चुनौतियों भरे कार्यकाल के बाद RBI से विदा लेंगे सुब्बाराव

चुनौतियों भरे कार्यकाल के बाद RBI से विदा लेंगे सुब्बाराव

मुंबई : प्रशासनिक सेवा से बैंकिग क्षेत्र में आए आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव भारी चुनौतियों भरे पांच साल का वित्तीय क्षेत्र के विनियामक का कार्यकाल पूरा कर बुधवार को विदा होने जा रहे हैं। सुब्बाराव के 2008 में वित्त सचिव से रिजर्व बैंक का गवर्नर बनने के कुछ ही दिनों बाद 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट खड़ा हो गया दुनिया भर की बैंकिं प्रणाली अचानक लड़खड़ने लगी। 1930 की महा मंदी के बाद यह सबसे बड़ा आर्थिक संकट था। आज वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिस्थितियों में रुपये की विनिमय दर न्यूनतम स्तर पर है, आर्थिक वृद्धि घट रही है और मुद्रास्फीति का लम्बा दौर बना हुआ है।

सुब्बाराव की सख्त मौद्रिक नीति की जितनी आलोचना होती रही है। आलोचक उनके रवैये को मुद्रास्फीति के प्रति अति आक्रामक करार देते रहे हैं। पर उनके तमाम प्रशंसक भी है जो यह मानते हैं कि उन्होंने सरकारी दबाव से मुक्त हो काम किया और केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता का प्रदर्शन किया। सितंबर 2008 में आरबीआई के गलियारों में पहुंचे दुव्वुरी सुब्बाराव ने वैश्विक संकट का मुकाबला कुशलता पूर्वक किया। भारतीय बैंकिंग प्रणाली बैकिंग प्रणाली अपनी ठोस बुनियाद और आरबीआई की सख्त निगरानी के चलते 2008 के संकट से बिना किसी खरोंच के बच गयी।

सुब्बाराव को सबसे अधिक उनकी उन सख्त मौद्रिक पहलों के लिए याद रखा जाएगा जो उन्होंने पिछले डेढ़ साल में उठाए जबकि एक ओर मुद्रास्फीति बढ़ रही थी दूसरी ओर आर्थिक वृद्धि घट रही थी। उनके नेतृत्व में आरबीआई ने सरकार के धर्य की परीक्षा लेते हुए ब्याज दरें मार्च 2010 से अक्तूबर 2011 के बीच नीतिगत दरें 13 बार बढ़ाईं। आरबीआई के सख्त रवैये के कारण थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति जो दहाई अंक (2010-11) से घटकर अब करीब पांच प्रतिशत पर आ गई और केंद्रीय मुद्रास्फीति (विनिर्मित वस्तुओं से संबंधित) करीब दो प्रतिशत थी।

सुब्बाराव को सख्त मौद्रिक रख के कारण कई बार सरकार में बैठे लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी। वित्त मंत्री पी चिदंबरम एक बार यहां तक कह दिया था कि यदि सरकार को सिर्फ वृद्धि की राह पर अकेले ही चलना है तो वह तो वह ऐसा करने के लिए भी तैयार है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि सरकार और रिजर्व बैंक के बीच तनाव कोई अच्छा संकेत नहीं है विशेष तौर पर ऐसे समय में जबकि अर्थव्यवस्था पर दबाव है।

मृदुभाषी और मिलनसार आरबीआई गवर्नर ने जाते जाते अपनी भावनाओं को साफ साफ दुनिया के सामने रख दिया है। उन्होंने अभी कुछ दिन पहले कहा कि अर्थव्यवस्था को इस समय ज्यादा दिक्कत सरकार की ओर से है और वर्तमान स्थिति के लिए विदेशी परिस्थितियों से कही अधिक घरेलू नीतियां जिम्मेदार हैं। उन्होंने जर्मनी के एक पूर्व चांसलर को उद्धरित करते हुए कहा कि चिदंबरम एक दिन कहेंगे, मैं रिजर्व बैंक के कारण अक्सर परेशान हो जाता हूं, इतना परेशान कि मैं चाहता हूं कि टहलने चला जाउं, भले ही मुझे अकेले ही टहलना क्यों न पड़। पर भगवान का भला हो कि रिजर्व बैंक बरकरार है। आरबीआई को ज्यादा जवाबदेह बनाने का पक्ष लेते हुए सुब्बाराव ने कहा कि गवर्नर के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वह संसद की वित्त संबंधी स्थायी समिति के सामने साल में दो बार बैंक की नीतियों और निष्कषों पर अपनी प्रस्तुति दे और समिति के सदस्यों के सवालों का जवाब दे। सुब्बाराव के आलोचनों ने कहा कि उनकी नीतियों के कारण आर्थिक वृद्धि पिछले वित्त वर्ष के दौरान घटकर दशक भर के न्यूनतम स्तर पांच प्रतिशत पर आ गई थी। अपनी नीतिगत पहलों का बचाव करते हुए 22वें आरबीआई गवर्नर ने कहा कि कई बार वृद्धि घटी है लेकिन इसका सारा ठीकरा सख्त मौद्रिक नीति के माथे पर फोड़ना ठीक नहीं होगा और सबसे अहम बात है कि अगर इसे नीतिगत सीख के रप में मान लेना गुमराह करने वाली बात होगी।

