LoC पर 'पाक-साफ' करने का वक्त| Pravin Kumar

LoC पर 'पाक-साफ' करने का वक्त

LoC पर 'पाक-साफ' करने का वक्तप्रवीण कुमार
वर्ष 1947 से लेकर अब तक तीन युद्ध कर चुके भारत और पाकिस्तान एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। नियंत्रण रेखा पर 8 जनवरी (मंगलवार) को पाकिस्तानी सैनिकों ने पुंछ सेक्टर स्थित मेंढर के क्षेत्र में हमला किया जिसमें भारतीय सेना के गश्ती दल के दो जवान शहीद हो गए। पाक सैनिक एक जवान का सिर भी काटकर अपने साथ ले गए। इस हमले के बाद नियंत्रण रेखा पर भारी तनाव के बीच रूक-रूक कर पाकिस्तानी सेना फायरिंग जारी रखे हुए है। इतना ही नहीं, भारतीय सैनिकों की नृशंस हत्या करने के बाद पाकिस्तान इस मामले में अपना पल्ला झाडऩे की भी लगातार कोशिश कर रहा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर लगातार यह बयान दे रहीं हैं कि हम इस मसले को संयुक्त राष्ट्र की निगरानी समिति से जांच कराना चाहते हैं। मतलब यह कि पहले चोरी और फिर सीनाजोरी। भारत को पाकिस्तान की इस मनोदशा को समझना होगा कि आखिरकार उसकी मंशा क्या है।

हमें अब यह मान लेना चाहिए कि केवल प्रोटेस्ट करने से बात नहीं बनने वाली। प्रोटेस्ट तो हमने 26/11 मुंबई हमले के वक्त भी खूब किया था। लेकिन क्या हुआ, वही ढाक के तीन पात। पाकिस्तान में इस मामले में आज तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। मुंबई हमले के आरोपी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं। वह घोषित रूप से आतंकी वारदातों में सक्रिय हैं, लेकिन पाकिस्तान हमेशा ज्यादा सबूत की मांग करता रहा है। यह पाकिस्तान के दोहरेपन की असली तस्वीर है। जहां तक मैं समझता हूं, भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के अब कोई मायने नहीं रह गए हैं। भारत को पाकिस्तान की हिंसा का जवाब हिंसा से ही देना चाहिए। भारतीय जवानों की कुर्बानी यूं ही जाया नहीं होने देना चाहिए।

बीते एक साल पर नजर दौराएं तो इसमें दो राय नहीं कि दोनों देशों में आपसी सहयोग की कोशिशें ज्यादा हुईं हैं। इसके तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे के लिए वीजा संबंधी नीतियों में ढील दी है, पाकिस्तान भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशंस (एमएफएन) का दर्जा देने के लिए तैयार हो गया है और आपसी कारोबार के भी रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचने की बात कही जा रही है। लेकिन यह भी सच है कि दो देशों के रिश्ते स्थायी रूप से तभी बेहतर होंगे जब नीयत में कोई खोट न हो। इन हालातों में ये कतई संभव नहीं कि एक तरफ आप सीमा पर गोलीबारी कर भारतीय सैनिकों की हत्या करते रहें और दूसरी तरफ क्रिकेट सीरीज और कारोबारी रिश्ते का ढिंढोरा पीटें। कहने का मतलब यह कि पाकिस्तान ऐसे कोई कदम नहीं उठा रहा जिससे आम लोगों में यह भरोसा कायम हो कि पाकिस्तान भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने को इच्छुक है।

बड़ा सवाल यह उठता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच इस तरह के हालात क्यों पैदा होते हैं या यूं कहें कि इस तरह के हालातों के पीछे कौन सी विघटनकारी शक्ति काम कर रही है। मुझे ऐसा लगता है कि इन हालातों के पीछे मुख्य रूप से भारत में बसे कश्मीरी अलगाववादी संगठन और पाकिस्तान की सेना, आईएसआई व कुछ आतंकी संगठन की मिलीजुली खुराफात होती है। इस बात की पुष्टि अमेरिकी विदेश मंत्री रॉबर्ट गेट्स के पाकिस्तान के भविष्य को लेकर जताई गई चिंता से भी होती है। गेट्स इस बात को लेकर भयभीत हैं कि आतंकी संगठन पाकिस्तान को अस्थिर करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध भड़काने की कोशिश कर रहा है। जब-जब दोनों देशों के रिश्तों की सद्भावना एक्सप्रेस पटरी पर दौड़ने को होती है, दहशतगर्द सीमा पर तनाव बढ़ाने की नापाक कोशिश में जुट जाते हैं।

