Last Updated: Friday, April 27, 2012, 17:42
बिमल कुमार अग्नि-5 मिसाइल और रीसैट-1 की सफलता से दुनिया भर में भारत की साख और धमक बढ़ी है। इन दोनों महत्वपूर्ण उपलब्धि के पीछे महिला वैज्ञानिकों का हाथ है, जिनकी बदौलत आज भारत ‘सुपरपावर’ बनकर दुनिया की विशिष्ट देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। देश के कद को बढ़ाने वाली ये महिला वैज्ञानिक (रॉकेट वूमेन) हैं टेसी थॉमस और एन. वालारमथी, जिन्होंने अपने कुशल नेतृत्व में वो कर दिखाया जिस पर हर भारतवासी को नाज है।
इन दोनों अहम सफलताओं के बाद भारत के प्रति कुछ ताकतवर देशों का नजरिया तक बदल गया। सामरिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भारत की ताकत बढ़ने के बाद पड़ोसी देश प्रतिक्रिया देने से भी गुरेज करते नजर आए। पांच हजार किलोमीटर की मारक क्षमता वाले अग्नि-5 मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद अमेरिका और दुनिया के अन्य देशों ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन चीन में खलबली मच गई। उसने तो बौखलाहट में यहां तक कह डाला कि मिसाइल मामले में चीन के आगे भारत कहीं नहीं ठहरता। बौखलाना लाजिमी भी था क्योंकि इस मिसाइल की जद में पूरे चीन समेत आधी दुनिया जो आ गई है।
अग्नि-5 की सफलता के बाद महिला वैज्ञानिक ‘मिसाइल वूमेन’ टेसी थॉमस सुर्खियों में आ गईं। क्योंकि उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से भारत को ‘सुपरपावर’ बना दिया और दुनिया के चंद विशिष्ट देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। पांच हजार किलोमीटर की मारक क्षमता वाले अग्नि-5 मिसाइल की सफलता के बाद न केवल उनका कद बढ़ा बल्कि विश्व भर में भारत की साख बढ़ी है। केरल के अलपुझा में 1964 में जन्मी टेसी थॉमस इस समय अग्नि परियोजना की निदेशक (मिशन) हैं। वह देश की अकेली ऐसी महिला वैज्ञानिक हैं, जो किसी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक परियोजना का नेतृत्व कर रही हैं।
अग्नि-5 की सफलता के बाद बेहद खुश टेसी थॉमस ने कुछ पुराने वाकये को याद कर कहा कि अग्नि-3 मिसाइल का जब परीक्षण हुआ था तो वह पहली बार में विफल हो गया था। लेकिन इस बार सैकड़ों वैज्ञानिकों और तकनीशियनों की कड़ी मेहनत रंग लाई और नतीजा सामने हैं। टेसी बचपन से ही यह सोचती थीं कि एक दिन वह ऐसा रॉकेट बनाएंगी जो आसमान में बुलंदियों को छुएगा। स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनका रुझान रॉकेट और मिसाइलों की ओर था। डीआरडीओ में आने के बाद से उनके सपनों को पंख लग गए और उन्हें अग्नि प्रोजेक्ट के लिए चुना गया। टेसी अग्नि-2 से ही बतौर वैज्ञानिक जुड़ीं और अग्नि-3 और 4 में उनकी भूमिका पूरी तरह परियोजना निदेशक की थी। और अग्नि-5 में वह मिशन निदेशक हैं।
टेसी के करियर ने उस समय उड़ान भरी जब उन्हें अग्नि-4 की वैज्ञानिकों की टीम का प्रमुख चुना गया। इसके बाद अग्नि-5 जैसी अति जटिल मिसाइल के परीक्षण की बागडोर को संभाला। उनकी जिम्मेदारी अग्नि के डिजाइन, निर्माण से लेकर प्रक्षेपण तक के कार्य की देखरेख और सही तरीके से निष्पादन सुनिश्चित करने की थी। टेसी के मन में इस बार भी मिसाइल के प्रक्षेपण को लेकर आशंकाएं थी। 18 अप्रैल को अग्नि-5 को लांच करने की तैयारी पूरी हो चुकी थी लेकिन मौसम की खराबी के कारण लांचिंग स्थगित करनी पड़ी। जिसके बाद उन्हें निराशा भी हुई, लेकिन हार नहीं माना।
