Last Updated: Thursday, September 19, 2013, 09:37
बिमल कुमारराष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले साल दिसंबर की सर्द रात में छह दरिंदों ने ऐसा एक मासूम लड़की पर ऐसा कहर बरपाया, जिसे सुनकर सभी के रौंगटे खड़े हो गए और पूरा देश स्तब्ध हो गया। किसी न सपने में भी नहीं सोचा था कि हैवानियत और वहशीपन का ऐसा नंगा नाच किया जा सकता है और वह भी सरेआम देश की राजधानी में। दिल्ली और देश में रेप की यह कोई पहली वारदात नहीं थी, इससे पहले भी अनगिनत केस सामने आए। परंतु एक पारा मेडिकल छात्रा के साथ हुए गैंगरेप की वारदात ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस जघन्य घटना की गूंज विदेशों तक में सुनाई दी। आलम यह हो गया कि राष्ट्रीय राजधानी को `रेप कैपिटल` कहा जाने लगा। इस गैंगरेप ने दिल्ली के माथे पर `रेप कैपिटल` का तोहमत लगा ही दिया। इस घटना के बाद सबकी जुबां पर बस एक ही सवाल था कि `रेप कैपिटल` में हम कैसे सुरक्षित रहें। अपने परिवार की कैसे हिफाजत करें?
रेप की वारदात थमने की बात तो दूर, इसकी बाढ़ आ गई है। राजधानी की सड़कों पर बसों, कारों व अन्य वाहनों में चलने वाली महिलाएं व लड़कियां आए दिन रेप की वारदात के बाद काफी सहम गई हैं। उन सबका यही कहना है, `सफर करना तो मजबूरी है, मगर वे काफी सहमी रहती हैं`। यही नहीं, अब तो घरों के भीतर भी दुष्कर्म के ऐसी वारदातें हो रही हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि महिलाएं व लड़कियां अब घरों के भीतर भी महफूज नहीं हैं। जरा सोचिये, यदि देश की राजधानी में यह आलम है तो बाकी देश का क्या हाल होगा?
`निर्भया` के साथ हुई जघन्य वारदात रेयरेस्ट ऑफ रेयर थी। इस केस के सभी गुनहगारों को आखिरकार फांसी की सजा सुना दी गई। अब होना तो यह चाहिए कि `निर्भया` जैसी अन्य पीडि़ताओं के मामलों में भी गुनहगारों को मौत की सजा मिलनी चाहिए। जब तक अपराधियों में कानून का खौफ नहीं होगा, तब तक ऐसी वारदातों पर अंकुश के प्रयास निरर्थक होंगे। इसके लिए सरकार को हर स्तर बारीकी से व्यापक विमर्श कर एक ऐसा कानून लाना होगा, जो महिलाओं व लड़कियों की पूरी हिफाजत करे। साथ ही वे समाज व देश में गर्व के साथ जी सकें। यदि आज वो सहमी हैं तो इसके लिए हमारी व्यवस्था कसूरवार है। इसे हर स्तर पर दूर करना ही होगा।
दिल्ली गैंगरेप के एक दोषी (राम सिंह) ने सुनवाई के दौरान आत्महत्या कर ली और एक किशोर को सजा सुनाई जा चुकी है। जबकि इस मामले के किशोर दोषी ने ही पीडि़त लड़की के साथ `सबसे ज्यादा क्रूरता` बरती थी। किशोर न्याय बोर्ड ने उसे तीन वर्षों के लिए सुधार गृह में भेजने का आदेश दिया। यह किशोरों को दी जाने वाली अधिकतम सजा है। यह किशोर अब 18 वर्ष की उम्र सीमा को पार कर चुका है। इस बात को लेकर भी विरोध हुआ कि किशोर अपराधी को कठोरतम सजा मिलनी चाहिए। महज किशोर के नाम पर उसे कठारे सजा के दायरे में न लाना, घोर अन्याय होगा। होना भी यही चाहिए था और सरकार को निश्चित ही कानून में संशोधन कर ऐसे दुर्दांत अपराधी के लिए कठोर सजा का प्रावधान करना चाहिए ताकि भविष्य में वहशीपन की ऐसी कोई घटना सामने न आए।
