Last Updated: Monday, February 25, 2013, 17:53
रामानुज सिंहभारतीय जनमानस की जीवन रेखा कही जाने वाली भारतीय रेल को लेकर एक बार फिर लोगों के मन में सवाल उठने शुरू हो गए हैं। क्या आगामी रेल बजट में रेलवे प्रबंधन उसी घिसी-पिटी राहों पर चलेगी या फिर उसमें कुछ सुधार की कवायद भी होगी। यूपीए सरकार के रेल मंत्री पवन बंसल ने मंत्री पद की शपथ लेने के बाद कहा था कि हम रेल यात्री किराया बढ़ाएंगे लेकिन सुविधाएं भी बढ़ाएंगे। तीन महीने से अधिक समय गुजरने के बाद यात्री किराया में बढ़ोतरी जरूर की गई लेकिन ट्रेनों के देरी से चलने, यात्रियों की सुरक्षा व अन्य सुविधाओं को लेकर रेल मंत्री ने कोई पहल नहीं की।
दरअसल रेलवे तंत्र को सुचारू रुप से चलाने के लिए कर्मचारियों से लेकर अनेक संसाधनों की जरूरत होती है। इस तंत्र से जहां सरकार को बड़ी आय हो सकती है, सरकार के ढीले रवैये की वजह से अक्सर घाटे का रेल बजट पेश किया जाता है। इसका लेखा-जोखा रखने के लिए हर साल फरवरी के अंतिम सप्ताह में देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में बजट पेश किया जाता है। हर वर्ष की तरह इस साल भी 26 फरवरी को रेल मंत्री रेल बजट पेश करेंगे और इसके आय और व्यय का ब्यौरा संसद में पेश करेंगे।
कुछ महीने पहले रेल मंत्री की जिम्मेदारी संभालने वाले पवन कुमार बंसल ने हाल ही में रेल किराये में बढ़ोतरी की है। रेल मंत्री के अनुसार, इस किराया वृद्धि से 6600 करोड़ रुपए की आय होगी जिसका खर्च यात्रियों की सुविधा पर किया जाएगा। गौरतलब है कि रेल यात्री किराये में बढ़ोत्तरी 10 वर्ष बाद की गई। इससे पहले बने रेल मंत्रियों में दिनेश त्रिवेदी को छोड़कर मुकुल राय, ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवाल और नीतीश कुमार किसी ने रेल किराए में वृद्धि नहीं की थी। लालू प्रसाद ने तो अपने मंत्रित्वकाल में रेल किराये को घटाने के बावजूद 20 हजार करोड़ का फायदा दिखाया था। ममता बनर्जी ने आम आदमी पर बढ़ते बोझ का हवाला देकर किराया नहीं बढ़ाया। इतना ही नहीं ममता बनर्जी जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी तो अपने स्थान पर दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री बनाया। दिनेश त्रिवेदी ने रेलवे के खस्ता हाल को देखते हुए रेल किराये में बढ़ोतरी की घोषणा की थी, लेकिन यूपीए की अहम घटक तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी को यह बढ़ोतरी नागवार गुजरी और दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
बहरहाल, बजट से पहले रेल यात्री किराया बढ़ाया जा चुका है। हमारे पास नए रेल मंत्री हैं जिनपर हमारी उम्मीदें टिकी हैं। सरकार के मुताबिक भारतीय रेल की अर्थव्यवस्था खराब दौर से गुजर रही है। रेलवे घाटे में चल रहा है। देश की लाइफलाइन को पटरी पर लाना बेहद जरूरी है। जाहिर है रेलवे की माली हालत सुधारने के लिए विकल्प तो कई हैं लेकिन सरकार उसी विकल्प पर गौर करती है जो बेहद आसान होता है और वो आसान विकल्प है यात्री किराया और मालभाड़ा बढ़ाने का। इस लिहाज से आगामी रेल बजट लोगों की उम्मीदों पर कितना खड़ा उतरता है यह 26 फरवरी को ही पता चल पाएगा।
रेल किराये में बढ़ोतरीतेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी ने भी रेलवे का बजट बिगाड़ दिया है। इस सूरते हाल में रेल किराया में बढ़ोतरी करना लाजमी था। पर क्या इस वृद्धि का बोझ आम आदमी खासकर सामान्य श्रेणी और स्लीपर द्वितीय क्लास के यात्रियों पर डाला जाना उचित है जो पहले से ही महंगाई की मार से मुश्किल से जीवन-यापन कर रहा है। अगर सरकार सही मायने में रेलवे को घाटे से उबारना चाहती है तो सबसे पहले राजधानी, शताब्दी, एसी क्लास और स्लीपर क्लास में सांसदों, अति विशिष्ठ व्यक्तियों समेत जो आयकर सीमा के दायरे में आता हो उसे किसी भी तरह की रेल यात्रा में छूट नहीं मिलनी चाहिए। रेलवे को घाटे से उबरने के लिए कड़े फैसले लेने की जरूरत है। उन्हें अपने कर्मचारियों को भी जो आयकर सीमा में आता हो यात्री किराये में किसी तरह की छूट नहीं देना चाहिए। सामान्य और स्लीपर क्लास को छोड़कर सभी श्रेणी के यात्री किराये में समय-समय पर बढ़ोतरी कर घाटे को कम किया जा सकता है।
समुचित यात्रा सुविधा की आवश्यकतारेल यात्रा सुलभ और आकर्षक बनाने की जरूरत है ताकि यात्रियों की संख्या में और बढ़ोतरी हो सके। सड़क मार्ग से सफर करने वाले लोग यात्रा के लिए रेलमार्ग का ही चयन करे। विश्वस्तरीय सुविधाएं देनी होगी। ट्रेन के टाइम टेबल पर ध्यान देना होगा। गाड़ियों को नियत समय पर चलानी होगी। साफ-सफाई, खाने-पाने की समुचित व्यवस्था करनी होगी। उसकी गुणवत्ता में बढ़ोतरी करनी होगी। उम्मीद है सरकार मजबूत इच्छा शक्ति के साथ इन कमियों को दूर करेगी।
