
इस समय किताबों को लिखने और उसको लेकर जो राजनीति हो रही है उसका सिलसिला काफी तेज है। इसी कड़ी में एक नाम आर के यादव की भी है जिनकी लिखी किताब जल्द ही बाजार में आने वाली हैं। लोकसभा चुनावों के परिणामों पर ये किताबें कितना असर डाल पाएंगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इन किताबों को लेकर सियासी माहौल जरूर गरमा गया है। इस बार सियासत की बात में भारतीय खुफिया एजेंसी के पूर्व अधिकारी
आर.के. यादव से ज़ी रीजनल चैनल्स के संपादक
वासिंद्र मिश्र ने लंबी बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश।
वासिंद्र मिश्र :आपकी किताब में ऐसी क्या खास बात है जिसको लेकर किताब के बाजार में आने से पहले ही इतनी चर्चा हो गई है।
आर.के. यादव :देखिए इस किताब की टाइमिंग का इस इलेक्शन से कोई लेना देना नहीं था। ये मैं पिछले 10 साल से लिख रहा हूं जो कि काफी बड़ा रिसर्च वर्क है जिसमें मैंने हिंदुस्तान के इंटेलिजेंस का.. जब से देश आजाद हुआ है ..तब से अब तक क्या योगदान हैं इनकी क्या नाकामियां हैं, क्या इसमें सुधार होना चाहिए। यह महज़ इत्तेफाक है कि इसकी टाइमिंग इस इलेक्शन के आस-पास हो गई। वैसे ये किताब मेरे हिसाब से पिछले साल ही रिलीज हो जानी चाहिए थी।
वासिंद्र मिश्र :आपके किताब में अटल बिहारी वाजपेयी के भी शासन काल का ज़िक्र है कि जब अटल जी देश के प्रधानमंत्री थे तो प्रधानमंत्री कार्यालय में एक अधिकारी तैनात था जिसका CIA से संबंध था।
आर.के. यादव :मुझे लग रहा है कि इसको गलत समझा गया। जो मेरे ज्ञान में बात है वो पीएमओ में नहीं था वो RAW में था। रविंद्र सिंह नाम का एक ज्वाइंट सेक्रेटरी था जो CIA का एजेंट था। किसी ने अगर ये कहीं जिक्र किया है तो ये बात गलत है। प्रधानमंत्री अटलजी के दफ्तर में ऐसा कोई जासूस नहीं था।
वासिंद्र मिश्र :तो RAW का जो वो अधिकारी था वो आज की तारीख में कहां है और भारत सरकार ने उसको भारत लाने के लिए अभी तक क्या कार्रवाई की है?
आर.के. यादव :देखिए वो ज्वाइंट सेक्रेटरी रैंक का अफसर था। रविंद्र सिंह उसका नाम था। इस किताब में मैंने उसपर पूरा खुलासा किया है कि उसको CIA यहां से कैसे भगा ले गई और उसमें रॉ के कुछ अफसर भी शामिल थे जिन्होंने उसे भगाने में मदद की क्योंकि अगर वो यहां पर पकड़ा जाता और उससे पूछताछ की जाती तो यह सब जो हैं इन पर कानूनी कार्रवाई होती और यह सब अंदर होते तो इन्होंने अपनी चमड़ी बचाने के लिए उसको भागने में मदद की और वो नेपाल के जरिए देश से बाहर भाग गया। इसमें मैंने वो दस्तावेज भी दिए हैं जो अमेरिकी सरकार की CIA ने पासपोर्ट बनवाया था। नेपाल से उसके दस्तावेज लगाए हुए हैं और यह भारत सरकार के दस्तावेज नहीं है। यह अमेरिकी सरकार के दस्तावेज हैं।
वासिंद्र मिश्र :तो अभी तक भारत सरकार ने उसको वापस लाने के लिए कार्रवाई क्यों नहीं की?
