सीरिया : दिन-ब-दिन कठिन होती आगे की राह

सीरिया : दिन-ब-दिन कठिन होती आगे की राह

सीरिया : दिन-ब-दिन कठिन होती आगे की राहआलोक कुमार राव

प्रत्येक आंदोलन में एक वक्त ऐसा भी आता है जब लोगों के आक्रोश के सामने शासन की बंदूक बौनी साबित होने लगती है और जनता से उठा ज्वार सत्ता को उखाड़ फेंकने पर आमादा हो जाता है। मिस्र में सत्ता के खिलाफ यह शंखनाद पिछले साल 28 जनवरी को हुआ जहां जनता ने तहरीर चौक पर कब्जा सत्तारूढ़ पार्टी के मुख्यालय को आग के हवाले कर दिया।
लीबिया में यह विद्रोह गत वर्ष 20 अगस्त को हुआ, जहां जनता अपने अधिकारों के लिए देश पर दशकों से काबिज तनाशाह मुअम्मार गद्दाफी के खिलाफ खड़ी हो गई।

सीरिया में आर-पार की इस लड़ाई का आगाज 18 जुलाई को उस समय शुरू हो सकता था जब राजधानी दमिश्क में राष्ट्रीय सुरक्षा ब्यूरो की इमारत में हुए एक आत्मघाती हमले में देश के रक्षा मंत्री दाऊद रजा, उप रक्षा मंत्री आसिफ शौकत तथा आपातकालीन व राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग के प्रमुख हसन तुर्कमानी की मौत हो गई।

सीरिया के शीर्ष नेताओं व अधिकारियों पर हुआ यह हमला यदि सत्ता का संतुलन निर्णायक रूप से राष्ट्रपति बशर-अल-असद के पाले से खिसकाकर विद्रोहियों के हाथ में पहुंचा दिया होता तो अब तक सीरिया की तस्वीर साफ होने लगती। लेकिन गौर करने वाली बात है कि एक साल या उससे अधिक समय से जारी हिंसा एवं रक्तपात से समस्या का हल निकलना तो दूर यहां मानवीय स्थितियां और विकट हुई हैं।

बगावत के जरिए सत्ता का परिवर्तन करने वाले मिस्र एवं लीबिया में राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हो पाई है, दोनों देश अभी भी अस्थिरता के शिकार हैं। यही बात, सीरिया के मामले में भी महत्वपूर्ण है।

इराक, इजरायल लेबनान, जार्डन एवं टर्की से घिरा सीरिया मध्य-पूर्व का एक जटिल एवं महत्वपूर्ण देश है। एक शांत एवं राजनीतिक रूप से स्थिर सीरिया की इच्छा रखने वालों के लिए जरूरी है कि वे असद को सत्ता से बेदखल करने के उपायों पर शीघ्रता से विचार करें। साथ ही उन्हें इस ओर भी ध्यान केंद्रित करना होगा कि असद के बाद हिंसा एवं अराजकता के दौर से सीरिया को कैसे बचाया जाए।

राष्ट्रीय सुरक्षा मुख्यालय पर हुआ हमला असद के शासन को कई तरह से कमजोर कर सकता है। इस हमले में असद के भरोसेमंद और शीर्ष अधिकारी मारे गए और उनके महत्वपूर्ण सिपहसालार घायल हुए। असद को भारी झटका आसिफ शौकत के मारे जाने से लगा है जो शासन के सर्वाधिक शक्तिशाली लोगों में शुमार होने के साथ ही उनके साले भी थे।

इस हमले में मारे जाने के बाद अपने आस-पास खाली पड़े महत्वपूर्ण पदों पर असद ने भले ही नई तैनाती कर दी हो लेकिन एक ऐसे देश में जहां का शासन व्यक्तिगत निष्ठा रखने वाले कुछ खास लोगों के फैसलों पर निर्भर करता हो, ये उन विश्वासपात्रों की भरपाई नहीं कर पाएंगे।

मुख्यालय पर इस हमले में असद शासन के ही किसी अंदरूनी शख्स का हाथ हो सकता है क्योंकि सुरक्षा व्यवस्था को भेदने में खुफिया जानकारियों की आवश्यकता थी और यदि ऐसा है तो आने वाले समय में सशस्त्र बल एवं सुरक्षा सेवा खतरे से बाहर नहीं हैं।

