सेटेलाइट : अनियंत्रित होते ही खतरनाक - Zee News हिंदी

सेटेलाइट : अनियंत्रित होते ही खतरनाक



नई दिल्ली : अंतरिक्ष में तैरते उपग्रह तथा मानव निर्मित अंतरिक्ष स्टेशन जब तक नियंत्रण में रहते हैं, तक तक यह वफादारी से मनुष्यों की सेवा में लगे रहते हैं लेकिन इनके नियंत्रण से बाहर होते ही इससे धरती के लोगों के जीवन और पर्यावरण को खतरा होने की आशंका उत्पन्न हो जाती है.

1979 में अमेरिका के स्काई लैब और साल 2000 में काम्पटन गामा रे वेधशाला से लेकर 2003 में अमेरिकी साइंस उपग्रह, 2006 में चीन के जासूसी उपग्रह और 2001 में रूसी मीर अंतरिक्ष स्टेशन के नियंत्रण से बाहर चले जाने और उससे जुड़ी घटनाएं इस बात की समय समय पर पुष्टि करते हैं.

ताजा खतरे की आशंका नासा के 6.5 टन वजन के ऊपरी वातावरण अनुसंधान उपग्रह (यूएआरएस) को लेकर सामने आई है जिसके बारे में अनुमान व्यक्त किया गया है कि यह 24 सितंबर 2011 तक किसी समय पृथ्वी पर गिर सकता है. 14 साल तक सक्रिय रहने के बाद यह उपग्रह 2005 से उपयोग में नहीं लाया जा रहा है और अब यह नियंत्रण से बाहर हो गया है.

नासा ने अनुमान व्यक्त किया है कि इस उपग्रह के बेहद छोटे अवशेष पृथ्वी पर एक बड़े क्षेत्र में फैल सकते हैं. जाने-माने वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद प्रो. यशपाल ने कहा कि अंतरिक्ष में कई उपग्रहों के समय-समय पर नियंत्रण से बाहर होने की घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन इनमें इतनी मात्रा में इंधन होता है कि वह पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करने के बाद घर्षण से जलकर राख हो जाते हैं.

उन्होंने कहा कि खुफिया उपग्रहों में संवेदनशीन सूचनाएं होती है, इसलिए इनके पृथ्वी पर स्थित स्टेशन के नियंत्रण से बाहर होने पर इन्हें विभिन्न माध्यमों के जरिये किसी समुद्र में सुरक्षित गिराया जाता है ताकि सूचनाएं गलत हाथों में नहीं पड़े. प्रो. यशपाल ने कहा कि अंतरिक्ष में उपग्रहों को लम्बे समय तक परिचालन में बने रहने के लिए इनमें काफी मात्रा में ईधन होता है जो काफी हानिकारक होते हैं. इससे पर्यावरण को भी खतरा उत्पन्न हो सकता है. लेकिन, ईधन और घर्षण के कारण पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही इनके नष्ट होने की संभावना ज्यादा रहती है.

उन्होंने बताया कि अमेरिकी स्पेस कमांड अंतरिक्ष में तैर रहे मलवों और इसी तरह की अन्य वस्तुओं की निगरानी करता है और नासा को सीधे सूचना देता है. अंतरिक्ष में मौजूद ऐसे मानव निर्मित उपकरणों एवं पिंडो के नियंत्रण से बाहर होने के बाद आम लोगों और वैज्ञानिकों के लिए ये हमेशा से कौतुहल का विषय रहते हैं.

वर्ष 1979 में जब अमेरिकी स्काई लैब के पृथ्वी पर गिरने की बात सामने आई थी तब इस समाचार ने महीनों तक अखबार की सुर्खियां बटोरी थी. इस दौरान 11 जुलाई 1979 को इसे पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और हिन्द महासागर के बीच गिरने से पहले पूरे विश्व में जबर्दस्त गहमागहमी बनी रही. भारत में तो इसके पृथ्वी पर गिरने की नियत तिथि बताने को लेकर सट्टेबाजी होने के समाचार भी सामने आए थे. (एजेंसी)

First Published: Friday, September 23, 2011, 20:24

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