Last Updated: Tuesday, February 5, 2013, 20:39
नई दिल्ली : प्रकाशन उद्योग का मानना है कि विश्व पुस्तक मेले जैसे और मेले देश के विभिन्न हिस्सों में लगने चाहिए ताकि दूरदराज के पाठकों तक भी पहुंचा जा सके और भाषीय मीडिया में उपलब्ध अवसरों का समुचित दोहन उठाया जा सके।
डीसी बुक्स के सीईओ रवि डीसी ने कहा, दिल्ली में केवल एक बड़ा पुस्तक मेला लगाना पर्याप्त नहीं है। हमें भाषायी प्रकाशन मीडिया के जरिए बाजार में पहुंचना होगा तथा इस तरह के पुस्तक मेलों को देश भर में लगाना होगा। डीसी ने कहा कि देश में क्षेत्रीय भाषाओं पर केंद्रित पुस्तक मेलों की जरूरत है।
वे यहां चल रहे पुस्तक मेल में नेशनल बुक ट्रस्ट तथा उद्योग संगठन फिक्की द्वारा आयोजित संगोष्ठी (सीईओ स्पीक) में विचार रख रहे थे। इस संगोष्ठी में प्रकाशन उद्योग की अनेक हस्तियों ने विचार रखे।
फिक्की के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला ने कहा, हम सरकार से प्रकाशन उद्योग को उद्योग का दर्जा देने की मांग करते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि राष्ट्रीय पुस्तक प्रोत्साहन नीति का कार्यान्वयन किया जाएगा जिसका फायदा उद्योग जगत तथा पाठकों को होगा।
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर ने कहा कि बीते कुछ सालों में भारतीय प्रकाशन उद्योग निश्चित रूप से सुधरा है। उन्होंने कहा कि प्रकाशन उद्योग का भविष्य उत्साहजनक नजर आता है।
आदित्य बुक्स के प्रबंध निदेशक कैलाश बालानी ने कहा कि वैश्विक प्रकाशन उद्योग 250 अरब का है जिसमें भारतीय प्रकाश उद्योग की भागीदारी सिर्फ 20 लाख की है। फिक्की की एक रपट के अनुसार भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां 20 से अधिक भाषाओं में किताबें प्रकाशित होती हैं। हर साल अनुमानत: 90000 किताबें प्रकाशित होती हैं। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, February 5, 2013, 20:39