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मज़हब, संत और सियासत

Last Updated: Sunday, November 10, 2013, 21:03

ये लाइनें हिंदी के मशहूर साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन की कविता मधुशाला से हैं और ये इस बात को ताकीद करती रही हैं कि मधुशाला में जाकर मजहब का भेदभाव मिट जाता है, लेकिन अब नया ट्रेंड साधू संतों कथावाचकों की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी और सत्ता-कॉरपोरेट घरानों के बीच में शुरू हुई लॉबिंग के खेल में उनकी सक्रियता के चलते पूरा का पूरा समीकरण बदलता दिखाई दे रहा है।