Last Updated: Tuesday, August 20, 2013, 22:11

नई दिल्ली : लश्कर-ए-तय्यबा के आतंकवादी करीम टुंडा ने जांच अधिकारियों से कहा कि भारत में तस्करी किए जाने वाले जाली भारतीय करेंसी नोट (एफआईसीएन) के समूचे आपूर्ति चेन का संचालन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई करती है।
जांच अधिकारियों ने बताया कि टुंडा ने उनसे कहा कि जाली भारतीय करेंसी नोट का सबसे बड़ा कारोबारी इकबाल काना इसे आईएसआई के एक ब्रिगेडियर से हासिल करता था और बांग्लादेश और नेपाल में टुंडा के नेटवर्क के जरिए भारत में भेजता था।
पुलिस अधिकारियों ने बताया, ‘आतंकवादी का कहना है कि इन जाली भारतीय मुद्रा का मुद्रण पाकिस्तान के इस्लामाबाद और पेशावर में किया जाता था।
टुंडा ने पूछताछ कर रहे अधिकारियों को बताया कि उसका काम जाली मुद्रा जुटाना, उसका वितरण करना और अपने नेटवर्क के माध्यम से भारत भेजना था। हर खेप में करोड़ों रुपए मूल्य की जाली मुद्रा होती थी।
अधिकारियों ने कहा, ‘टुंडा का अपने जान-पहचान, सहानुभूति रखने वालों और बांग्लादेश में प्रशिक्षित लोगों का बेहद अच्छा नेटवर्क था जिसका इस्तेमाल जाली मुद्रा के कारोबार के लिए किया जाता था।’
दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने बताया कि जाली मुद्रा गिरोह का सरगना इकबाल काना पाकिस्तान में सक्रिय है और टुंडा जैसे लोगों का इस्तेमाल भारत में जाली भारतीय मुद्रा भेजने में करता है। टुंडा का बेहद सक्रिय नेटवर्क है।
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘जनवरी 2012 में दिल्ली में 2.25 करोड़ रुपए मूल्य की जाली भारतीय मुद्रा जब्त की गई थी। उसमें टुंडा, काना और हसन का नाम आया था। उस बार भी काना और हसन के बीच सौदा हुआ था जबकि टुंडा ने कूरियर के तौर पर काम किया था।’
टुंडा को 19 वर्षों तक फरार रहने के बाद गत शुक्रवार को भारत-नेपाल सीमा पर एक इलाके से गिरफ्तार किया गया था। उसके पास से अब्दुल कुद्दुस के नाम से पाकिस्तानी पासपोर्ट जब्त किया गया था।
जांच अधिकारियों ने कहा कि 70 वर्षीय आतंकवादी ने उनसे कहा कि 2012 में काना ने आईएसआई के नाम से लाहौर में भारत-पाक व्यापार केंद्र (व्यापारियों का एक निजी संघ) को जबरन वसूली के लिए कॉल किया।
किसी ने आईएसआई को शिकायत की और खुफिया एजेंसी ने काना को हिरासत में ले लिया और टुंडा के परिसर से 93 करोड़ रुपए मूल्य की जाली भारतीय मुद्रा जब्त कर ली। काना के माफी मांगने के बाद काम बहाल हुआ। उसने जांच अधिकारियों से यह भी कहा कि आईएसआई से उसे कोई निश्चित राशि नहीं मिलती थी और कोई खाता नहीं रखा गया था बल्कि उसकी दैनिक जरूरतें पूरी की जाती थीं।
अधिकारी ने बताया कि उसने कहा कि वह जो भी रकम मांगता था उसे मिल जाता था। कभी उसे चार लाख रूपये, कभी 10 लाख रुपए तो कभी 14 लाख रुपए मिल जाते थे। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, August 20, 2013, 22:11