हिमाचल में चली सत्ता विरोधी लहर, Anti-incumbancy factor worked in Himachal Pradesh.

हिमाचल में चली सत्ता विरोधी लहर

हिमाचल में चली सत्ता विरोधी लहर आलोक कुमार राव

हिमाचल प्रदेश में चुनाव का इतिहास रहा है कि यहां की सत्ता में भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से आती रही हैं और इस बार के चुनाव में भी यही हुआ। हालांकि, कुछ चुनावी पंडितों का मानना था कि केंद्रीय स्तर हुए तथाकथित घोटालों और बढ़ती महंगाई ने यदि चुनाव पर असर डाला तो कांग्रेस की सत्ता में वापसी मुश्किल हो सकती है लेकिन राज्य में ‘एंटी इन्कमबैंसी फैक्टर’ काम कर गया जिसका लाभ भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे वीरभद्र सिंह को मिला।

68 सीटों वाले विधानसभा में कांग्रेस को कुल 36 सीटें मिली जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 26 सीटों पर सिमट के रह गई। अऩ्य को छह सीटों पर जीत हासिल हुई।

कांग्रेस को मिला स्पष्ट जनादेश यह दर्शाता है कि लोगों ने भ्रष्टाचार एवं महंगाई के मुद्दे को नकार स्थानीय मुद्दों को तरजीह दिया। मसलन बेरोजगारी, कर्मचारियों में असंतोष, बिजली, पानी, सड़क एवं रेल परिवहन और ईंधन के मसले लोगों को कांग्रेस के नजदीक ले गए।

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों, 2जी घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, कोल घोटाला को लेकर जनता के बीच गए। धूमल ने अपनी रैलियों में कहा कि केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण उसका असर प्रदेश के विकास पर पड़ा। आम जनता चाहती है कि क्षेत्र और राज्य के साथ-साथ उसका भी विकास हो तथा शासन और प्रशासन भ्रष्टाचारमुक्त हों।

लेकिन लगता है कि धूमल की ये दलीलें मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर पाईं। हिमाचल प्रदेश की करीब आधी आबादी युवाओं की है। युवाओं के सामने अभी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। प्रदेश में रोजगार सृजन की जो रफ्तार होनी चाहिए वह नहीं है। फलस्वरुप बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हैं। सत्ता में रहते हुए भाजपा इन युवाओं के लिए कोई रोजगार का कोई साधन नहीं जुटा पाई जिसका खामियाजा उसे शायद इस चुनाव में उठाना पड़ा।

हिमाचल प्रदेश की राजनीति का इतिहास भी दिलचस्प रहा है। वर्ष 1971 में हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिलने के बाद यहां जनता बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस को जनादेश आती आई है।

इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार विरोधी लहर को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। उसे उम्मीद थी कि भाजपा सरकार के शासन से नाराज लोग उसे ही चुनेंगे।

चुनाव-प्रचार के दौरान कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी सहित कई केंद्रीय मंत्रियों ने चुनावी रैलियों को सम्बोधित किया और यह बताने की कोशिश की राज्य की भाजपा सरकार ने प्रदेश के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया।

सोनिया गांधी अपनी रैलियों में जनता को यह याद दिलाने से नहीं चूकीं कि पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने विकास के लिए राज्य को जो हजारों करोड़ रुपए उपलब्ध कराए, धूमल सरकार उस राशि को खर्च नहीं कर पाई। तो दूसरी ओर राहुल गांधी किसानों को खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का फायदा समझाकर उन्हें अपनी पार्टी से जोड़ने की कवायद की।



First Published: Thursday, December 20, 2012, 20:00

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