सीरिया के शहरों की हालत बदतर होती जा रही है। शहरों में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। कस्बे बियाबान हो गए हैं। हजारों संख्या में लोग जान बचाकर पड़ोसी मुल्कों में चले गए हैं और वहां शरणार्थी के रूप में शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। विपत्ति एवं संकट के समय अब पड़ोसी देशों ने भी अपनी सीमाएं सील कर दी हैं।

सेना रोजाना कथित रूप से विद्रोहियों के साथ-साथ निर्दोष नागरिकों एवं बच्चों का कत्लेआम करती आ रही है।
मानवाधिकार संगठन ‘सीरियन आब्जरवेटरी फार ह्यूमन राइट्स’ की मानें तो मार्च 2011 से अब तक कम से कम 19,106 लोग मारे जा चुके हैं। जबकि संयुक्त राष्ट्र ने मई में कहा कि हिंसा में करीब 10 हजार लोगों की मौत हुई है। यहां होनी वाली हत्याएं अफगानिस्तान से 10 गुना अधिक हैं।

व्यवस्था से लोगों का मोहभंग हो चुका है। सरकारी नौकरियां छोड़कर लोग अन्यत्र जाने लगे हैं। भारी संख्या में शीर्ष अधिकारी भी सेना छोड़ चुके हैं।

असद शासन के खिलाफ देश के सीमावर्ती इलाकों में असंतोष एवं विद्रोह सबसे ज्यादा है। देश के तीसरे एवं चौथे शहर होम्स एवं हमा असद के खिलाफ हैं। जबकि सीरिया के दो प्रमुख शहर दमिश्क एवं अलेप्पो में बगावत का स्तर अपेक्षाकृत कम है। इन दोनों शहरों के लोग सुरक्षा एवं स्थायित्व के लिहाज से असद को बेहतर विकल्प मानते हैं। हालांकि इन दोनों शहरों में भी विद्रोही दाखिल हो चुके हैं।

कुल मिलाकर स्थितयां भयावह हैं। सीरिया मसले का समाधान निकालने के सभी अतंरराष्ट्रीय प्रयास अब तक नाकाफी साबित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र एवं अरब लीग के विशेष दूत कोफी अन्नान का युद्धविराम का प्रस्ताव एवं संयुक्त राष्ट्र की ओर से पर्यवेक्षकों की तैनाती भी स्थिति में बदलाव नहीं ला सकी है।

असद शासन को रूस एवं चीन का मिल रहा समर्थन कूटनीतिक प्रयासों को परवान नहीं चढ़ने दे रहा है। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने यदि संयुक्त राष्ट्र चार्टर की आड़ में लीबिया की तर्ज पर सैन्य हस्तक्षेप किया तो परिणाम भयंकर हो सकते हैं क्योंकि विदेशी सैन्य हस्तक्षेप की दशा में असद शासन रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल की धमकी भी दे चुका है।

आंतरिक लड़ाई की वजह से सीरिया भले ही असद के हाथ से निकल जाए लेकिन इसके बाद जो परिदृश्य उभरेगा वह सीरिया के लोगों एवं पड़ोसी देशों के लिए काफी जोखिम भरा होगा। असद के बाद वहां वर्ग संघर्ष तेज होने, रासायनिक हथियारों के गलत हाथों में पड़ने, शरणार्थियों की बाढ़ से निपटने जैसी समस्याएं यकायक सामने आएंगी। यही नहीं सीरिया ईरान, टर्की एवं अरब देशों के बीच स्पर्धा का कारण भी बन सकता है।

असद के बाद सीरिया में खड़ी होने वाली समस्याओं को विश्व जड़ से खत्म नहीं कर सकता लेकिन उन्हें नियंत्रित कर सकता है। एक नई सरकार के गठन में मदद करने के लिए योजना एवं धन की आवश्यकता होती है। सरकार के गठन एवं जन-जीवन पटरी पर लाने में पड़ोसी मुल्क टर्की एवं अरब लीग क्षेत्रीय कूटनीति का उपयोग कर सकते हैं।




First Published: Tuesday, July 24, 2012, 14:26

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