Last Updated: Thursday, February 21, 2013, 13:50
प्रवीण कुमारदेश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के बजट सत्र का आगाज हो चुका है। हालांकि बजट सत्र शुरू होने से पहले देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने हिन्दू आतंकवाद संबंधी टिप्पणी पर प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा से माफी मांग ली है, बावजूद इसके अगर नीयत साफ न हो तो विपक्षी दलों के पास संसद बाधित करने के कई बहाने अभी भी मौजूद हैं। हेलीकाप्टर सौदा, पीजे कुरियन मामला, लोकपाल विधेयक, आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश जैसे कई मसले हैं जिसपर विपक्ष द्वारा सरकार की घेराबंदी के बीच संसद का बजट सत्र काफी हंगामेदार हो सकता है।
माना जा रहा है कि यह बजट सत्र आगामी लोकसभा चुनाव से पहले अंतिम संपूर्ण बजट सत्र होगा और यह बजट सत्र ही सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए चुनाव के मैदान में जंग जीतने और हारने का आधार भी बनेगा। ऐसे में तय मानिए कि संसद में विधायी काम कम और राजनीति ज्यादा होगी और इसमें देखना दिलचस्प होगा कि इसमें जीत संसद की होती है या फिर राजनीति की। अगर राजनीति जीतती है तो एक बार फिर देश का नुकसान, देश की जनता का नुकसान और अगर संसद जीतती है तो कांग्रेस नीत सत्तारुढ़ पार्टी को फायदा। दोनों ही सूरत में जनता के लिए शून्य बटा सन्नाटा की आशंका प्रबल है।
2014 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस पार्टी की मांग है कि इस बार का बजट आम जनता को भारी राहत देने वाला होना चाहिए। बजट के अलावा सरकार तीन अध्यादेशों के बदले विधेयक पेश करेगी और उन्हें पारित कराने की पुरजोर कोशिश करेगी। इन अध्यादेशों में आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश भी शामिल है जिसमें बलात्कार और उसके बाद हत्या या पीड़ित की मौत की स्थिति में मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया है। दो अन्य अध्यादेश सेबी संशोधन और संसद एवं विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पुनर्समायोजन से जुडे हैं। सरकार इस बात का संकेत पहले ही दे चुकी है कि लोकपाल विधेयक और खाद्य सुरक्षा विधेयक उसके एजेंडा में शीर्ष पर हैं। 2014 के चुनावों में अभी करीब सवा साल का समय बाकी हैं, ऐसे में सत्तारूढ़ यूपीए मतदाताओं के सामने जाने से पहले इन विधेयकों को पारित कराना चाहती है।
लोकपाल संशोधन विधेयक भी सत्ता पक्ष के लिए समस्या खड़ी कर सकता है। केवल भाजपा ही नहीं बल्कि वाम दलों ने भी प्रवर समिति की रिपोर्ट में की गई महत्वपूर्ण सिफारिशों को विधेयक में शामिल नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की है। कृषि कर्ज छूट योजना पर नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक (कैग) की रपट का मुद्दा भी भाजपा संसद में उठाएगी। रपट में योजना में बडे पैमाने पर अनियमितताओं का जिक्र किया गया है। विपक्ष को एक बात से और नाराजगी है। वह है यूपीए द्वारा बलात्कार रोधी अध्यादेश एकतरफा जारी करना। सरकार ने कहा था कि वह जेएस वर्मा समिति की रपट मिलने के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाएगी लेकिन ऐसा नहीं किया गया और अध्यादेश लाया गया। सूर्यनेल्ली गैंगरेप मामले में पीजे कुरियन का नाम उछलने के बाद वाम दलों की मांग है कि राज्यसभा के उप सभापति कुरियन अपने पद से इस्तीफा दें। भाजपा ने भी ‘नैतिक आधार’ पर उन्हें पद से हटने की सलाह दी है।
21 फरवरी को शुरू होने वाले बजट सत्र का जो शिड्यूल है उसके तहत पहले दिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम 28 फरवरी को बजट पेश करेंगे। उसके पहले 26 मार्च को रेल बजट पेश किया जाएगा। 21 मार्च से 10 मई तक करीब सात सप्ताह से अधिक समय तक चलने वाले इस सत्र में एक महीने अंतराल भी होगा जो 22 मार्च से 21 अप्रैल तक चलेगा। इसके बाद 22 अप्रैल से दोनों सदनों की बैठक 10 मई तक चलेगी। बजट सत्र के दौरान जिन विधेयकों को पेश किया जाना है उनमें भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड संशोधन अध्यादेश-2013, संसद एवं विधानसभाओं में अनुसूचित जाति-जनजाति प्रतिनिधित्व पुर्नस्थापना अध्यादेश-2013 और आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश-2013 शामिल हैं।

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संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ के मुताबिक 16 नए विधेयक इस सत्र में पेश किए जा सकते हैं, जबकि नौ विधेयकों को आगे बढ़ाया जाएगा जो या तो लोकसभा या राज्यसभा में पेश हो चुके हैं। सत्र के दौरान भूमि अधिग्रहण विधेयक, खाद्य सुरक्षा विधेयक, लोकपाल विधेयक, सांप्रदायिक हिंसा संशोधन नियंत्रण एवं पीड़ितों का पुनर्वास विधेयक, आपराधिक कानून संशोधन विधेयक-2012, वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक-2010, बीमा कानून संशोधन विधेयक-2008, नागरिकता संशोधन विधेयक-2011, कंपनी विधेयक-2012, शिक्षा न्यायाधिकरण विधेयक-2008, व्हिसल ब्लोअर सुरक्षा विधेयक-2011, न्यायिक मानक व जवाबदेही विधेयक-2012, पेंशन विधेयक व शैक्षणिक कदाचार रोकथाम विधेयक को पारित कराने की सरकार की पुरजोर कोशिश होगी।
बहरहाल, आज से शुरू हुआ संसद सत्र मुमकिन है, 15वीं लोकसभा का आखिरी बजट सत्र साबित हो। बजट सत्र में सबसे ज्यादा ध्यान आर्थिक मसलों पर रहता है, लेकिन सबसे लंबे समय तक चलने वाले सत्र की वजह से सदस्यों के पास इसमें राष्ट्रीय जन व जीवन से जुड़े तमाम मुद्दों पर चर्चा करने का अवसर भी होता है। हाल के वर्षों में संसद जिस तरह से हंगामे का शिकार होती रही है, उसके मद्देनजर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को यह ध्यान रखना होगा कि उनकी तरफ से कोई ऐसी टीका-टिप्पणी न हो। दोनों पक्षों की ओर से एक-दूसरे को कोई ऐसा मौका न मिले जो संसद को नहीं चलने देने का बहाना बने। दरअसल संसद बहस का सर्वोच्च मंच है। इसे हंगामे और शोरगुल में तब्दील कर देना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है। इसके अलावा सत्र के दौरान जितने भी विधायी कार्य होते हैं, या फिर जो विधेयक पेश होकर पारित कराए जाते हैं, विपक्ष के ऊपर यह भारी जिम्मेदारी होती है कि वह पेश विधेयकों को सतर्कता से जांच-परखकर उनकी खामियों को उजागर करे, ताकि इन मामलों में अधिक से अधिक जनपक्षीय कानून तैयार हो सकें। इसलिए पूरे सत्र के दौरान विपक्षी दलों को सत्ता पक्ष के मुकाबले अधिक संवेदनशील होकर भूमिका निभानी होगी। विपक्ष की यह भूमिका अगले आम चुनाव के लिए भी काफी अहम होगा।
First Published: Thursday, February 21, 2013, 13:50