Last Updated: Thursday, August 8, 2013, 00:01

नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के क्रियान्वयन में तेजी लाने पर जोर दिया है और इसमें कर ढांचे और विवाद निपटान प्रणाली सहित कुछ संशोधनों का सुझाव देते हुये विधेयक को मंजूरी दे दी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली वित्तीय मामलों की स्थायी समिति ने कहा है कि जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक में कर दरों, छूट, अलग रखने, अधिकतम सीमा और प्रशासनिक व्यवस्था से जुडे विशिष्ट पहलुओं को शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
समिति ने विधेयक पर तैयार अपनी रिपोर्ट में कहा है ‘जो कुछ कानून और नियमों में शामिल किया जाना है उसे भारतीय संविधान का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिये। समिति के विचार में जीएसटी पर तैयार मौजूदा विधेयक इस लिहाज से उचित ढंग से तैयार नहीं किया गया है और इसलिये इसमें सुझाये गये संशोधन करने की आवश्यकता है।’ समिति ने जो और सुझाव दिये हैं उनमें कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि, मुद्रास्फीति, जमाखोरी, कर दाताओं पर पड़ने वाली अनुपालन लागत और अंतिम उत्पाद की कीमत इन सभी प्रभावों का आकलन करने के लिये एक निगरानी प्रकोष्ठ गठित किया जाना चाहिये।
समिति ने यह भी कहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों की राजस्व संबंधी चिंताओं को दूर करने और उसकी भरपाई के लिये एक स्थायी क्षतिपूर्ति प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये। विधेयक में इसके लिये उचित संशोधन किया जाना चाहिये।
जीएसटी लागू होने पर उत्पाद शुल्क, सेवाकर और बिक्री कर जैसे कई अप्रत्यक्ष कर इसमें समाहित हो जायेंगे। जीएसटी विधेयक पिछले कई सालों से लंबित है। जीएसटी लागू होने के बाद केन्द्र और राज्य दोनों को ही सामान की आपूर्ति से लेकार सेवाओं पर उनके शुरआती बिंदु से लेकर अंतिम खपत तक पहुंचने में कर लगाने का अधिकार मिल जायेगा।
समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि प्राकृतिक आपदा और त्रासदी के समय केन्द्र और राज्यों को अतिरिक्त संसाधन जुआने के लिये विशेष अधिकार दिये जाने चाहिये। जीएसटी पर संविधान संशोधन विधेयक संसद में 2010 में पेश किया गया था। (एजेंसी)
First Published: Thursday, August 8, 2013, 00:01