Last Updated: Wednesday, February 27, 2013, 16:54
बिमल कुमार वित्त वर्ष 2013-14 के लिए रेल बजट पेश कर दिया गया। चुनावी साल के मद्देनजर आम जनता और रेल मुसाफिरों को यह उम्मीद थी कि इस दफा रेल बजट राहत भरा होगा पर यह उलटे और बोझ बढ़ाने वाला निकला। हालांकि रेल बजट में यात्री किराया और नहीं बढाया गया पर टिकट पर अन्य शुल्क जरूर लगा दिए गए। वहीं, माल भाड़े में भी तकरीबन पांच प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर दी गई। नए प्रावधानों के बाद आगामी सालों में रेलवे की माली हालत कितनी सुधेरगी यह तो समय ही तय करेगा पर मुसाफिरों को अब महंगाई एक्सप्रेस पर सवार होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। ज्ञात हो कि पिछले महीने ही रेल मंत्री पवन कुमार बंसल रेल किराये में बढ़ोतरी कर चुके हैं और मुसाफिरों पर टिकट के मद में ज्यादा भार बढ़ा है। विशेषज्ञ भी इस रेल बजट को महंगाई बढ़ाने वाला करार दे रहे हैं।
जाहिर सी बात है कि माल भाड़े में जब बढ़ोतरी होती तो इसका अपरोक्ष असर मुद्रास्फीति दर यानी महंगाई पर पड़ेगा। रेल के जरिये सामग्रियों की ढुलाई महंगी होने के बाद वस्तुओं के दाम फौरी तौर पर बढ़ेंगे। ऐसे में खाद्य पदार्थों से लेकर हर जरूरी चीजों के लिए आम लोगों को और कीमत चुकाने होंगे। यानी जनता की जेबों पर और बोझ पड़ेगा।
करीब दो दशक के समय के बाद कांग्रेस के मंत्री ने रेल बजट की आधारशिला रखी। उम्मीद भी जगी थी कि रेल का सफर अब और सुहाना होगा। इसकी आस उस समय धूमिल हो गई जब टिकटों के रिजर्वेशन, कैंसिलेशन, तत्काल टिकट, सुपरफास्ट गाडियों पर शुल्क, क्लर्क शुल्क आदि पर लगने वाले शुल्कों और प्रभारों में दस रुपये से 100 रुपये तक की वृद्धि कर दी गई। यानी रेल टिकट के एवज में और दाम चुकाने पड़ेंगे।
रेल मंत्री ने अपना पहला रेल बजट पेश करते समय जिक्र किया कि डीजल कीमतों को नियंत्रण मुक्त किए जाने के फैसले का असर फिलहाल यात्रियों पर नहीं पड़ने देंगे। इससे रेलवे पर 850 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। डीजल के मद में न सही, पर इससे कहीं ज्यादा भार तो मुसाफिरों पर अन्य शुल्कों के जरिये पड़ गया।
यह निश्चित है कि मालभाड़े में वृद्धि का खामियाजा अंतत: आम जनता को ही उठाना पड़ेगा। आने वाले दिनों में सीमेंट, स्टील, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि होगी। सीमेंट व स्टील सहित तमाम औद्योगिक उत्पादों की ढुलाई बढ़ने से घर बनाने से लेकर टीवी, फ्रिज तक महंगे हो जाएंगे। रेल मंत्री की घोषणा को समझें तो यदि साल में दो बार माल भाड़ा बढ़ाया गया तो इससे महंगाई की दर में और वृद्धि होनी तय है। स्टील कंपनियां तो अभी से ही कहने लगी कि मालभाड़ा बढ़ने से घरेलू बाजार में स्टील की कीमतें पांच से आठ फीसदी तक बढ़ सकती हैं। स्टील उद्योग के लिए यह दोहरी मार है, क्योंकि उसे कोयले के साथ ही एक अन्य प्रमुख कच्चा माल आयरन ओर (लौह अयस्क) की ढुलाई पर भी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इसका स्टील से बनने वाले सारे उपकरणों पर इसका असर पड़ेगा। वहीं, कोयले की ढुलाई का बोझ बिजली कंपनियों को भी उठाना पड़ेगा। इससे बिजली की दरें बढ़ सकती हैं। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें भी इससे अछूती नहीं रहेंगी।
