आईटी एक्ट 66-ए से अभिव्यक्ति की आजादी पर असर नहीं : केन्द्र

आईटी एक्ट 66-ए से अभिव्यक्ति की आजादी पर असर नहीं : केन्द्र

आईटी एक्ट 66-ए से अभिव्यक्ति की आजादी पर असर नहीं : केन्द्रनई दिल्ली : केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून की विवादास्पद धारा 66-ए से किसी भी प्रकार से अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित नहीं होती है और ‘चुनिन्दा अधिकारियों की अक्खड़ कार्यशैली का मतलब यह नहीं है कि कानून की नजर में यह प्रावधान खराब है।’ सूचना प्रौद्योगिकी कानून के इसी प्रावधान के तहत महाराष्ट्र की दो लड़कियों को फेसबुक पर टिप्पणी लिखने के कारण गिरफ्तार किया गया था।

न्यायालय ने इन लड़कियों की गिरफ्तारी के प्रकरण में महाराष्ट्र सरकार से भी जवाब तलब किया था। राज्य सरकार ने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार के दिन मुंबई बंद के संबंध में फेसबुक पर टिप्पणी करने के मामले में ठाणे की दो लड़कियों को गिरफ्तार करने को ‘अनावश्यक’ और ‘जल्दबाजी‘ में की गई कार्रवाई करार देते हुए कहा कि इसे ‘न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।’ राज्य सरकार ने कहा, ‘अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 41 और 41-ए के तहत तत्काल गिरफ्तारी जरूरी नहीं थी। आरोपियों को जल्दबाजी में गिरफ्तार किया गया जिसे न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इसके साथ ही यह विद्वेषपूर्ण मंशा से की गयी कार्रवाई भी नहीं थी।’

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपने हलफनामे में सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए का बचाव किया है। इसी धारा के तहत ठाणे की पुलिस ने पालघर से दो लड़कियों को गिरफ्तार किया था। हलफनामे के अनुसार यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) में प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर अंकुश नहीं लगाता है क्योंकि यह मुकम्मल स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है बल्कि तर्कसंगत प्रतिबंध लगाता है। धारा 66-ए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कंप्यूटर या संचार उपकरण के जरिए ऐसी सूचना प्रेषित करता है जो अत्यधिक आपत्तिजनक या भयभीत करने वाली हो तो उसे तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।

महाराष्ट्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि इन लड़कियों के मामले में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करने के पुलिस महानिदेशक के निर्देश के बावजूद उन्हें गिरफ्तार करने के मामले में ठाणे के पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) रवीन्द्र पी. सेनगांवकर को निलंबित कर दिया गया है। यह निर्णय उन्हीं के स्तर पर लिया गया था और बाद में इसकी जिम्मेदारी कनिष्ठ अधिकारियों पर डालने को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

हलफनामे में कहा गया है कि जांच अधिकारी इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 505(2) और सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए के तहत कोई मामला नहीं बनता था। हलफनामे के अनुसार पुलिस अधीक्षक के मामले में आरोप पत्र का प्रारूप राज्य सरकार के पास मंजूरी के लिये भेजा गया है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के हलफनामे में कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की अनुमति के बगैर इस कानून की धारा 66-ए के तहत गिरफ्तारी नहीं करने के बारे में परामर्श जारी किया है। इस कदम से भविष्य में किसी व्यक्ति की अनावश्यक गिरफ्तारी की संभावना खत्म हो जायेगी। मंत्रालय ने देश में इंटरेनेट उपभोक्ताओं का विवरण और इसके दुरुपयोग के खतरे के बारे में भी न्यायालय को अवगत कराया है।

मंत्रालय के अनुसार देश में हाल में सूचना प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग के, विशेषकर सोशल मीडिया साइट्स पर, मामले सामने आये हैं जबकि ईमेल के जरिये, सोशल मीडिया साइट्स पर कुछ घटनाओं से संबंधित तस्वीरों को बदले हुये स्वरूप में संदेशों के साथ चस्पा करने की घटनाएं सामने आयी हैं। केन्द्र सरकार ने सुझाव दिया है कि न्यायालय पुलिस, न्यायिक अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं को सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66-ए के प्रभावी तरीके से अमल के लिये ‘दिशा निर्देश जारी कर’ सकता है। (एजेंसी)

First Published: Friday, January 11, 2013, 18:10

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