Last Updated: Thursday, June 14, 2012, 22:22
बिमल कुमार अब जबकि देश के 13वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए बिगुल बज चुका है, सियासी घटनाक्रम के बीच यह आकलन मुश्किल प्रतीत हो रहा कि इस बार राष्ट्रपति पद पर कौन आसीन होगा। क्योंकि किसी उम्मीदवार पर अब तक सहमति नहीं बन पाई है। प्रथम नागरिक बनने के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होते ही सियासी सरगर्मी इस कदर बढ़ी कि सभी दल अपने-अपने तरीके से पासा फेंकने में जुट गए। इस महाभारत में कौन दल किसके साथ होता है, यह तो कुछ दिनों के बाद पता चलेगा लेकिन राह किसी के लिए भी आसान नहीं दिख रही।
हालात इतने अनुकूल नहीं दिख रहे, जितना कुछ दिनों पहले लग रहा था कि एक या दो नाम सामने आने पर सभी राजनीतिक दलों के बीच कुछ बिंदुओं पर राय बन जाएगी। पर अब तो राय बनने की बात तो दूर की कौड़ी लग रही है और नित नए सियासी नाटक सामने आने लगे। खैर जो भी हो प्रथम नागरिक पर ‘महाभारत’ में जीत किसकी होगी, इसका फैसला 22 जुलाई तक तो हो ही जाएगा।
बीते दिन राष्ट्रपति के उम्मीदवार पर जो नाटकीय घटनाक्रम सामने आया, वह काफी चौकाने वाला था। किसी को भी इस बात का भान नहीं था कि डा. मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित किया जा सकता है। वैसे लोकतंत्र में शासन प्रणाली के मुखिया को महामहिम के पद पर विराजमान नहीं होना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि यदि किसी प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बिठाया जाएगा तो लोकतंत्र में तानाशाही की शुरुआत हो जाएगी। यह बात मौजूदा परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक भी है, लेकिन हम डा. मनमोहन सिंह की कार्यकुशलता, आचरण, ईमानदारी पर संदेह नहीं कर सकते हैं। खैर इसके पीछे जो भी राजनीतिक स्वार्थ निहित है, वह देश के लिए कतई हितकर नहीं है।
तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने रायसीना हिल्स की रेस में तीन नए नामों को सामने रख दिया। जिनमें पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, डा. मनमोहन सिंह और वरिष्ठ वाम नेता सोमनाथ चटर्जी शामिल हैं। अब इस रेस में कुल पांच उम्मीदवारों के नाम राजनीतिक फिजां में तैरने लगे हैं। इससे पहले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का नाम इस रेस में प्रमुखता से सामने आया। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ममता बनर्जी का यह कहना कि उम्मीदवार के तौर पर प्रणब मुखर्जी कांग्रेस की पहली पसंद हैं और हामिद अंसारी दूसरे पंसदीदा उम्मीदवार हैं। फिर मुलायम सिंह यादव से मुलाकात के बाद एक नए समीकरण को अंजाम देते हुए तीन नए नामों को सुझाना वाकई आश्चर्यजनक था। वहीं, ममता और मुलायम ने कांग्रेस की ओर से पेश दोनों नामों को एक सिरे से खारिज कर दिया और नए नामों को पेश कर यूपीए नेतृत्व पर अपनी मांगें मनवाने का दबाव बढ़ा दिया। वहीं, एक और घटक एनसीपी का कहना है कि नए सिरे से राजनीतिक सहमति बनाने की कोशिश की जाए। जिसके बाद यह ‘महाभारत’ काफी उलझता दिख रहा है।
मौजूदा हालात में यूपीए के घटल दलों को मनाना आसान नहीं होगा। क्योंकि कांग्रेस को इन नए नामों पर आपत्ति है। कांग्रेस पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम को दोबारा राष्ट्रपति भवन भेजने के हक में नहीं हैं। मनमोहन सिंह को भी पार्टी हटाना नहीं चाहेगी क्योंकि उन्हें राष्ट्रपति भवन भेजने से केंद्र सरकार का पूरा समीकरण ही बिगड़ जाएगा और सरकार के लिए पूरी सियासी मायने ही बदल जाएंगे। बहरहाल, कांग्रेस को यह उम्मीद है कि वह ममता और मुलायम का समर्थन हासिल करने में सफल होगी। प्रणब के नाम का विरोध करने के लिए बंगाल के किसी नेता का नाम सामने लाना जरूरी था। ऐसे में सोमनाथ दा के नाम पर भी कांग्रेस हामी नहीं भरेगी।
