Last Updated: Friday, August 23, 2013, 13:56
भाषा को किसी जाति और संप्रदाय से जोड़कर देखने वाले देश के नेताओं और राजनीतिक दलों को देश के ही अलग-अलग राज्यों में भाषा को बचाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे लोगों की चिंता कभी दिखाई नहीं देती। कभी हिंदी तो कभी संस्कृत, उर्दू, मराठी, बांग्ला के नाम पर अपना राजनीतिक वोट बैंक बनाने में लगे ये नेतागण जमीनी तौर पर कभी भी संजीदा दिखाई नहीं देते।