आम बजट : नहीं दिखे बड़े आर्थिक फैसले

आम बजट : नहीं दिखे बड़े आर्थिक फैसले

आम बजट : नहीं दिखे बड़े आर्थिक फैसलेआलोक कुमार राव

वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के आम बजट से लोगों ने काफी उम्मीदें लगा रखी थीं। मध्यम वर्ग, नौकरीपेशा वाले लोगों को उम्मीद थी कि इस बार के बजट से उन्हें काफी रियायतें मिल सकती हैं लेकिन चिदंबरम के बजट से ऐसा कुछ नहीं निकला जो उन्हें संतोष देता बल्कि इसकी जगह उन्हें मायूसी हाथ लगी।

वहीं, अर्थ के जानकार लोग यह सोचकर चल रहे थे कि चिदंबरम खस्ताहाल हो रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ कठिन फैसले कर सकते हैं जिससे बढ़ते राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगे और निवेश एवं आर्थिक वृद्धि की रफ्तार तेज हो। लेकिन बजट को देखने से ऐसा कुछ ठोस दिखाई नहीं देता जिससे यह कहा जाए कि वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सख्त फैसला किया है।

सवाल उठ सकता है कि क्या आगामी आम चुनाव को देखते हुए वित्त मंत्री ने राजस्व जुटाने के लिए कड़े फैसले नहीं किए। लोगों को दिया भी नहीं तो उनसे वसूलने के लिए कड़े प्रावधान भी नहीं किए। हां, अति धनाड्य वर्ग से कर वसूलने के लिए उन्होंने अधिभार की व्यवस्था जरूर की है लेकिन वोट की गणित से यह वर्ग किसी राजनीतिक दल को ज्यादा परेशान नहीं करता।

चूंकि सरकार और चिदंबरम दोनों आम बजट पेश होने से पहले कई बार यह दोहरा चुके थे कि अर्थवय्वस्था को पटरी पर लाने और देश में निवेश प्रोत्साहित करने के लिए बड़े आर्थिक सुधारों की जरूरत है, लेकिन इस बजट में कड़े आर्थिक सुधार की पहल अथवा सख्त फैसले दिखाई नहीं देते। बजट के समय कुछ करने का समय आया तो वित्त मंत्री ने यह कहते हुए कि उनके हाथ बंधे हैं, अपने हाथ खड़े कर दिए।

तो क्या यह समझा जाना चाहिए कि वित्त मंत्री ने आगामी आम चुनाव को ध्यान में रखकर यह बजट तैयार किया है क्योंकि बजट के प्रावधान कुछ ऐसा ही इशारा करते हैं।

बजट को देखने से ऐसा लगता है कि चिदंबरम ने धनाड्य वर्ग और कॉरपोरेट जगत दोनों से एक खास दूरी बनाकर रखी है। क्योंकि पिछले बजट में जिस तरीके की मेहरबानी इन दोनों वर्गों पर दिखाई गई थी वह इस बार के बजट में नहीं दिखती।

दोनों वर्गों में से किसी भी वर्ग के प्रति बजट में मेहरबानी शायद इसलिए नहीं दिखाई गई कि यह रियायत उनकी पार्टी की ‘आम आदमी’ की छवि को कहीं नुकसान न पहुंचा दे। पार्टी की ‘आम आदमी’ की छवि को और निखारने के लिए उन्होंने शायद 43,000 अति धनाड्य लोगों पर अधिभार लगाने का फैसला किया। लक्जरी सामग्रियों, विदेशी एसयूवी कारों और रेस्तरां का उपयोग करने वाले अमीर लोगों पर कर बढ़ाने की कवायद भी पार्टी की इसी भावना को ध्वनित करती है।

सरकार ने बजट के जरिए ‘आम आदमी’ के साथ जुड़े रहने का संदेश तो देना चाहा है लेकिन उसके कदम सुधारवादी कम राजनीतिक ज्यादा लगते हैं।

मौजूदा समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर उत्साहजनक नहीं है। आर्थिक वृद्धि दर एवं विदेशी निवेश में कमी के साथ-साथ बढ़ता राजकोषीय घाटा चिंता का विषय है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार के समक्ष चुनौतियां अधिक हैं। बजट में औद्योगिक क्षेत्र के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कोई ठोस रूपरेखा नहीं दिखाई देती।

कुल मिलाकर यही कहना है कि एक मझे हुए अर्थशास्त्री मंत्री से जिस तरीके का बजट देश उम्मीद कर रहा था, उस पर यह बजट खरा नहीं उतरा है। बजट में एक साफगोई नजर नहीं आती जो कि समय की दरकार थी।

First Published: Friday, March 1, 2013, 00:00

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