Last Updated: Monday, February 4, 2013, 15:31
ज़ी न्यूज ब्यूरो/एजेंसीनई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय कानून में किशोर की परिभाषा पर विचार करने का फैसला किया है। किशोर न्याय अधिनियम से किशोर की परिभाषा को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर एटर्नी जनरल अदालत की मदद करेंगे । कोर्ट ने कहा कि जूवेनाइल की उम्र तय करते समय अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखा जाएगा
जनहित याचिका, जिसमें कहा गया है कि 18 साल से कम आयु की सभी अपरधियों को नाबालिग के तौर पर लेना उचित नहीं है क्योंकि यह अपराध की गंभीरता को नहीं दर्शाता, पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र से जवाब मांगा है। यह याचिका वकील कमल कुमार पांडे और सुकुमार ने दायर की है।
याचिकाकर्ता कमल कुमार पांडे ने बताया कि उन्होंने अपनी याचिका में जूवेनाइल की परिभाषा को दोबारा से परिभाषित करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनके तर्कों से सहमत होते हुए याचिका स्वीकार कर ली। उन्होंने बताया कि जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस पर सरकार से जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि इस कानून में प्रदत्त किशोर की परिभाषा कानून के प्रतिकूल है। वकील ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 82 और 83 में किशोर की परिभाषा में अधिक बेहतर वर्गीकरण है। धारा 82 के अनुसार सात साल से कम आयु के किसी बालक द्वारा किया गया कृत्य अपराध नहीं है जबकि धारा 83 के अनुसार सात साल से अधिक और 12 साल से कम आयु के ऐसे बच्चे द्वारा किया गया कोई भी कृत्य अपराध नहीं है जो किसी कृत्य को समझने या अपने आचरण के स्वरूप तथा परिणाम समझने के लिये परिपक्व नहीं हुआ है।
दिल्ली में पिछले साल 16 दिसंबर को 23 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार की घटना में शामिल छह आरोपियों में से एक के नाबालिग होने की बात सामने आने के बाद से किशोर न्याय कानून के तहत किशोर की आयु का मामला चर्चा में है। इस घृणित वारदात की शिकार लड़की की बाद में सिंगापुर के अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।
First Published: Monday, February 4, 2013, 15:05