आर.के. यादव :इसके प्रत्यर्पण को लेकर मैंने भी सवाल उठाया था। जब CBI जवाबदेह थी RTI के अंदर तो मैंने CBI से पूछा था तो CBI के दस्तावेज जो मेरे पास हैं उसमें यह खुलासा है कि इंटरपोल ने जब इसके बारे में कुछ जानकारी रॉ से मांगी तो रॉ ने वो जानकारी नहीं दी। उसका नतीजा यह हुआ लेकिन इंटरपोल उसको रेड कार्नर जारी नहीं कर पाई लेकिन यह आज भी अमेरिका में हैं। हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अमेरिका में आना जाना सबसे ज्यादा रहा हैं। किस कमजोर विदेशी नीति के तहत इन्होंने इस आदमी को यहां लाने के लिए अमेरिकी सरकार पर जोर नहीं दिया ये वो जाने, एमके नारायणन जाने जो कि अंदर से थे क्योंकि मुझे लग रहा है कि इनका मुख्य एजेंडा जो कि न्यूक्लियर डील हुई थी अमेरिका से उसको लाने के लिए था और इसी वजह से उन्होंने इस मुद्दे को थोड़ा मामूली समझा और आगे नहीं बढ़ाया।
वासिंद्र मिश्र :तो आपको लगता है कि महज कमजोर विदेश नीति की वजह से उसको भारत नहीं ला पा रहे हैं या कोई और समीकरण भी हैं प्रधानमंत्री के बीच में और उस रविंद्र सिंह के बीच में।
आर.के. यादव :देखिए ये तो कमजोर विदेश नीति ही है नहीं तो अमेरिका की क्या हिम्मत थी कि देवयानी खोबरागड़े के मामले में उसके नौकर को और नौकर के बच्चों को आप डायरेक्ट ले जाएं और भारत सरकार को पता भी ना चले। मैं तो अमेरिका की दादागीरी कहूंगा।
वासिंद्र मिश्र :तो आपको लगता है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए या अमेरिकापरस्त नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए मनमोहन सिंह ने जो राष्ट्रीय हित था उसको नजरअंदाज किया है?
आर.के. यादव :देखिए इसे आप लोगों को देखना है कि उनकी कमजोर विदेश नीति हैं या उनकी खुद की या मैं कहूंगा कि मजबूती नहीं थी इस मामले में, नहीं तो अटल बिहारी होते तो वो इस चीज पर अड़ जाते। मुझे याद है क्लिंटन यहां आए थे चिट्टेसिंहपुरा में। उस दिन घटना हुई थी सरदारों के साथ और क्लिंटन उसके बाद पाकिस्तान जा रहे थे तो उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि इनसें पूछिए मुशर्रफ के सामने मामला उठाएंगे या नहीं उठाएंगे। तो ये तो कमजोरी की निशानी तो है ही।
वासिंद्र मिश्र :मुल्कों से मिलते रहते हैं, एक बहुत बड़ा आरोप लगता रहा हैं बीच-बीच में कि वे लोग जो फंड मिलता है सीक्रेट फंड उसका बहुत दुरुपयोग करते हैं इसमें कितनी सच्चाई हैं?
आर.के. यादव :देखिए ये अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। रॉ के एक सेक्रेटरी थे जिनका नाम जैन हवाला केस में आया था और उनपर यह आरोप लगा था कि उनको एक लाख रुपये जैन ने दिए हैं। जैन की डायरी में एक लाख रुपये की एंट्री थी। मैंने उनसे बात की थी तो उन्होंने मुझे यह कहा था कि यादव साहब मेरे यहां अलमारियां नोटों से और विदेशी मुद्रा से भरी रहती हैं तो मैं क्या उसमें से एक लाख रुपये जैन से लूंगा। मुझे जितने चाहिए मैं उसमें से लेकर घर जा सकता हूं। मेरे कहने का मतलब ये कि रॉ में जो भी काम होता है चाहे हम विदेश में करते हैं या यहां करते हैं जो हमारे अफसर हैं वो सिर्फ पैसे के जरिए ही करते हैं। सोर्स बनाते हैं जो पैसे से बनता हैं। अब ये उसकी इच्छा शक्ति पर है अगर कोई बेईमान होना चाहे तो कमी नहीं है, लेकिन आज भी रॉ के एक सेक्रेटरी पर मैंने केस डाला हुआ है। CBI ने उसमें जांच का आदेश कर दिया है। उसकी संपत्ति इतनी ज्यादा है कि उसकी सैलरी बनती थी कोई आठ-दस लाख रुपये और उसकी दौलत 1990 में ही करोडों में थी। सीबीआई ने उसमें जांच की हैं।
वासिंद्र मिश्र :तो हम मानें कि रॉ और सीबीआई के जो भ्रष्ट अधिकारी हैं वे एक दूसरे को मदद करते हैं और उनपर जब कार्रवाई की बात आती है तो उस भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उसको बचाने के लिए इन विभागों के अधिकारी जुट जाते हैं।
आर.के. यादव :कौआ कौआ को नहीं काटता। ये एक दूसरे का बचाव करते हैं।
वासिंद्र मिश्र :आपके विभाग में जो भ्रष्टाचार रहा है खास तौर पर बड़े पदों पर जो अधिकारी आते हैं वो आकंठ भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं। आज रॉ की कोई स्टेंडिंग नहीं है जब हम फॉरेन एजेंसीज की बात करते हैं रॉ के मुकाबले।
आर.के. यादव :ये गिरावट आई है 1987 के आसपास जब एलटीटीई के ऑपरेशन हुए और रॉ के अधिकारी जो इसे हैंडल कर रहे थे जिसमें रॉ का सेक्रेटरी भी था उस वक्त जो फंड डायवर्ट हुए पर्सनल गेंस के लिए अपने एसेट्स बनाने के लिए कई बार उन्होंने अमेरिका में अपने पैसे ट्रांसफर कराए। दूसरे देशों बैंकॉक से फर्जी एजेंट बनाकर पैसे दिखाए गए। एक तरह से तभी से गिरावट का एक रास्ता खुल गया। उससे पहले करप्शन का नाम नहीं था रॉ के अंदर।
वासिंद्र मिश्र :तो ये जो करप्शन हुआ उसमें पॉलिटिशियन भी शामिल थे या सिर्फ रॉ के अधिकारी?
