Last Updated: Sunday, March 17, 2013, 18:38
प्रवीण कुमारबिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अधिकार रैली के बहाने तीर छोड़कर कांग्रेस और भाजपा दोनों को इस बात का अहसास करा दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में सरकार उसी की बनेगी जिसके पक्ष में वह खड़े होंगे। लेकिन देश की राजनीति का मिजाज अगर भांपें तो नीतीश कुमार की यह रामलीला भाजपा के लिए उतनी अहम नहीं जितनी कांग्रेस के लिए या कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए।
महंगाई और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस नीत संप्रग-2 की सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में कुछ नए गठबंधन सहयोगी चाहिए। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस संप्रग से पहले ही नाता तोड़ चुकी हैं। संप्रग के प्रमुख घटक एम. करुणानिधि की द्रमुक ने श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर केंद्र की धीमी प्रतिक्रिया की आलोचना करते हुए धमकी दी कि अगर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अमेरिकी प्रस्ताव पर वह संशोधन पेश करने में नाकाम रहता है तो पार्टी सत्तारुढ़ गठबंधन से बाहर हो सकती है। माया की बसपा और मुलायम की सपा पर बहुत भरोसा किया नहीं जा सकता है।
शरद पवार की एनसीपी की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं और अगर 2014 के चुनाव में उसे अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी होती नहीं दिखी तो वह भी संप्रग के कुनबे से खिसक सकती है। ऐसे में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की नीतीश की मांग को मानकर कांग्रेस एक नई चाल चलकर बाजी मार सकती है। बाजी मारने की बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अगर नीतीश संप्रग गठबंधन में शामिल हो गए तो बाकी सहयोगी जो मौका पाते ही कांग्रेस से सौदेबाजी पर उतर आते हैं वो भी शांत हो जाएंगे। कांग्रेस के लिए नीतीश की जेडीयू के साथ समझौता करना जितना सहज है उतना ही कई मायनों में फायदेमंद भी है। रामलीला मैदान में आयोजित अधिकार रैली में नीतीश कुमार ने जो भाषण दिया उसमें उन्होंने इस बात के साफ संकेत दिए हैं कि जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा, दिल्ली की सत्ता में वही बैठेगा।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने अपने बजट भाषण में विशेष राज्य के दर्जे के मापदंड बदलने की बात कहकर नीतीश को जो संदेश दिया था, नीतीश ने इशारों-इशारों में अधिकार रैली के बहाने रामलीला मैदान में उसका जवाब दे दिया। नीतीश ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर केंद्र सरकार को यह साबित करना होगा कि आवाज दिल से निकली है या नहीं। उन्होंने कहा कि अभी नहीं तो 2014 में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना ही होगा। दिल्ली में वही बैठेगा जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा। नीतीश ने कहा कि बिहारी बुद्धू नहीं होता है। दिल से आवाज निकली है या नहीं, वह यह अच्छे से समझता है। जाहिर है, अधिकार रैली के बहाने नीतीश ने तीर छोड़कर इस बात का साफ संकेत दे दिया है कि विशेष राज्य का दर्जा देने पर वह संप्रग का साथ दे सकते हैं।
हालांकि नीतीश की अधिकार रैली बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के नाम पर थी। लेकिन इसकी असलियत कुछ और ही बयां करती है। राजनीतिक पंडितों को मानना है कि यह पूरा खेल साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर खेला जा रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध कर नीतीश राजग को अपनी ताकत का अहसास करा चुके हैं और अब दिल्ली में अधिकार रैली का आयोजन कर वे नरेंद्र मोदी की तरह देश और दिल्ली के राजनेताओं को दिखना चाहते हैं कि उनमें भी काफी दम है। माना यह भी जा रहा है कि विकास के साथ अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के बूते नीतीश भी राजग की ओर से प्रधानमंत्री पद का सपना देख रहे हैं। इसीलिए मोदी के गुजरात प्राइड की तरह वह भी बिहार की गौरव गाथा को हवा देने के पूरे मूड में हैं।
