संस्कृति और आस्था का अद्भुत सैलाब है महाकुंभ

संस्कृति और आस्था का अद्भुत सैलाब है महाकुंभ

संस्कृति और आस्था का अद्भुत सैलाब है महाकुंभसंजीव कुमार दुबे

दुनिया का सबसे बड़ा मेला, सदी के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ का आगाज हो चुका है। गंगा, यमुना और सरस्वती जो त्रिवेणी भी कहलाती है, संगम तट पर एक नया शहर बस चुका है। लगभग 54 दिनों तक चलने वाले इस महामेले के लिए शहर में सभी बुनियादी सुविधाएं जुटाई गई है। करीब 58 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले परिसर को कुल 6 जोन और 14 सेक्टरों में विभाजित किया गया है। कुंभ मेला 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से शुरू हो गया है। यह 10 मार्च तक चलेगा, जिसमें करोड़ों लोग भाग लेंगे। माना जा रहा है कि इस दौरान 10 करोड़ से ज्यादा लोग गंगा में स्नान करेंगे।

महाकुंभ 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इसका आयोजन देश में सिर्फ चार जगहों पर यानी इलाहाबाद नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में होता है।

खगोल गणनाओं के मुताबिक यह महामेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में, और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को कुंभ स्नान-योग कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुलते हैं और इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। सभी जन्मों के पाप धुल जाते हैं।

कुंभ के विषय में मान्यता है कि इसकी शुरूआत आदि शंकराचार्य ने की थी। कुंभ का आशय यह था कि साधु-संत एवं ज्ञानीजन एक स्थान पर एकत्रित होकर धर्म-कर्म एवं विज्ञान पर अपने विचार स्पष्ट करें। कुंभ मेले का आयोजन उन स्थानों पर किया गया जहां ज्ञान के साथ ही साथ ईश्वरीय कृपा का भी लाभ मिल सके।

कुंभ का मतलब होता है, घड़ा या कलश। माना जाता है कि संमुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकला था, उस कलश से देवता और राक्षसों के युद्ध के दौरान धरती पर अमृत छलक गया था। जहां-जहां अमृत की बूंद गिरी, वहां हर बारह वर्षों में एक बार कुंभ का आयोजन किया जाता है। बारह साल में आयोजित इस कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है।
संस्कृति और आस्था का अद्भुत सैलाब है महाकुंभ

कुंभ मेला और ग्रहों का आपस में गहरा संबंध है। दरअसल, कुंभ का मेला तभी आयोजित होता है, जब ग्रहों की वैसी ही स्थिति बन रही होती है, जैसी अमृत छलकने के दौरान हुई थी।

साधु-संतों का यहां पहुंचना शुरू हो गया है और साधु-संत जत्थों में यहां पहुंच रहे हैं। धर्मनगरी इलाहाबाद में हर रोज धार्मिक जुलूस निकाले जा रहे हैं। इनके लिए जगह-जगह कैम्प लगाएं गये हैं। शहर तंबुओं के शहर में तब्दील हो चुका है। तैयारियां पूरी हो चुकी है और माना जा रहा है कि इस दौरान 10 करोड़ से ज्यादा लोग गंगा में पवित्र स्नान करेंगे।

महाकुंभ में स्नान की तिथियां

मकर संक्रांति - 14 जनवरी, 2013
पौष पूर्णिमा- 27 जनवरी, 2013
मौनी अमावस्या- 10 फरवरी, 2013
बसंत पंचमी- 15 फरवरी, 2013
माघी पूर्णिमा, 25 फरवरी, 2013
महाशिवरात्रि- 10 मार्च, 2013


संस्कृति और आस्था का अद्भुत सैलाब है महाकुंभ
स्नान का महत्व

शास्त्रों ने कुंभ में स्नान की बड़ी महिमा गाई है। कुंभ पर्व में स्नान का फल मुक्ति-भक्ति प्रदायक माना गया है। कुंभ को सभी प्रकार के पापों और तापों का शमन करने वाला बताया गया है। स्कंदपुरारण के मुताबिक अश्वमेघ तथा सौ वाजपेयी यज्ञ करने,लाख बार भूमि की प्रदक्षिणा करने,कार्तिक में हजार बार गंगा स्नान करने, माघ में सौ बार, बैशाख में करोड़ बार नर्मदा स्नान का जो फल प्राप्त होता है वह महाकुंभ पर्व में एक बार स्नान करने पर ही सुलभ हो जाता है। इस तरह कुंभ पर्व की स्थिरता और शाश्वततता के संदर्भ में विष्पुराण के मुताबिक जब तक पृथ्वी को पूर्वत नाग अथवा दिग्गज (वीर) तथा समुद्र धारण करते रहेंगे तबतक गंगाजी में कुंभ से उत्पन्न अमृत विद्यमान होगा।

हिंदू धर्मग्रंथ के मुताबिक इंद्र के बेटे जयंत के घड़े से अमृत की बूंदे भारत में चार जगहों पर गिरी थी। हरिद्वार में गंगा नदी में, उज्जैन में शिप्रा नदी में, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर। धार्मिक मान्यता के मुताबिक कुंभ में श्रद्धापूर्वक स्‍नान करने वालों के सभी पाप कट जाते हैं और उन्‍हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

535 साल बाद ग्रहों के जो योग बने हैं, उस वजह से इस कुंभ का महत्व बढ़ गया है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि बदलती राशियां अमृत की बूंदें बढ़ाएगीं। इस योग की वजह से गंगा का पानी कई सौ गुना पवित्र हो जाएगा। ऐसी मान्यता है कि भी कुंभ और बृहस्पति के योग से धरती का जल पहले की अपेक्षा और ज्यादा साफ हो जाता है।



First Published: Monday, January 14, 2013, 08:58

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