आर.के. यादव :नहीं...पॉलिटिशियन का इसमें कोई लेना देना नहीं है। ये रॉ के ऑफिसर ही थे और ये भी एक कोटरी होती है जो एक दूसरे को बनाते हैं।
वासिंद्र मिश्र :ये किस लेवल के अधिकारी होते हैं?
आर.के. यादव :सेक्रेटरी लेवल के जो रॉ के चीफ हैं वो अगर चाहेगा तो यहां करप्शन होगी और रोकेगा तो रुक जाएगी।
वासिंद्र मिश्र :उसमें जो अभी हाल में रिटायर हुए हैं ये अधिकारी भी शामिल थे रॉ की बर्बादी के लिए?
आर.के. यादव :सारे तो नहीं थे लेकिन कुछ हैं।
वासिंद्र मिश्र :कुछ के नाम बताएंगे जो शामिल थे?
आर.के. यादव :एके वर्मा जिनपर सीबीआई ने केस चलाया हुआ है।
वासिंद्र मिश्र :उनके अलावा?
आर.के. यादव :उसके अलावा प्रजेंट चीफ जिसकी मैंने शिकायत की है।
वासिंद्र मिश्र :क्या नाम है उनका?
आर.के. यादव :आलोक जोशी। उसकी भी मैंने प्रधानमंत्री से शिकायत की है और उनके एसेट्स की डिटेल भेजी है।
वासिंद्र मिश्र :इसमें संजीव त्रिपाठी का भी कोई रोल है?
आर.के. यादव :संजीव त्रिपाठी भी काफी करप्ट आदमी था।
वासिंद्र मिश्र :तो क्या आपको पता है कि ये अधिकारी आजकल किस पार्टी में शामिल हैं?
आर.के. यादव :भाजपा में शामिल हुए हैं। हमने इसका विरोध किया है। हमने राजनाथ सिंह को भी उसकी करतूत बताई हैं और नरेंद्र मोदी को भी उसी चिट्ठी भेजी है। साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी से भी बात हुई थी। चिट्ठी में कहा है कि आपने स्ट्रैटजी कमेटी जो बनाई है जिसमें आपने रॉ के इस अधिकारी को लिया है ये तो कांग्रेस पार्टी का आदमी है। ये भी मैंने उसमें लिखा है, कांग्रेस के एक सीनियर लीडर हैं जिन्होंने उस अधिकारी को रॉ का चीफ बनवाया था।
वासिंद्र मिश्र :वो कौन से नेता थे जिन्होंने इसको बनवाया था?
आर.के. यादव :10 जनपथ के नजदीक ही थे वो।
वासिंद्र मिश्र :लेकिन आपके जो विरोधी हैं वो आप पर आरोप लगाते हैं कि आपने पहली बार विभाग में यूनियन बनाया और यूनियन बनाकर जो विभाग का अनुशासन था, विभाग की जो सीक्रेसी थी उसको आपने बर्बाद किया नष्ट किया। इसका असर हुआ कि पूरे विभाग की फंक्शनिंग पर इसका असर हुआ।
आर.के. यादव :ये अगर आरोप है तो अच्छी बात है। देखिए, 1977 में जब मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सत्ता में आई तो रॉ पर आरोप था कि रॉ ने देश के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप किया है। मोरारजी देसाई कुछ अड़ियल किस्म के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने आर एन काव को कहा कि आप घर जाइए। नंबर टू जो थे उनको कहा कि आप पाकिस्तान में जितने ऑपरेशन हो रहे हैं उनको खत्म कीजिए, बांग्लादेश में जो ऑपरेशन हो रहे थे सब खत्म करिए। उन्होंने ये करने से मना कर दिया तो उनको भी कहा कि आप भी घर जाइए। तीसरे को उन्होंने कहा कि स्ट्रेंथ को आप वन थर्ड खत्म कर दीजिए। नए-नए यंग ऑफिसर वहां लगे थे और हमें वहां अपना भविष्य खत्म होता दिख रहा था। तो हमारे जैसे जो दूसरे लोग थे वो इकट्ठे हो गए। उन्होंने कहा कि कुछ अपने बाल बच्चों के लिए करिए कि ये नौकरी चली गई तो क्या करेंगे। तो मैंने उस बैकग्राउंड को देखते हुए अपने राइट्स के लिए उसमें एक यूनियन बनाई थी। उसको बकायदा रजिस्टर्ड कराया था और उसको एक किस्म का कानूनी रूप दिया था। इसमें कोई हर्ज नहीं, इसमें जो कोई क्रेडिट या डिसक्रेडिट देना चाहे, बुरा नहीं मानता।
