Last Updated: Monday, February 18, 2013, 17:52
नई दिल्ली : सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में अपने पास उपलब्ध जानकारी का सूचना का अधिकार कानून के तहत खुलासा करने से छूट होने का दावा करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। केंद्रीय सूचना आयोग ने हाल ही में आरटीआई कार्यकर्ता सी जे करीरा के सूचना का अधिकार कानून के तहत दिए गए आवेदन को मंजूरी दी थी। इस आवेदन में करीरा ने वर्ष 2007 से 2011 के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी थी।
सीबीआई ने केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले के संदर्भ में ही दिल्ली उच्च न्यायालय में गुहार लगाई है। संयोग की बात यह है कि इस आरटीआई आग्रह को लेकर सीबीआई जो जानकारी जाहिर नहीं करना चाहती, उसका खुलासा कार्मिक मंत्रालय संसद सदस्यों को कई बार दिए जा चुके अपने जवाब में कर चुका है। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी और मामले की सुनवाई तीन अप्रैल को नियत की है।
वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने सीबीआई को उन संगठनों की श्रेणी में ला दिया था जिन्हें आरटीआई कानून के तहत खुलासा करने से छूट दी गई है। जांच एजेंसी टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, सीडब्ल्यूजी घोटाला, अवैध खनन मामला, आदर्श आवासीय सोसायटी घोटाला जैसे भ्रष्टाचार के बड़े मामलों की जांच कर रही है।
सीबीआई ने उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में जिन मामलों का जिक्र किया है, उनमें से एक मामले में सीआईसी ने राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) को भ्रष्टाचार के आरोप के बारे में जानकारी का खुलासा करने का आदेश दिया था जबकि डीआरआई को सूचनाओं के खुलासे से छूट मिली हुई है। सीआईसी की एक पूर्ण पीठ ने भी प्रवर्तन निदेशालय को काले धन संबंधी सूचना का खुलासा करने का आदेश दिया था क्योंकि इसे कथित भ्रष्टाचार का मामला माना गया।
उच्च न्यायालय में किए गए अपने आग्रह में सीबीआई ने दावा किया है कि भ्रष्टाचार के आरोपों संबंधी प्रावधान तब ही लागू होगा जब वह उसके कर्मचारियों के खिलाफ होगा। यह प्रावधान उसके पास उपलब्ध हर सूचना पर या उसके नियंत्रण वाली सूचना पर लागू नहीं होगा।
भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में अपने खराब रिकॉर्ड को लेकर राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आलोचना का सामना कर रही जांच एजेंसी का यह तर्क सीआईसी, कार्यकर्ताओं और सूचना आयुक्तों ने खारिज कर दिया। पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त ए एन तिवारी का कहना है कि आरटीआई कानून की धारा 24 को ‘सूचना’ की परिभाषा और पारदर्शिता कानून के तहत दिए गए सूचना के अधिकार के संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए। इस धारा के तहत ही छूट प्राप्त संगठनों को सूचीबद्ध किया गया है।
मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्र ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि आरटीआई कानून छूट पाने वाले संगठनों के बीच न तो उनके काम के आधार पर अंतर करता है और न भ्रष्टाचार के आरोपों में इस आधार पर अंतर करता है कि यह छूट प्राप्त संगठन के या अन्य संगठन के कर्मचारी के खिलाफ है। (एजेंसी)
First Published: Monday, February 18, 2013, 17:52