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केजरीवाल का ‘स्वराज’

Last Updated: Friday, January 3, 2014, 13:18

विश्वासमत की कसौटी पर खरे उतरने के बाद अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम भले ही सुकून की सांस ले रही हो लेकिन उनके लिए असली इम्तिहान की घड़ी अब शुरू हुई है। देश की राजनीति में जिस बदलाव की लड़ाई केजरीवाल साहब लड़ने निकले हैं, उसमें अब विधानसभा के भीतर की मर्यादाएं भी हैं और राजनीति के वही पुराने दांव पेंच भी।

‘आप’ की सरकार के राजनीतिक ‘सरोकार’

Last Updated: Saturday, December 28, 2013, 20:15

इस समय सोशल मीडिया, टीवी मीडिया और प्रिंट मीडिया अरविंद केजरीवाल के किस्सों से भरा पड़ा है। अचानक ऐसा लगने लगा है मानो कृष्ण ने नया अवतार ले लिया हो, बुराई पर अच्छाई की जीत के साथ भ्रष्टाचार का रावण धू-धू कर जल उठा हो और हम आप जैसे आम लोग मानो खुद को सत्ता का हिस्सेदार मानने लगे हों।

शर्म उनको मगर नहीं आती...

Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 17:12

सामाजिक मूल्यों और नैतिकता की वकालत करने वाले, नेताओं और नौकरशाहों को कठघरे में खड़ा करके ‘तहलका’ मचाने वाले किस हद तक मीडिया की ‘डर्टी पिक्चर’ पेश कर रहे हैं, तेजपाल साहब उसके एक नमूने हैं। उनकी बुद्धिजीवी दाढ़ी, तीखी आंखों और तल्ख तेवर के पीछे कौन सा शैतान है, वो खुद बता रहे हैं।

आखिर दूसरा ‘सचिन’ क्यों नहीं हो सकता?

Last Updated: Saturday, November 16, 2013, 19:55

पूरे देश के लिए हो न हो लेकिन तमाम टीवी चैनलों और उससे जुड़े क्रिकेटप्रेमियों के लिए सचिन का भावुक होना, उनकी आंखें नम होना और अपने आखिरी मैच में जीत के तोहफे के साथ सभी से गले मिलना एक ‘बड़ी खबर’ ज़रूर है। और उससे भी बड़ी खबर इस महानायक का वो भावुक और दिल को छू लेने वाला संबोधन।

क्या सचमुच अयोध्या का मैच ‘फिक्स’ है ?

Last Updated: Monday, August 26, 2013, 12:41

अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा को लेकर पिछले एक हफ्ते से जो सियासी ड्रामा चल रहा है उसका फायदा किसे मिलने वाला है? ये सवाल देश के राजनीतिक गलियारों में तैर रहा है। न तो इस वक्त 1992 वाले हालात हैं, न देश का आम मुसलमान या हिंदू, ऐसे किसी भी विवाद या तनाव के लिए तैयार है।

दुनिया को बेहद करीब से देखते हैं गुलज़ार

Last Updated: Sunday, August 18, 2013, 16:02

एक संवेदनशील शायर और आसपास की दुनिया को बेहद करीब से देखने वाले गुलज़ार साहब के लिए जन्मदिन का मायना भले ही ये हो सकता है लेकिन अपने बेहतरीन लफ्ज़ों की बदौलत उन्होंने साहित्य और संगीत को जो दिया है, वो एक बेमिसाल ख़ज़ाना है।

बदलते दौर का ‘मीडिया सेंसरशिप’!

Last Updated: Wednesday, August 7, 2013, 17:29

साल 1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी तब भी सत्ता के खिलाफ बोलने या लिखने वालों को जेल में डाला जाता था। कुछ ऐसा ही तब हुआ था जब बिहार में प्रेस बिल लाया गया और अभिव्यक्ति की आजादी खत्म कर दी गई। प्रेस सेंसरशिप को लेकर लंबी बहसें हुईं, देश भर में प्रदर्शन हुए और आखिरकार सरकार को अपने फैसले वापस लेने पड़े।