौकीर रज़ा और उनकी विचारधारा से लगभग पूरा रुहेलखंड और दिल्ली पूरी तरह परिचित है।
समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद बरेली में हुए सांप्रदायिक दंगे को भड़काने वालों में से एक का आरोप झेल रहे मौलाना तौकीर रज़ा को समाजवादी पार्टी की ही सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दे रखा है, भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली विधानसभा के चुनाव में कामयाबी हासिल करने के लिए मौलाना तौकीर रजा से मिलकर उनसे समर्थन की अपील कर चुके हैं। इससे साफ है कि सत्ता के इस घिनौने खेल में राजनीति मजहब और कॉरपोरेट घरानों का गठजोड़ अहम भूमिका निभाता रहा है।
अगर पिछले कुछ वर्षों के राजनैतिक और कॉरपोरेट घरानों के हालात पर नज़र डालें तो इन मजहबी नेताओं और कथावाचकों की बढ़ती सक्रियता हमारे देश के करोड़ों धर्मनिरपेक्ष और मासूम लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना के ऐतिहासिक आंदोलन का समापन भी प्रमोद कृष्णम सरीखे एक संत भैया जी की मध्यस्थता में ही हो सका। अन्ना हज़ारे ने देश की सर्वोच्च संस्था संसद, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति की अपील को ठुकरा दिया था लेकिन भैया जी के कहने पर अपना आमरण अनशन समाप्त करने का ऐलान कर दिया।
बताया जाता है कि देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट घराने रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के मालिकों के बीच पैदा हुआ विवाद का निपटारा भी अंबानी परिवार के कुलगुरु और गुजरात के कथावाचक मोरारी बापू के बीच में पड़ने से ही हो पाया। संघ परिवार, वीएचपी और बीजेपी तो पहले से ही देश के हज़ारों साधू संतों का इस्तेमाल राममंदिर निर्माण की आड़ में अपना राजनैतिक लक्ष्य हासिल करने में करती रही है। इसके लिए अब हम कह सकते हैं कि हरिवंश राय बच्चन ने भले ही मधुशाला को अलग-अलग फिरकों और धर्मों को मानने वालों के लिए बेहतर मेलजोल का अड्डा माना हो लेकिन अब नया ठिकाना कल्कि महोत्सव जैसे कार्यक्रम और उसके आयोजकों जैसे लोगों के `मैनेजमेंट` का हिस्सा है।
(आप इन्हें टि्वटर पर फॉलो कर सकते हैं
)
First Published: Sunday, November 10, 2013, 21:03