Last Updated: Saturday, November 16, 2013, 19:55
अतुल सिन्हापूरे देश के लिए हो न हो लेकिन तमाम टीवी चैनलों और उससे जुड़े क्रिकेटप्रेमियों के लिए सचिन का भावुक होना, उनकी आंखें नम होना और अपने आखिरी मैच में जीत के तोहफे के साथ सभी से गले मिलना एक ‘बड़ी खबर’ ज़रूर है। और उससे भी बड़ी खबर इस महानायक का वो भावुक और दिल को छू लेने वाला संबोधन। पूरा वानखेडे स्टेडियम और टीवी से चिपके देश के साथ पूरी दुनिया ने ये अद्भुत लम्हा देखा और सचिन के एक-एक शब्द और वाक्य उनके दिल में उतरते चले गए।
अपने 24 साल के सफ़र के साथ बचपन से लेकर अबतक अपनी ज़िंदगी के उन तमाम पलों को सचिन ने जिस तरह याद किया, अपने मां-पिता के साथ-साथ पत्नी, बच्चों, भाई और परिवार के हरेक सदस्य और उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने वाली हर शख्सियत का उन्होंने तहे दिल से जिस तरह शुक्रिया अदा किया, वो उन्हें समझने के लिए काफी है।
और इन सबके बाद जो सबसे अहम सरकारी तोहफ़ा उन्हें मिला उससे ये तय हो गया कि वाकई सचिन ही असली ‘भारत रत्न’ हैं। इस विवाद से भी परदा उठ गया कि खेल कोटे से हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद इसके पहले हकदार होंगे या जेंटलमैन गेम के मास्टर ब्लास्टर। जाहिर है जब पूरा देश क्रिकेट के इस महानायक को भावुक विदाई दे रहा हो, कुछ साल पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिस ब्रांड को राज्यसभा में पहुंचाया हो और चुनावी वक्त की नज़ाकत को देखते हुए अपने देश के युवा वोटरों के लिए जो एक नायाब तोहफा हो सकता हो, उसे ‘भारत रत्न’ देने का ये मौका भला कैसे चूका जा सकता था।
सुनील गावस्कर से लेकर राहुल द्रविड़ तक क्रिकेट के बहुत से दिग्गज देश को और क्रिकेट को बहुत कुछ देकर चले गए लेकिन सचिन जैसी शानदार विदाई किसी को नहीं मिली। आखिर ऐसा क्या है सचिन में जिससे वो दुनियाभर में क्रिकेट के महानायक बन गए? आखिर कैसे सचिन के सामने सर डॉन ब्रेडमैन, गैरी सोबर्स या गावस्कर की चमक फीकी पड़ गई? आखिर 200 टेस्ट मैच खेलने या सबसे ज्यादा शतक या रन बनाने का रिकॉर्ड सचिन के नाम ही क्यों और कैसे जुड़ गया ?

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आज आप किसी से बात कर लीजिए, हर कोई सचिन का मुरीद मिलेगा। बड़ी-बड़ी शख्सियत से लेकर आम आदमी तक। बाज़ारवाद के इस दौर में सचिन से बड़ा आज कोई ब्रांड नहीं। धोनी का एक दौर था लेकिन तमाम विवादों में रहने की वजह से वो खत्म हो गया। सौरव गांगुली जैसे बेहतरीन क्रिकेटर का क्या हश्र हुआ सबको पता है। क्रिकेट के ग्लैमर, कॉरपोरेट वर्ल्ड की चमक-दमक और इसके भीतर की राजनीति ने अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों को तबाह कर दिया। क्रिकेटर्स आते-जाते रहे लेकिन 24 सालों तक सिर्फ और सिर्फ सचिन जमे रहे। आखिर सचिन ने कैसे किया ये कमाल ? आखिर उनके भीतर वो कौन सी खासियत रही है जिसकी वजह से क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से लेकर तमाम खेमों में बंटे क्रिकेट के तथाकथित सियासी कर्णधारों को वे साधते रहे ?
भले ही सचिन ने बीच-बीच में घटिया प्रदर्शन भी किया हो लेकिन बड़े-बड़े खिलाड़ी उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ते मिलते हैं। और तो और उन्हें टीम से अलग कर देने का साहस कभी किसी ने नहीं जुटाया। क्या सचिन को इस मुकाम तक सचमुच उनके गुरु अचरेकर साहब ने पहुंचाया, या फिर उनके पिता या परिवारवालों ने या फिर इस जेंटलमैन गेम में लगातार बने रहने के लिए उनकी अपनी रणनीति ने। ये रणनीति आखिर थी क्या– बेशक, तमाम विवादों से उनका दूर रहना, किसी भी मैच या खिलाड़ी या विवाद के बारे में कोई साफ राय न देना, किसी खिलाड़ी को न तो ज्यादा आगे बढ़ाना और न ही उसके बारे में कोई बयान देना और सबसे अहम तमाम अधिकारियों से बेहद करीबी और आदर से भरे रिश्ते रखना।
जाहिर सी बात है अगर आप बेहतरीन खेल के साथ-साथ इन फनों में माहिर होते तो आप भी सचिन बन सकते थे। 24 साल और 200 मैच तो शायद अब सपना है क्योंकि अब क्रिकेट वो नहीं रहा जो पहले था। अब न तो क्रिकेट में वो तकनीक है, न टेस्ट मैचों में रोमांच और न ही खेल को लेकर वो समर्पण। इस फटाफट ज़माने में जल्दी-जल्दी क्रिकेट खेलिए, जल्दी-जल्दी पैसे कमाइए और जल्दी से कहीं गुम हो जाइए। इसलिए बदलते हुए इस दौर में अब न तो वो क्रिकेट होगा और न ही सचिन रमेश तेंदुलकर।
(लेखक ज़ी रीजनल चैनल्स में एक्सक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं।)
First Published: Saturday, November 16, 2013, 18:59