Last Updated: Saturday, February 23, 2013, 20:42

वाशिंगटन : आर्थिक प्रतिबंधों के परिणाम, चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की आशा और स्वयं को भारत की आर्थिक क्रांति के जनक के रूप में पहचान बनाने की इच्छा ने शायद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव को 1995-96 के शीत ऋृतु में परमाणु परीक्षण करने से रोका।
यह निष्कर्ष क्लिंटन प्रशासन ने निकाला था जब दिसंबर और जनवरी में उसने कई सप्ताह तक स्वयं और सहयोगियों के जरिए भारत पर पोखरण परमाणु परीक्षण करने के खिलाफ दबाव बनाया और अपनी बात के समर्थन में भारत सरकार के समक्ष उपग्रह चित्र पेश किए।
राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार की ओर से शुक्रवार को जारी गोपनीय अमेरिकी दस्तावेज के अनुसार, 10 दिसंबर 1995 को अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने क्लिंटन प्रशासन को भारत द्वारा परमाणु परीक्षण करने की तैयारी के बारे में सूचित किया जिसके बाद अमेरिका की ओर से काफी गतिविधियां सामने आई।
यह जानकारी संघीय सरकार से सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त की गई है। 24 जनवरी 1996 को क्लिंटन प्रशासन इस नतीजे पर पहुंचा कि राव ने परमाणु परीक्षण नहीं करने का निर्णय किया है। विदेश विभाग के 24 जनवरी 1996 के दस्तावेज में कहा गया था,‘प्रधान मंत्री राव संभवत: निकट भविष्य में परमाणु परीक्षण करने का आदेश नहीं देंगे जबकि ऐसे संकेत है कि पश्चिमी भारत में इस उद्देश्य के लिए स्थल तैयार किया गया है।’
दस्तावेज के अनुसार, ‘परमाणु परीक्षण करने से हालांकि अप्रैल में उनके फिर से सत्ता में आने की संभावना बढ़ सकती थी लेकिन इसके कारण निश्चित तौर पर भारत पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगता और सरकार के आर्थिक उदारीकरण के कार्यक्रम को झटका लग सकता था।’
इसमें कहा गया है कि क्लिंटन प्रशासन को सबसे पहले नवंबर 1995 में पोखरण क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ने की जानकारी मिली। इन गतिविधियों में सुरक्षा का दायरा बढाना, अन्य आधारभूत संरचना को उन्नत बनाने और बड़ी मात्रा में कचरा रखना आदि शामिल है। समझा जाता है कि इस कचरे का इस्तेमाल परीक्षण के लिये तैयार गड्ढे में उपकरण के रखने के बाद उस स्थल को छिपाने के लिए किया जाना था।
गोपनीय दस्तावेज में इस बात का उल्लेख किया गया है कि राव ने क्यों परमाणु परीक्षण नहीं करने का निर्णय किया। ‘ परमाणु परीक्षण के बिना भी ऐसे संकेत थे कि राव की चुनावी संभावना बेहतर हो रही थी। हाल ही में कांग्रेस पार्टी के भीतर और बाहर राव के विरोधियों के भ्रष्टाचार घोटालों में नाम सामने आ रहे थे जिससे उन्हें रणनीतिक बढ़त मिल रही थी।’
दस्तावेज के मुताबिक, विश्लेषकों ने तब अनुमान व्यक्त किया था कि नयी संसद में कांग्रेस पार्टी को पर्याप्त सीटें मिलेंगी ताकि वह गठबंधन सरकार बना सके और भाजपा को सत्ता से बाहर रख रखे।
गोपनीय दस्तावेज में कहा गया है, ‘जब वह आक्रामक चुनाव अभियान की तैयार कर रहे थे तब राव का ध्यान भावी पीढ़ी पर था। प्रधानमंत्री राव 1991 में 75 वर्ष के थे और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी थी। वह निश्चित तौर पर उम्मीद करते थे कि उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के महत्वपूर्ण योगदान के लिए याद किया जाए।’
‘आर्थव्यवस्था के आगे बढ़ना जारी रहने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए राव पश्चिम विशेष तौर पर अमेरिका को भड़काना नहीं चाहते थे जिससे अतंरराष्ट्रीय मदद और भारत में निवेश बाधित हो।’ दस्तावेज के अनुसार, ‘इन कठोर वास्तविकताओं के साथ उनके स्वाभाविक सावधानी ने उन्हें संभवत: परीक्षण करने की मंजूरी देने से रोका।’ (एजेंसी)
First Published: Saturday, February 23, 2013, 14:57