दिल्ली में पिछले वर्ष 16 दिसंबर की रात गैंगरेप की घटना के बाद इस तरह की कई सारी घटनाएं घटीं। हैरतअंगेज बात यह कि इस साल के पहले आठ महीनों में ही रेप के 1036 मामले अब तक दर्ज किए जा चुके हैं। एक अध्ययन के अनुसार, पिछले 10 वर्षों का यह सर्वाधिक आंकड़ा है। एक जनवरी से 31 मार्च की पहली तिमाही में रेप के 393 मामले दर्ज हुए जो इसी दौरान साल 2012 के 152 मामलों से करीब दोगुने से भी ज्यादा हैं।
जबकि एक अप्रैल से 15 अगस्त के बीच के साढ़े चार महीनों में रेप के 643 मामले दर्ज किए गए। जबकि एक जनवरी से 15 दिसंबर, 2012 के दौरान 661 मामले दर्ज किए गए थे। साल 2011 की इसी अवधि के दौरान 564 मामले दर्ज किए गए थे। साल 2010 में दुष्कर्म के 507 मामले, 2009 में 469 मामले दर्ज किए गए थे। 2008 में यह आंकड़ा 466, जबकि 2007, 2006, 2005, 2004 और 2003 में क्रमश: 598, 623, 658, 551, और 490 था। ये वो आंकड़े हैं जो पुलिस के सामने आए और उसे आपराधिक रिकार्ड में दर्ज किया गया। जबकि हकीकत यह है कि ऐसे हजारों मामले पुलिस के सामने नहीं आ पाते हैं। इसका कारण यह है कि इनमें से अधिकांश मामले दब जाते हैं। लोक मर्यादा, समाज में अपनी जगह खोने की डर से अधिकांश पीडि़त परिवार इसे दफन करने के लिए मजबूर हैं। जाहिर है इन हालातों में ऐसी वारदात को अंजाम देने वालों का हौसला बढ़ जाता है। थोड़े बहुत जो पकड़े भी जाते हैं, कुछ साल की सजा के बाद सलाखों से बाहर निकलकर आजाद हो जाते हैं।
महिलाओं एवं लड़कियों के खिलाफ 90 फीसदी रेप, छेड़छाड़ आदि आपराधिक मामलों में अपराध को उन लोगों ने अंजाम दिया, जो उन्हें जानते थे या उनके करीबी थे। अजनबियों द्वारा महिलाओं के खिलाफ अपराध करने की दर काफी कम रही है। यह बात पुलिस जांच में भी सामने आई है। यह आंकड़ा पूरे देश में इस तरह की वारदातों को परिलक्षित करता है कि महिलाएं व लड़कियां आज किसी भी रूप में सुरक्षित नहीं है। बीते दिनों एक सर्वे आया था, जिसमें दस में से छह लड़कियों ने कहा था कि वे बचपन में अपने किसी करीब रिश्तेदार द्वारा छेड़छाड़ का शिकार बने।
अधिकांश रेप के मामलों में अपराधियों के परिचित होने के कारण ऐसे अपराधों को रोकना कठिन हो जाता है। पुलिस इन्हें रोक भी तो कैसे। इन हालातों में पूरी सामाजिक संरचना को सुदृढ़ करने की जरूरत है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है।
दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद न केवल देशभर में प्रदर्शन हुए बल्कि भारी जन दबाव के कारण संसद ने दुष्कर्म के खिलाफ कानून को और कठोर बनाया। रेप निरोधी कानून में और कुछ प्रावधान जोड़कर इसे सख्त करने की जरूरत है ताकि ऐसी जघन्य वारदात को अंजाम देने वालों के मन में भय पैदा हो सके। इस तरह के क्रूर अपराध के लिए ये लोग केवल मृत्युदंड के काबिल हैं। ऐसे गुनहगारों के लिए केवल एक ही सजा होनी चाहिए मृत्युदंड।
First Published: Friday, September 13, 2013, 17:38