Last Updated: Saturday, February 9, 2013, 20:58

रामानुज सिंह
भारतीय गृह मंत्रालय ने आखिरकार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंधों को पांच साल बाद फिर से बहाल करने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। पाकिस्तानी क्रिकेट टीम 22 दिसंबर को भारत दौरे पर आएगी। इस दरम्यान दोनों टीमें तीन वनडे और दो टी20 मैच खेलेगी। क्रिकेट भारत और पाकिस्तान में खेल नहीं, एक धर्म है। यह पूरे देश को एक सूत्र में बांधता है, जाति-धर्म से उपर उठकर राष्ट्रीय धर्म को विकसित करता है। इसी तरह क्रिकेट भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच भी प्यार और भाईचारे की कड़ी बन सकता है। इसका मिसाल कई बार देखने को मिला। जब-जब भारत-पाक के बीच क्रिकेट मैच खेले गए हैं दोनों देशों के लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई है। हालांकि दोनों देशों में उग्रवादी तत्व इस संबंधों का विरोध करते रहे हैं।
26/11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद से भारत ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट रिश्ते खत्म कर लिए थे। उसके बाद से ही पाक क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की तरफ से संबंध बहाल करने की इच्छा जताई जा रही थी। इसकी ठोस शुरूआत उस समय हुई जब पिछले साल विश्वकप के सेमीफाइनल मुकाबला मोहाली में भारत और पाकिस्तान के बीच होना तय हुआ था। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को मैच देखने का न्योता दिया था। इसके बाद गिलानी सेमीफाइनल मैच देखने भारत आए थे। तभी यह कयास लगाया जा रहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच फिर से दोतरफा क्रिकेट संबंध शुरू करने पर सहमति बन गई है। उसके बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी शेख मुईद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर शरीफ पर जियारत करने के उद्देश्य से दिल्ली पहुंचे। इस अनौपचारिक दौरे के दरम्यान पीएम मनमोहन सिंह के साथ लंच किया। खबर है कि उस दरम्यान कई मुद्दों पर बात हुई जिसमें क्रिकेट संबंध भी था।
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसला, सियाचिन की समस्या, सीमा पार से आतंकवाद, सर क्रीक सीमा विवाद, जल विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। ये सारे विवाद कभी-कभी मुखर होते रहते हैं। खासकर भारत की मुख्य चिंता सीमा पार से आ रहे आतंकवाद की है, जिस पर पाकिस्तान ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जिसका असर क्रिकेट संबधों पर पड़ता रहा है। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद भी भारत ने पाकिस्तान से क्रिकेट संबध खत्म कर लिए थे। लेकिन बाद में स्थिति सामान्य होने के बाद संबंध बहाल किए गए थे। नवंबर 2008 में मुंबई आतंकवादी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय क्रिकेट सीरीज नहीं खेली गई। जिसकी शुरूआत पांच साल बाद फिर शुरू होने जा रही है। रिश्तों के सुधार में यह शुभ संकेत है।
दोनों देशों में कुछ ऐसे धरें हैं जो यह मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधर नहीं सकते हैं। पाकिस्तान के कुछ धार्मिक कट्टरपंथी संगठन आज भी विभाजन को अपूर्ण मानते हैं, पाकिस्तानी सेना का बड़ा हिस्सा भारत को दुश्मन मानता है और भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता है। भारत में भी कट्टरपंथी विचारधारा वाले संगठनों को संबंध सुधारना बेमानी लगता है। शिव सेना ने कहा कि हम पाकिस्तान को भारत की सरजमी पर क्रिकेट खेलने नहीं देंगे, जबकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना पाकिस्तानी कलाकारों को भारतीय टीवी रियलिटी शो में बुलाने का विरोध जबरदस्त तरीके से किया है। इसके बावजूद दोनों देशों की अधिकांश जनता शांति और अमनचैन चाहती है। इसका मिसाल उस समय देखने को मिला था जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के तौर पर बस से पाकिस्तान की यात्रा की, और दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। इस दरम्यान दोनों देशों के लाखों लोगों ने वाजपेयी के इस कदम की सराहना की थी। परन्तु पाक कट्टरपंथियों को यह रास नहीं आया, फलस्वरुप कारगिल युद्ध हुआ। भारत-पाक के बीच बढ़ती दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। उस समय भी सबसे पहले क्रिकेट संबंधों पर ही गाज गिरी थी।
कहते हैं समय के साथ सब कुछ बदलता है। कारगिल युद्ध, संसद हमले और मुंबई आतंकी हमले को भूलते हुए एक बार फिर पाकिस्तान के साथ संबध बेहतर बनाने के लिए क्रिकेट का सहारा लिया गया और गृहमंत्रालय ने क्रिकेट संबध बहाल करने के लिए बीसीसीआई को हरी झंडी दे दी। भारत और पाकिस्तान के राजनीतिज्ञ और सिविल सोसायटी का एक बड़ा तबका यह मानने लगा है कि दोनों देशों को अपने रिश्ते सुधारने होंगे। इसका सही रास्ता यह है कि मतभेदों पर विचार-विमर्श करते हुए संबंधों को बेहतर बनाया जाए जैसे चीन के साथ भारत अपने संबंध बनाने में कामयाब रहा है। दोनों देशों में क्रिकेट एक जुनून है, जो दोनों देशों को करीब लाने में कारगर हथियार साबित होगा।
First Published: Saturday, November 10, 2012, 16:40