गौर हो कि सरकारी तेल कंपनियां लगभग 33 फीसदी डीजल, रसोई गैस और केरोसिन की ढुलाई रेलवे से करती हैं। ज्यादा रेल भाड़ा देने के बाद इस वृद्धि का बोझ आम जनता पर आगामी समय में पड़ना तय है। मालभाड़े में वृद्धि का असर कृषि क्षेत्र पर भी पड़ेगा। उर्वरक की ढुलाई बड़े पैमाने पर रेलवे के ही माध्यम से की जाती है। उर्वरक की ढुलाई का खर्च बढ़ने पर पहले से ही मुश्किलों से जूझ रहे किसान वर्ग को अधिक महंगाई से दो-चार होना पड़ेगा। इसके अलावा विभिनन खाद्यान्नों के लिए भी भाड़ा बढ़ा दिया गया है। यानी दो जून रोटी के लिए संघर्ष करती आम जनता के लिए और मुश्किलों को झेलने की रूपरेखा तय कर दी गई है। कुल मिलाकर यह उपभोक्ताओं के लिए महंगाई की एक्सप्रेस बन गई है।
रेल किराया और भाड़ा बढ़ाकर जरूर भारतीय रेल के खाते में और राजस्व आएंगे। लेकिन रेल मंत्री ने जनता के हितों का ख्याल कतई नहीं रखा। जिक्र योग्य है कि रेल बजट में लाखों भर्तियों का ऐलान किया गया। यह न भूलें कि रेल महकमे में हजारों पद बीते कई सालों से खाली पड़े हैं, पर इन्हें भरने की सुध कभी नहीं ली गई। अब चूंकि चुनावी समर की बेला नजदीक आ रही है तो नई भर्तियों का ऐलान किया गया है। देखना यह होगा कि आम चुनाव से पहले वाकई ये पद क्या भरे जाएंगे? सरकारी घोषणाओं में वादों की झड़ी कोई नई बात नहीं है।
यह उम्मीद थी कि रेल में सफर करने वाले यात्रियों की सुरक्षा शीर्ष प्राथमिकता होगी। वहीं, ट्रेनों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर कारगर कदम उठाए जाएंगे। पर सुरक्षा एवं संरक्षा की दिशा में कोई ठोस बानगी रेल बजट में नहीं नजर नहीं आई। हालांकि रेल मंत्री ने आरपीएफ की आठ नई महिला बटालियनों के गठन का ऐलान तो किया है, पर सवाल यह है कि इससे स्थितियां पूरी तरह नियंत्रित हो पाएंगी।
बीते कई सालों से रेलवे अपने लक्ष्यों से पिछड़ती आ रही है, तो क्या यह मान लें कि रेलवे की माली हालत बिलकुल खस्ता है। संभवत: इसी की कवायद मान लें कि रेल मंत्री ने इस बार लक्ष्यों में कुछ कमी की है। रेलवे को चालू वित्त वर्ष में 24600 करोड़ रुपये नुकसान होने का अनुमान है। जबकि वित्त वर्ष 2011-12 में यह घाटा 22500 करोड़ रुपये था। रेलवे की वित्तीय हालत को सुधारा जाए पर मुसाफिर भी अपने गंतव्य तक पहुंचने में सहज महसूस कर सकें।
देश का रेलवे नेटवर्क 64000 किलोमीटर तक फैला है और इतने बड़े नेटवर्क को पटरी पर दुरुस्त रखना काफी मुश्किल कार्य है। पर भारतीय रेल देशवासियों के लिए लाइफलाइन के समान है। उपाय कुछ ऐसे हों कि इसका ज्यादा भार जनता पर न पड़े।
First Published: Wednesday, February 27, 2013, 16:54