`आरटीआई एक्ट में संशोधन लोकतंत्र का क्षरण`

`आरटीआई एक्ट में संशोधन लोकतंत्र का क्षरण`

नई दिल्ली : राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से बाहर रखने के लिए इस कानून में संशोधन को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी की कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है। उनका कहना है कि इससे जवाबदेही एवं पादर्शिता का क्षरण हो सकता है, जिससे अंतत: लोकतंत्र को नुकसान होगा।

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने तीन जून को छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे में लाने का आदेश दिया था, क्योंकि उन्हें सरकार से बड़ी मात्रा में अनुदान मिलता है। लेकिन गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को इसके दायरे से बाहर रखना है।

इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) के वेंकटेश नायक ने कहा, `सरकार ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए सीआईसी के आदेश को निरस्त कर दिया। वे पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने में एक बार फिर विफल रहे, जिसका वादा वे अपनी हर घोषणा-पत्र में करते हैं।`

आरटीआई कार्यकर्ता शैलेश गांधी ने कहा, `यह एक घटिया निर्णय है। यह निश्चित तौर पर लोकतंत्र का क्षरण है। उन्हें कम से कम लोगों के साथ संवाद करना चाहिए, क्योंकि यह उनके मौलिक अधिकारों से जुड़ा मामला है।` एक अन्य कार्यकर्ता सुभाष कुमार अग्रवाल ने कहा, `जब कभी राजनीतिक दलों के आपसी हितों की बात सामने आती है, जो आम तौर पर जनता के हित में नहीं होती तो उनके बीच सहमति आम बात होती है।`

एक अन्य कार्यकर्ता ने कहा, `सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का कहना है कि उन्हें सीआईसी का निर्णय गैर-कानूनी लगता है और इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो उन्हें न्यायालय में याचिकाएं दायर करनी चाहिए।` (एजेंसी)

First Published: Friday, August 2, 2013, 19:11

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