नीतीश के करीबी लोग अक्सर करते हैं कि नीतीश कुमार को अपना सपना पूरा करने के लिए किसी अन्य दल का दामन पकड़ने से परहेज नहीं है। लेकिन रामलीला मैदान में छोड़े गए नीतीश के तीर नरेंद्र मोदी को लेकर फ्रंट मोर्चे पर खेल रही भाजपा को भी बैकफुट पर धकेलने की एक कोशिश है। निगाहें और निशाना अलग-अलग होने के इस खेल में जदयू और कांग्रेस के अपने-अपने स्वार्थ छिपे हैं। तीर छाप वाले जदयू को अपनी सत्ता साझीदार भाजपा के कमल पर निशाना लगाने में कांग्रेस का भरपूर सहयोग मिल रहा है। नरेन्द्र मोदी के सवाल पर भाजपा से रिश्ता टूटने जैसे मुश्किल वक्त में नीतीश अपने कथित कांग्रेसी कनेक्शन की बात चलने रहने देना चाहते हैं।
जहां तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात है तो यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मौजूदा शर्तों या मापदंडों के रहते बिहार या अन्य पिछड़े राज्यों को विशेष श्रेणी में रखना कतई संभव नहीं होगा। इसके लिए मापदंड बदलना भी सरकार के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि तब अनेक राज्यों से ऐसी मांगें उठ खड़ी होंगी। विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों में देश के पर्वतीय क्षेत्र वाले 11 राज्य शमिल हैं। इन राज्यों को उनके आर्थिक या औद्योगिक विकास के लिए विभिन्न करों या शुल्कों में खास रियायतें मिलती हैं। केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार ने एक राजनीतिक रणनीति के तहत इस सन्दर्भ में `शर्त संशोधन` जैसी संभावना भले ही उछाल दी हो, लेकिन ऐसा व्यवहार में हो पाना मुश्किल ही लगता है। ऐसे में क्या माना जाए? बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर सिर्फ और सिर्फ राजनीति हो रही है या फिर इसको लेकर नीतीश और कांग्रेस वाकई गंभीर हैं।

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विशेष राज्य का दर्जा देने की राजनीति के इस खेल को लेकर मेरी समझ यह कहती है कि यह सिर्फ और सिर्फ 2014 के लोकसभा चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दिल्ली से दूर रखने की नीतीश और कांग्रेस की एक मिलीजुली साजिश है। देश में नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से कांग्रेस बेहद घबराई हुई है। नीतीश भाजपा आलाकमान से पहले ही यह बात कह चुके हैं कि राजग में मोदी की पीएम पद पर उम्मीदवारी की स्थिति में उनका गठबंधन में बने रहना मुश्किल होगा। राजनीतिक विश्लेषक यहां तक कह रहे हैं कि भाजपा का एक धड़ा जो नरेंद्र मोदी का धुड़ विरोधी है वह भी नीतीश को उकसाने से बाज नहीं आ रहे हैं। जाहिर है मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस और नीतीश आपस में हाथ मिला लें तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बहरहाल, हम यहां बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसको लेकर जो राजनीतिक चाल चली जा रही है उससे इस बात का संदेह बढ़ता है कि नीतीश कुमार कहीं `डगरा का बैगन` न बन जाएं। इसमें कोई शक नहीं कि बिहार के विकास के लिए नीतीश ने काफी पसीना बहाया है और इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। लेकिन बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जिस तरह से बिहारी समुदाय पटना के गांधी मैदान से चलकर दिल्ली के रामलीला मैदान तक का सफर तय किया है और इसे एक जन-आंदोलन का रूप दिया है उसे राजनीति की भेंट न चढ़ने दिया जाए। नीतीश जी! यह आपकी जिम्मेदारी है।
First Published: Sunday, March 17, 2013, 18:29