Last Updated: Tuesday, July 2, 2013, 12:04

वाशिंगटन : शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि देश में उदारवाद और आर्थिक सुधारों के प्रणेता माने जाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में भारत सरकार धीरे-धीरे ‘संरक्षणवाद’ की ओर बढ़ रही है। विभिन्न उद्योगों तथा विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले इन अमेरिकी विशेषज्ञों ने शीर्ष अमेरिकी सांसदों को बताया कि भारत में आम चुनाव में साल भर से भी कम का समय बचा है और ऐसे में उन्हें चुनाव के बाद नयी सरकार का गठन होने तक भारत के मौजूदा चलन में किसी प्रकार के बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
नेशनल ऐसोसिएशन ऑफ मैन्युफैक्चर्स की लिंडा डिम्प्से ने पिछले सप्ताह कांग्रेस में एक बैठक के दौरान सांसदों को बताया, आज हम भारत में जो देख रहे हैं, वह चलन का उल्टा है। डिम्प्से ने कहा, उदारवाद से आगे, वे विभिन्न सेक्टरों, में व्यापक रूप से एक नीति के तौर पर संरक्षणवाद की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें बौद्धिक संपदा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है तथा इसमें स्थानीय मुद्दे भी शामिल हैं। लेकिन यह एक ऐसा कदम है जिसमें वे अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे दूसरों के लिए बंद करके तथा अपनी अर्थव्यवस्था को अमेरिका एवं अन्य दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था की कीमत पर विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। डिम्प्सी के विचारों से सहमति जताते हुए यूएस चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स के ग्लोबल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी सेंटर के कार्यकारी उपाध्यक्ष मार्क इलियट ने कहा कि वास्तविकता यह दर्शाती है कि भारत एक गलत दिशा में जा रहा है।
सोलर एनर्जी इंडस्ट्री एसोसिएशन में व्यापार तथा प्रतिस्पर्धा विभाग के उपाध्यक्ष जान स्मिरनोव ने बताया, भारत में इस समय जो कुछ हो रहा है, आप उसके राजनीतिक आयामों से बच नहीं सकते। आपके सामने एक ऐसा देश है जहां साल भर में राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव होने हैं और ये चुनाव ऐसे हैं जिनमें कड़ा मुकाबला है। उन्होंने कहा, यह चलन संरक्षणवाद की दिशा में अधिक है। मैं समझता हूं कि जो बात चिंता के स्तर को बढ़ाती है, वह यह है कि इस समय जो सरकार के अगुवा हैं वे भारत सरकार में उदारवाद के प्रणेता हैं । प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि जब वह 1991 में वित्त मंत्री थे तो उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के दरवाजे केवल आईटी उद्योग के लिए खोले थे न कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए। उन्होंने इसके साथ ही कहा, ऐसे में जब कोई इतने बड़े कद का व्यक्ति जिसकी पृष्ठभूमि में खुली अर्थव्यवस्था हो और इसके बावजूद विभिन्न विभाग तथा एजेंसियां संरक्षणवादी उपायों को अपना रही हों तो इससे यहां चिंता उत्पन्न होती है। पिफिज्र के मुख्य बौद्धिक संपदा अधिकारी रॉय वाल्ड्रोन ने कहा कि फार्मास्युटिकल सेक्टर के लिए यह चलन निश्चित रूप से सबसे अधिक संरक्षणवादी है।
उन्होंने कहा, वास्तव में जब 2005 में पेटेंट कानून लागू किया गया था तो उस समय स्थानीय हितों को सुरक्षित करने के लिए कानून बनाने के बारे में बयान आए थे और कंपनियों की अपने निर्यात बाजार को बनाए रखने की क्षमता पर बात की गयी थी। इसलिए निश्चित रूप से एक रूढिवादी नीति है और ग्लीवेक मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले केा ही देखिए जो निर्यात बाजारों को संरक्षणवादी मंशा को साफ बताता है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 2, 2013, 12:04