वासिंद्र मिश्र :आप ये मानते हैं न कि दुनिया के किसी मुल्क में इस तरह के सीक्रेट ऑपरेशन में लगी हुई जो एजेंसियां हैं उसमें यूनियनबाजी की इजाजत नहीं है, लेकिन आपने यूनियनबाजी की।
आर.के. यादव :देखिए यूनियनबाजी मैं इस उम्र में जाकर समझता हूं लेकिन उस वक्त जब हमें अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा था, हमारे साथ जो लोग थे जिसमें कई ऑफिसर थे उनको जब डिसमिस कर घर भेज दिया गया उनकी जो हालत हुई, पैसे-पैसे के लिए जो मोहताज हुए। हमें पता है हम कैसे उनका सपोर्ट किया करते थे तो ये एक महज सरकार की ओर से गलत निर्णय था जिसकी वजह से रॉ के कर्मचारियों को यूनियन में आना पड़ा। 90 फीसदी लोग एंप्लाई यूनियन के मेंबर थे। यहां तक कि सीनियर ऑफिसर भी मेंबर थे तो जनता पार्टी सरकार का जो एक्शन था उसकी वजह से हमें लगा कि हमारा भविष्य यहां सुरक्षित नहीं है।
वासिंद्र मिश्र :यादव जी, सिक्किम मर्जर में क्या रोल था रॉ का और किस तरह से उस ऑपरेशन को आप लोगों ने अंजाम दिया था?
आर.के. यादव :आपने अभी कहा था कि एजेंसी जिस काम के लिए बनी थी उसके लिए सही तरह से यूज नहीं हुई जिसमें मैंने कहा था कि उसमें एक ऑपरेशन बांग्लदेश का था जिसमें रॉ का योगदान था। दूसरा सबसे बड़ा ऑपरेशन जो आर एन काव ने किया वो सिक्किम का मर्जर था। तीन हजार माइल्स की टैरेटरी जो हिंदुस्तान की बाउंड्री में आर एन काव ने मिलाई थी बगैर किसी दिक्कत के इसको मैं ब्लड लेस स्कूप कहता हूं वो भी चाइना की नाक के नीचे। चाइनीज फोर्सेज़ उस वक्त सिक्किम बॉर्डर पर तैनात थी। किताब में भी इस बारे में खुलासा है। रॉ के सिर्फ चार ऑफिसर ने ये किया था। पांचवें को मालूम नहीं था। काव साहब के डिप्टी हुआ करते थे के. शंकरा नायर जिनको काव साहब का शेडो कहा जाता था। मैंने उससे पूछा था, मैनें उनका एक इंटरव्यू रिकॉर्ड किया था जिसकी प्रेरणा से ये किताब लिखी गई। शंकरा नायर ने मुझे बताया कि मुझे इस बारे में मालूम नहीं कि काव साहब ने कैसे प्लान किया और किस तरह किया लेकिन उन चार ऑफिसर ने दो ढाई साल के अंदर इस ऑपरेशन को पूरा किया जिसमें बहुत कम जूनियर ऑफिसर शामिल थे। ये क्लोजली गाइडेड ऑपरेशन था जिसमें चाइना से बहुत बड़ा खतरा भी मोल लिया गया था।
वासिंद्र मिश्र :गुजराल साहब का क्या रोल रहा है रॉ की फंक्शनिंग को लेकर?
आर.के. यादव :छोटा सा कमेंट मैंने इस बारे में किताब में दिया है। गुजराल पाकिस्तान से आए हुए शरणार्थी थे। जब वो यहां के प्रधानमंत्री बने तो उनका भी पाकिस्तान प्रेम कुछ ज्यादा ही उमड़ रहा था क्योंकि पुरानी धरती से उनका लगाव था। इसी बैकग्राउंड को मैं देखता हूं कि रॉ के जो ऑपरेशन उस वक्त चल रहे थे पाकिस्तान में उन्होंने सब बंद करवा दिया जिससे देश को बहुत बड़ा धक्का लगा। इन ऑपरेशन को बंद नहीं करनी चाहिए था और उनकी भूमिका को मैं शक के दायरे में लाता हूं कि उनको ऐसा नहीं करना चाहिए था। किताब में ये भी लिखा है कि गुजराल की जान रॉ ने ही बचाई थी। उनपर भी आतंकवादियों का हमला होना था।
First Published: Sunday, April 20, 2014, 15:09