सुब्बाराव ने कहा, भारत में आर्थिक गतिविधियों में नरमी आपूर्ति क्षेत्र की दिक्कतों और संचालन संबंधी ऐसे मुद्दों के कारण है जो आरबीआई के दायरे से बाहर हैं। उन्होंने हमेशा अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा है कि मुद्रास्फीति प्रतिगामी कर के समान है और उनका ध्यान कीमत को नियंत्रित करने पर रहा ताकि देश में बड़ी संख्या में गरीबों के हितों का ध्यान रखा जा सके। सुब्बाराव भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में 1972 बैच में पहले स्थान पर आए थे। गवर्नर को जब मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने में कामयाबी मिली और थोकमूल्य मुद्रास्फीति पिछले कुछ महीनों में घटा है तो उनके सामाने रुपए को संभालना मुश्किल हो रहा है। डालर के मुकाबले रुपया पिछले तीन महीनों में करीब 20 प्रतिशत लुढ़क चुका है। उन्होंने रुपए की गिरावट पर नियंत्रण के लिए सरकार के साथ परामर्श कर कई कदम उठाए लेकिन इसमें गिरावट बरकरार है। मुद्रा पिछले सप्ताह डालर के मुकाबले गिर कर रकी 69 तक चली गयी थी।

चीन को छोड़ कर इस समय सभी उभरती अर्थव्यववस्थाओं की मुद्राएं दबाव में है। यह दबाव मुख्य रूप से अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष बेन बर्नांके के 22 मई के उस चर्चित बयान के बाद बढा है जिसमें उन्होंने अमेरिका में नकदी प्रवाह बढाने वाली नीति को धीरे-धीरे खत्म करने का संकत दिया था। इस नीति के तहत फेरडरल रिजर्व हर माह बाजार से 85 अरब डालर से अधिक के बांड खरीद रहा है।

सुब्बाराव ने गवर्नर के तौर पर अपने आखिरी सार्वजनिक व्याख्यान में कहा, निश्चित तौर पर रपए की गिरावट की रफ्तार और इसका समय अमेरिकी फेडरल रिजर्व के बांड बिक्री के फैसले से प्रभावित है लेकिन हम यदि हम यह स्वीकार नहीं करते कि मूल कारण घरेलू ढांचागत तत्व हैं तो हम इसकी पहचान और निवारण दोनों में भटक जाएंगे। साथ ही चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खनन और विनिर्माण क्षेत्र के संकुचन के कारण वृद्धि दर घटकर 4.4 प्रतिशत पर आ गई।

2008 के वित्तीय संकट के बाद यह सबसे धीमी तिमाही वृद्धि है। अर्थव्यवस्था के ज्यादातर क्षेत्रों में वृद्धि घटी है या उत्पादन गिरा है। रिजर्व बैंक में सुब्बाराव के उत्तराधिकारी रघुराम गोविंद राजन को इन समस्याओं से निपटना है। राजन फिलहाल वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अर्थशास्त्री रह चुके रहे हैं।

सुब्बाराव ने अपने आखिरी भाषण में अपने कार्यकाल का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार किया, आप दिलचस्प दौर में रहें। मै इस मामले में शायद ही शिकायत कर सकता हूं। मैं पांच साल पहले रिजर्व बैंक में आया था जबकि मंदी आ रही थी और मैं अपना कार्यकाल ऐसे समय में पूरा कर रहा हूं जबकि मंदी से निकासी हो रही है और पिछले पांच साल में एक सप्ताह भी संकट से मुक्ति नहीं मिली। (एजेंसी)

First Published: Sunday, September 1, 2013, 17:39

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