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई हमेशा से आतंकी संगठनों मसलन हरकत-उल-मुजाहिदीन, हिज़्बुल मुजाहिदीन, जमात-उद-दावा आदि से मिलकर भारत के खिलाफ विध्वंसक कार्रवाई में जुटा रहता है। आईएसआई और पाकिस्तानी सेना को जब भी लगता है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है तो इस तरह की अशांति फैलाने की कोशिश करते हैं। पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक स्थिति से पाकिस्तानी सेना में बेचैनी है। वहां पांच साल अनवरत लोकतांत्रिक सरकार के चलने से सेना को डर लगने लगा कि कहीं देश को लोकतंत्र की आदत न लग जाए। इसलिए बहुत हद तक यह संभव है कि अपने देश में अस्थिरता का माहौल पैदा करने के लिए पाकिस्तानी सेना भारत के साथ संघर्ष को बढ़ावा दे रही है। अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो सेना-आईएसआई-आतंकवादी संगठनों की जो तिकड़ी यहां काम करती है उनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

जहां तक भारत में कश्मीर के अलगाववादी संगठनों का सवाल है तो अभी पिछले महीने ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी गुट के प्रमुख मीरवाइज मौलवी उमर फारूक 12 दिवसीय पाकिस्तान दौरे के दौरान वहां के विभिन्न नेताओं से मुलाकात करने के बाद लौटे तो 28 दिसंबर 2012 (शुक्रवार) को जामिया मस्जिद में नमाज-ए-जुम्मा से पूर्व लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर नई दिल्ली ने कश्मीर समस्या को हल करने के लिए जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो एक बार फिर कश्मीर घाटी में वर्ष 2008 और 2010 जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। मीरवाइज ने कहा कि वर्ष 2008 और 2010 में कश्मीरी अवाम अपनी जिन उम्मीदों और भावनाओं को लेकर सड़कों पर उतरी थी, वह भावनाएं और आक्रोश आज भी ज्यों का त्यों है। उन्होंने कहा कि हमने पाकिस्तान की हुकूमत और वहां के नेताओं को समझाया है कि बिना कश्मीरियों के कश्मीर मुद्दा हल नहीं हो सकता। पाकिस्तान ने भी हमारे स्टैंड को स्वीकार किया है।

मीरवाइज ने कहा कि कश्मीर में लागू अफस्पा समेत सभी काले कानून हटाए जाएं। यहां से फौज की वापसी हो और जेलों में बंद सभी कश्मीरियों को रिहा किया जाए। इसके साथ ही हम चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के साथ जोड़ने वाले सभी रास्ते खोले जाएं और कश्मीरियों के सरहद के आर-पार आने-जाने पर कोई ज्यादा पाबंदियां नहीं हों, बल्कि उनकी यह यात्रा आसान हो। हुर्रियत नेता ने यह भी कहा कि इसके अलावा एक इंट्रा कश्मीर वार्ता होनी चाहिए, जिसमें सरहद के दोनों तरफ बंटे जम्मू-कश्मीर के लोगों के अलावा भारत-पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी शामिल हों। ऐसा होने पर ही कश्मीर समस्या के सर्वमान्य हल के लिए अनुकूल माहौल तैयार होगा।

मीरवाइज, प्रो.अब्दुल गनी बट, बिलाल गनी लोन, मुख्तार अहमद वाजा, मौलाना अब्बास अंसारी और आगा सैयद हसन बडगामी पाक दौरे के दौरान पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व, प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं से लेकर थिंक टैंक समूहों से कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की है। यही वजह है कि मीरवाइज भारत की धरती पर कदम रखते ही राष्ट्र और सरकार विरोधी आवाज को बुलंद करने में जुट गए। कहने का मतलब यह कि नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सेना जिस तरह से संघर्ष विराम का पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से लगातार उल्लंघन कर रही है, एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है और भारत को इसका कड़ा जवाब देने में देर नहीं करनी चाहिए। जवाब दें भी क्यों न जब हम सामरिक, आर्थिक और परमाणु क्षमता, किसी भी मोर्चे पर पाकिस्तान से कई गुणा अधिक ताकतवर हों।

First Published: Saturday, January 12, 2013, 11:54

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