ट्रेन हादसे पर काबू पानाभारत में हर साल कहीं न कहीं रेल दुर्धटनाएं होती है। इस पर काबू पाने के लिए आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल होना चाहिए। मानवीय भूलों पर नियंत्रण पाने के लिए रेलकर्मी को बेहतर ट्रेनिंग की आवश्यकता है। हाल में महाकुंभ मेले के मौनी आमावश्या के दिन इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे में 36 श्रद्धालुओं की मौत ने रेलवे को कटधरे में ला दिया है। इस हादसे की वजह ऐनमौके पर ट्रेन का प्लेटफॉर्म का बदलना माना जा रहा है। ऐसा अक्सर होता है। यात्री पहले से घोषित प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार कर रहे होते हैं। पर जब ट्रेन आने का समय होता है तो अचनाक रेलवे द्वारा उद्घोषणा की जाती है कि अब ट्रेन अन्य नंबर के प्लेटफॉर्म पर आ रही है। इससे यात्री अपने सामान के साथ प्लेटफॉर्म बदलने में जल्दबाजी करता है। और पहले हम पहले हम की चक्कर में हादसे हो जाते हैं। इस पर रेल मंत्री को गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
समुचित सुरक्षा की जरूरतट्रेन यात्रा के दौरान यात्री अपने आपको काफी असुरक्षित महसूस करता है। ट्रेन में लूटखसोट, झीनाझपटी जैसी वारदातें अक्सर देखने-सनने को मिलता है। खासकर महिलाओं की सुरक्षा को बेहतर करना और भी जरूरी है क्योंकि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन शोषण की घटना भी होती रहती है। इसलिए सुरक्षा व्यवस्था और पुख्ता करने की जरूरत है। इसके अलावा ट्रेन में हिजरों का भी आतंक व्याप्त है। हिजरे यात्रियों से जबरन उगाही करते हैं।
टिकट, ट्रेन और प्लेटफॉर्मवैसे तो टिकट की कालाबाजारी को रोकने के लिए रेलवे ने हाल ही कई बेहतर फैसले लिए है। तत्काल टिकट खरीदारी और यात्रा के दौरान पहचान पत्र का होना जैसे फैसले काफी कारगर साबित हो रहे हैं। फिर भी इसमें और सुधार की जरूरत है। व्यस्त स्टेशनों पर सामान्य श्रेणी के टिकट काउंटर पर टिकट लेने के लिए लंबी लाइनें होती हैं। जिससे कई बार टिकट के चक्कर में यात्रियों की ट्रेनें छूट जाती हैं। इसलिए सामान्य श्रेणी के काउंटर की संख्या बढ़नी चाहिए। साथ ही प्लेटफॉर्म टिकट भी आसानी से और जल्द उपलब्ध करने की व्यवस्था होनी चाहिए। प्लेटफॉर्म की साफ-सफाई और बैठने की सुविधा अधितकर स्टेशनों में ना के बराबर होती है। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। ऑफ सीजन को छोड़कर लंबी दूरी के ट्रेनों में काफी भीड़ होती है। जिससे यात्रा बेहद असुविधाजनक होती है। इसके निदान के लिए ट्रेनों की संख्या बढ़नी चाहिए। वेटिंग टिकट की संख्या काफी कम होनी चाहिए। जिससे स्टेशनों पर अफतफरी और हादसे से बचा जा सकता है या वेटिंग टिकट के हिसाब से दूसरी ट्रेन चलाकर वेटिंग के यात्रियों को उस ट्रेन में शिफ्ट कर देना चाहिए। जिससे यात्रा परेशानी भरा नहीं होगा।
रेल पटरियों की संख्या में वृद्धि की आवश्यकतादेश की बढ़ती आबादी को देखते हुए जिस हिसाब से हर साल ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाती है। उस हिसाब से रेल पटरियों की संख्या नहीं बढ़ाई जाती है। रेल मार्गों पर ट्रेनों की भीड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। जिससे यात्रा में काफी वक्त लगता है।
लोकल ट्रेनों का टाइम टेबलदेश भर में लोकल यात्री ट्रेनों की संख्या काफी है। हर छोटे से बड़े शहरों में लोकल ट्रेनें चलती हैं। परन्तु व्यवसायिक तौर पर ये ट्रेनें सफल नहीं हैं। इसके लिए रेलवे जिम्मेदार है। ट्रेन का सही समय पर एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर नहीं पहुंचने से यात्रियों के बड़ा तबका सड़क मार्ग से अधिक किराया देकर यात्रा करने पर मजबूर होता है। अगर रेलवे लोकल ट्रेनों के टाइम टेबल को मुस्तैदी से अमल करे तो निश्चित रूप से लोकल ट्रेनों से बहुत फायदा होगा।
उपर्युक्त उम्मीदों के अलावे हाईस्पीड ट्रेन भी पर द्रूतगति से काम होना चाहिए ताकि हम भी चीन की तरह विकास की रेस में और तेज गति आगे बढ़ सकेंगे। माल भाड़े को भी इस हिसाब से बढ़ाना चाहिए, जिससे आम आदमी पर महंगाई का बोझ कम पड़ सके। अंत में हम रेलमंत्री से उम्मीद करते हैं कि 2013-2014 के रेल बजट में रेलवे की बेहतरी के साथ-साथ यात्रियों पर भी ध्यान में रखेंगे।
First Published: Sunday, February 17, 2013, 16:46