Last Updated: Tuesday, June 26, 2012, 21:23

इस्लामाबाद: बम विस्फोट के आरोपों में पिछले 20 साल से अधिक समय से मौत की सजा का सामना कर रहे भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह को रिहा किया जाएगा क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उनकी मौत की सजा आजीवन कारावास में तब्दील कर दी है।
जरदारी ने सरबजीत की मौत की सजा आजीवन कारावास में तब्दील कर दी, जिसे वह पहले ही पूरी कर चुके हैं क्योंकि वह 14 साल से अधिक वक्त जेल में बिता चुके हैं। इसलिए उन्हें रिहा किया जा रहा है।
49 वर्षीय सरबजीत को 1990 में पंजाब में कई बम विस्फोटों में कथित तौर पर शामिल रहने के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई गई थी। उन बम विस्फोटों में 14 लोग मारे गए थे। सरबजीत ने खुद को निर्दोष बताया था और कहा था कि यह ‘गलत पहचान’ का मामला है।
आधिकारिक सूत्रों ने आज बताया कि जरदारी ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगर सरबजीत ने अपनी कारावास की सजा पूरी कर ली है तो उन्हें रिहा कर दिया जाए। सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी आधिकारिक प्रस्ताव के बाद विधि मंत्री फारूक नाइक ने गृह मंत्रालय से कहा कि वह सरबजीत की तत्काल रिहाई के लिए कदम उठाएं क्योंकि वह पहले ही आजीवन कारावास की सजा काट चुके हैं।
सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय और पंजाब के गृह मंत्रालय द्वारा जरूरी औपचारिकताएं पूरी किए जाने के बाद 49 वर्षीय सरबजीत को अगले कुछ दिनों में रिहा किया जा सकता है। सरबजीत फिलहाल लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद है और 20 साल से अधिक समय से मौत की सजा का सामना कर रहे हैं।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी का यह कदम पाकिस्तान के बीमार वैज्ञानिक खलील चिश्ती की रिहाई के करीब एक महीने बाद सामने आया है जो हत्या के आरोप में करीब दो दशक तक राजस्थान की जेल में बंद रहे । उन्हें भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर रिहा किया गया था ताकि कराची में वह अपने परिवार से मिल सकें । चिश्ती की रिहाई के बाद सरबजीत ने पिछले महीने राष्ट्रपति जरदारी को फिर से दया याचिका भेजी थी ।
दया याचिका में एक दस्तावेज भी था जिस पर एक लाख भारतीय नागरिकों का हस्ताक्षर था जिसमें जरदारी से अपील की गई थी कि उसे चिश्ती के बदले रिहाई दी जाए ।
दिल्ली के जामा मस्जिद सैयद अहमद बुखारी और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की देखभाल करने वाले सैयद मुहम्मद यामीन हाशमी के पत्र भी याचिका के साथ संलग्न थे ।
सरबजीत ने कहा कि उसका मामला गलत पहचान का है क्योंकि प्राथमिकी उसके नाम से दर्ज नहीं है। याचिका में उन्होंने लिखा है, ‘मैंने 22 साल तक जेल में उस अपराध के लिए सजा काटी जो मैंने नहीं की ।’ सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने भी कहा कि उनके पास अपने भाई के निर्दोष होने का ‘महत्वपूर्ण साक्ष्य’ है । पाकिस्तान के सेना अधिनियम के तहत सरबजीत को मौत की सजा दी गई थी ।
तत्कालीन सेना प्रमुख को भेजी एक दया याचिका इस निर्देश के साथ खारिज हो गई थी कि इसे राष्ट्रपति को भेजा जाना चाहिए । (एजेंसी)
First Published: Tuesday, June 26, 2012, 21:23