यह बात उल्लेखनीय है कि इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के मत मूल्य की भूमिका अहम है। राष्ट्रपति चुनाव में सपा के पास 66688 मत मूल्य हैं तो तृणमूल कांग्रेस के पास 45925 मत मूल्य हैं। दोनों पार्टियों का मत मूल्य जोड़ देने पर यह कुल मत मूल्य का दस प्रतिशत से ज्यादा होता है। कुल मत मूल्य हैं करीब 11 लाख ( कुल मत मूल्य-सभी दल- 1098882)। ऐसे में दोनों दल चुनाव में अहम हैं। लेकिन ममता और मुलायम के सियासी दांव के बावजूद वोटों के गणित में यूपीए अभी भी कमजोर नहीं है क्योंकि उसके पास अभी विकल्प की संभावना मौजूद है।
चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने की एवज में ममता और मुलायम के अपने निहित हो सकते हैं, पर मंतव्यों का पूरा न होना इस सारे उलटफेर की जड़ का एक बड़ा कारण हो सकता है। हालांकि ममता ने अपने बयान में इस बात का जिक्र किया कि केंद्र सरकार से पश्चिम बंगाल के लिए राहत पैकेज मांगना एक सतत प्रकिया है। इसको राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर देखना ठीक नहीं है। लेकिन ममता के दिल्ली पहुंचने के बाद पहले मुलायम और फिर सोनिया गांधी से मुलाकात के कदम को दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। यह न भूलें कि पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों ने केंद्र से आर्थिक पैकेज मांगा है। पहले प्रणब की दावेदारी पर ममता का रुख कुछ नरम पड़ने से ‘दादा’ के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की संभावना काफी बढ़ गई थी।
गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस ने अभी आधिकारिक तौर पर किसी का नाम घोषित नहीं किया है। राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी को लेकर आम सहमति बनाने के लिए यूपीए के घटल दलों की बैठक के बाद ही कोई नाम तय होगा। लेकिन `दादा` के नाम पर मुहर लगना लगभग तय है और कांग्रेस ने इसके संकेत भी दिए हैं।
हालांकि स्थितियां तब ज्यादा स्पष्ट हो पाएगी जब कांग्रेस की ओर से किसी का नाम सामने आएगा। अपरोक्ष रूप से दादा का नाम खूब सामने आया और एकबारगी लगा भी कि संभवत: प्रणब मुखर्जी के नाम पर सभी दलों के बीच येन-केन प्रकारेण सहमति बन जाएगी। लेकिन यूपीए सरकार की अहम घटक तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी की ओर से दादा के नाम की मुखालफत भी समझ से परे है। अभी तक कांग्रेस इस मुगालते में थी कि यदि ममता बनर्जी साथ न आई तो मुलायम उसके साथ आ जाएंगे। पर इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस का भ्रम टूटा है।
ज्ञात हो कि राष्ट्रपति चुनाव की इस मुहिम में सबसे पहले मुलायम सिंह यादव ने एक गैर राजनीतिक व्यक्ति के तौर पर डा. कलाम के नाम को रखा था। और अभी भी नए नामों में इन्हें शामिल कर अपना राजनीतिक इरादा स्पष्ट कर दिया है। इसके राजनीतिक मायने क्या हैं और इसका लाभ क्या होगा, आशय बिलकुल स्पष्ट है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने भी डा. कलाम का नाम सामने आने पर समर्थन देने की बात कहकर एक नया सियासी तीर छोड़ दिया है।
बहरहाल हम इंतजार करें 22 जुलाई का और देखें कि प्रथम नागरिक के इस महाभारत में महामहिम की कुर्सी पर कौन विराजमान होता है। इन सब के बावजूद कांग्रेस के लिए अपने राष्ट्रपति के उम्मीदवार को जीता पाना उतना आसान नहीं होगा।
First Published: Thursday, June 14, 2012, 22:22