Last Updated: Monday, March 18, 2013, 19:24
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने किशोर शब्द की नये सिरे से परिभाषा के लिये दायर याचिका पर आज केन्द्र सरकार से जवाब तलब किया। जनता पार्टी अध्यक्ष डा सुब्रह्मण्यम स्वामी चाहते हैं कि किशोर के लिये 18 साल की उम्र सीमा निर्धारित करने की बजाय ऐसे अपराधियों का दोष तय करते समय उनकी ‘मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता’’ को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाये। याचिका की एक प्रति केन्द्र सरकार को दी जाये।’’ न्यायालय ने इसके साथ ही डा़ स्वामी की याचिका पहले से ही लंबित उस याचिका के साथ संलग्न करने का आदेश दिया जिसमें ‘कमोबेश’ यही सवाल उठाये गये हैं।
याचिका पर सुनवाई के दौरान डा स्वामी ने कहा कि किशोर न्याय :बच्चों की देखभाल और संरक्षण: कानून में 18 साल से कम आयु के व्यक्ति की किशोर के रूप में व्याख्या करते हुये उसे नाबालिक माना है। उनका कहना था कि यह इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र के बच्चों के अधिकारों के सम्मेलन (यूएनसीआरसी) और बीजिंग नियमों का उल्लंघन है।
यूएनसीआरसी और बीजिंग नियम कहते हैं कि ‘अपराध की जिम्मेदारी के लिये आयु’ का निर्धारिण अपराधी की ‘मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता’ को ध्यान में रखते हुये किया जायेगा। किशोर न्याय कानून कहता है कि एक व्यक्ति जो 18 साल का नहीं हुआ है उसे किशोर या बालक ही माना जायेगा।
डा स्वामी ने कहा कि संसद की यह मंशा थी कि यूएनसीआरसी और बीजिंग नियमों के अनुरूप किशोर न्याय कानून बनाया जाये। इसलिए न्यायालय से अनुरोध है कि केन्द्र सरकार का पक्ष सुनने के बाद, यदि आवश्यक हो, तो निर्दोष होने की उम्र से संबंधित धारा ’(के) में ‘मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता’’शब्दों को भी पढ़ा जा सकता है।
डा स्वामी ने अपनी याचिका में कहा कि किशोर के बारे में मौजूदा व्याख्या से पीड़ित के जीने का मौलिक अधिकार ‘निर्थक’ हो रहा है। जनता पार्टी अध्यक्ष ने कहा कि भारत ने यूएनसीआरसी, 1989 सम्मेलन की पुष्टि की है और किशोर न्याय प्रशासन के बारे में संयुक्त राष्ट्र न्यूनतम मानक नियमों को अपनाया है। बाद में किशोर न्याय कानून बनाया गया है।
याचिका में कहा गया है कि आपराधिक जिम्मेदारी की आयु के मामले में यह 18 साल निर्धारित की गयी है जो बीजिंग नियमों के खिलाफ है। बीजिंग नियम कहते हैं कि अपराधी की आपराधिक दोष निर्धारित करते समय उसकी ‘मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता’ को ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा कि किशोर शब्द पर फिर से विचार की आवश्यकता है।
याचिका के अनुसार किशोर न्याय कानून का मकसद कभी भी बलात्कार और हत्या जैसे घृणित अपराध करने वाले शातिर अपराधियों को पनाह देना नहीं रहा है। याचिका में कहा गया है कि एक अपराधी को निश्चित ही यह पता होता है कि वह क्या कर रहा है और इसलिए वह भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत भावनात्मक और बौद्धिक दृष्टि से एक बालिग की तरह मुकदमे का सामना करने के लिये परिपक्व होता है। (एजेंसी)
First Published: Monday, March 18, 2013, 19:24