Last Updated: Monday, September 24, 2012, 18:18

जोहांसबर्ग : जोहांसबर्ग में आयोजित नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में तीन दिनों तक चले मंथन के बाद यह संकल्प लिया गया कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए समुचित और समयबद्ध कार्रवाई की जाएगी। साथ ही इस बात पर भी सहमति बनी कि हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित होने वाले इस सम्मेलन का अंतराल अधिक से अधिक तीन वर्षो का हो।
ज्ञात हो कि 1975 में नागपुर में हुए पहले विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के सम्बंध में प्रस्ताव पारित किया गया था और उसके बाद हुए चार अन्य सम्मेलनों में भी इस पर जोर रहा, लेकिन 37 साल बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। इस विषय पर चौतरफा हो रही आलोचनाओं के मद्देनजर नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में यह सहमति बनी कि अब समय आ गया है कि समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ा जाए और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को सम्मानजनक स्थान दिलाए जाने का प्रयास किया जाए।
इस महत्वपूर्ण आयोजन को इसलिए भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ता रहा है कि इसके आयोजन के अंतराल की आज तक कोई समयसीमा नहीं निर्धारित की जा सकी है। लगातार हो रही आलोचनाओं से बचने के लिए सम्मेलन की समयसीमा भी निर्धारित कर दी गई। इसके मुताबिक दो सम्मेलनों के बीच का अंतराल तीन साल से अधिक का नहीं होगा।
सम्मेलन के पहले ही दिन विदेश राज्यमंत्री प्रनीत कौर को इन आलोचनाओं से दो चार होना पड़ा था और उसके बाद उन्होंने आश्वस्त किया था कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में सम्मान दिलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी और कोशिश की जाएगी कि इसका अंतराल भी तय किया जाए।
सम्मेलन में यह भी तय किया गया कि अगला विश्व हिंदी सम्मेलन भारत में आयोजित किया जाएगा तथा देश व दुनिया के तमाम विद्वानों को दिए जाने वाले पुरस्कार को विश्व हिंदी सम्मान का नाम दिया जाएगा। ज्ञात हो कि जोहांसबर्ग सम्मेलन में 20 विदेशी और 18 भारतीय विद्वानों को सम्मानित किया गया।
सम्मेलन में यह प्रस्ताव भी पारित किया गया कि मॉरीशस में स्थापित विश्व हिंदी सचिवालय में विभिन्न देशों के हिंदी शिक्षण से संबंद्ध विश्वविद्यालयों, पाठशालाओं एवं शैक्षिक संस्थानों से सम्बंधित एक डाटाबेस का वृहद स्रोत केंद्र स्थापित किया जाए। इसके साथ ही विश्व भर के हिंदी विद्वानों और लेखकों का भी एक डाटाबेस तैयार करने पर सहमति बनी।
सम्मेलन में इस बात पर भी आम राय बनी कि हिंदी भाषा की सूचना व प्रौद्योगिकी के साथ अनुरूपता को देखते हुए सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा हिंदी भाषा सम्बंधी उपकरण विकसित किए जाएं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए धन की कमी आड़े नहीं आनी चाहिए।
विदेशों में हिंदी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम तैयार करने पर भी प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया कि इस पाठ्यक्रम को तैयार किए जाने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र के नागपुर में वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को दी जाए।
इस बात पर सभी विद्वान एकमत दिखे कि सूचना प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि के प्रयोग पर पर्याप्त सॉफ्टवेयर तैयार किए जाएं ताकि इसका लाभ विश्व भर के हिंदी भाषियों और प्रेमियों को मिल सके।
अनुवाद की बढ़ती मांग को देखते हुए सम्मेलन में इस पर भी एक प्रस्ताव पारित किया गया कि अनुवाद के विभिन्न आयामों के संदर्भ में अनुसंधान की आवश्यकता है, अत: इस दिशा में ठोस कार्रवाई की जाए।
नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन की शुरुआत 22 सितम्बर को जोहांसबर्ग के सैंडटन कम्वेंशन सेंटर में हुई। दुनियाभर के करीब 700 विद्वान एवं प्रतिनिधि इसमें हिस्सा ले रहे हैं। (एजेंसी)
First Published: Monday, September 24, 2012, 18:11