आखिरकार 19 अप्रैल को इसे छोड़ने में कामयाब मिली। अग्नि प्रोजेक्ट में तकरीबन एक हजार वैज्ञानिक और तकनीशियन कार्यरत हैं। इसमें करीब डेढ़-दो सौ महिलाएं भी हैं। टेसी के साथ ही करीब आधा दर्जन महिला साइंटिस्ट कार्य कर रही हैं। अभी अग्नि के और परीक्षण होने बाकी हैं और टेसी की ख्वाहिश उन्हें सफलतापूर्वक अंजाम देने की है। यह तय है कि जब तक ऐसी महिला वैज्ञानिक हैं, भारत अभी और ऊंचाइयों को छुएगा। टेसी अपनी कामयाबी का बहुत कुछ श्रेय पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम को देती हैं। इंजीनियंरिंग करने के बाद टेसी जब आई थीं तो अग्नि परियोजना से जुड़ीं। उस समय उन्हें कलाम साहब के साथ काम करने का मौका मिला था। टेसी का कहना है कि कलाम के साथ कार्य करने से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली। वे मेरे रोल मॉडल और गुरु हैं। भले ही लोग मुझे मिसाइल वूमेन कहें, लेकिन डा. कलाम के सामने मेरी हस्ती कुछ भी नहीं।
वहीं, स्वदेशी तकनीक से बनाए गए देश के पहले रडार इमेजिंग सेटेलाइट रीसेट-1 (उपग्रह जो बादलों के पार झांक सकेगा) का सफल परीक्षण हुआ। रीसेट-1 वैज्ञानिकों की दस साल की मेहनत का नतीजा है। अग्नि-5 परियोजना की तरह रीसेट का पूरा जिम्मा भी महिला वैज्ञानिक पर था। तमिलनाडु की एन. वालारमथी ने इसे बखूबी निभाया। भारत के अब 11 दूरसंवेदी उपग्रह अंतरिक्ष में हैं, जो दुनिया में सर्वाधिक हैं। इस तरह भारत ने इन महिला वैज्ञानिकों की बदौलत आसमां की जीत लिया है। रिसैट-1 का प्रक्षेपण न केवल इस क्षेत्र में देश की प्रगति, बल्कि यह विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते कदम को भी दर्शाता है। इस पूरी परियोजना को वालारमथी ने ही निर्देशित किया जो भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के बेंगलुरू स्थित उपग्रह केंद्र में रिसैट-1 की परियोजना निदेशक हैं।
वालारमथी ने इस उपग्रह के छूटने और इसके कार्य निष्पादन के लिए कड़ी मेहनती की और इसके प्रक्षेपण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। गौरतलब है कि इसरो में सैटेलाइट प्रोजेक्ट निदेशक बनने वाली वलारमाथी दूसरी महिला हैं। इससे पहले टीके अनुराधा ने संचार उपग्रह जीसैट-12 की प्रोजेक्ट निदेशक थीं। इन अहम सफलताओं के बाद परमाणु और मिसाइल के क्षेत्र में अब भारत ने अपने प्रतिद्वंद्वी चीन के खिलाफ परमाणु प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर ली है। कि अमेरिका भी अब चीन की ओर से पैदा हो रही रणनीतिक चुनौती से निपटने की कोशिशों के तहत भारत का समर्थन करने को मजबूर है।
अग्नि-5 में इस्तेमाल की गई तकनीकें अमेरिका जैसे देशों की मिसाइलों में उपयोग होने वाली तकनीक से भी बेहतर है। पूर्णत: स्वदेश में विकसित इस मिसाइल के चलते ही आज भारत इस मुकाम तक पहुंच पाया और इसके पीछे महिला वैज्ञानिक एवं उनकी टीम का हाथ है। इस बेहद अहम उपलब्धि के लिए ये महिला वैज्ञानिक खासा बधाई की पात्र हैं।
First Published: Friday, April 27, 2012, 23:22