क्यों की जाती है 84 कोस की परिक्रमा?

क्यों की जाती है 84 कोस की परिक्रमा?

ज़ी मीडिया ब्यूरो/प्रवीण कुमार
एक आस्था का नाम है 84 कोस परिक्रमा, एक भरोसे का नाम है 84 कोस यात्रा। खास बात यह है कि साधु-संत और आम आदमी दोनों की इस 84 कोस यात्रा में अटूट आस्था सदियों से चली आ रही है। संतों का तो यहां तक मानना है कि जिस प्रकार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से पुण्य की प्राप्ति है उसी तरह से 84 कोस की परिक्रमा करने से मुक्ति यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। 84 कोस की अयोध्या परिक्रमा जहां आम आदमी संतान की प्राप्ति के लिए करता है, वहीं साधु-संत-सन्यासी इस परिक्रमा को मोक्ष प्राप्ति का साधन मानते हैं।

अयोध्या से करीब 20 किमी दूर मौजूद मखौड़ा या मख भूमि से संतान प्राप्ति के लिए परिक्रमा शुरू करने वालों के लिए शर्त होती है कि वे भोजन तैयार करें और वहां मौजूद लोगों में बांटें, उन्हें खिलाये फिर खुद खाएं। 10 साल की उम्र से हर साल 84 कोस की परिक्रमा करने वाले महंत गयादास का कहना है कि समर्पण से की गई परिक्रमा के बाद संतान की प्राप्ति होती है। गयादास की उम्र लगभग 57 साल है। महंत ने इसी साल मई में परिक्रमा पूरी की है।

गयादास का कहना है कि बड़ी छावनी मठ यह परिक्रमा सैकड़ों वर्षो से करती आ रही है। चार पीढ़ी से परिक्रमा की उन्हें जानकारी है। कहते हैं कि राजा दशरथ ने त्रेता में यहीं संतान के लिए यज्ञ किया था। उसके बाद उनके चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न हुए। पंडित जयगोविंद शास्त्री बताते हैं कि बनारस के पंच कोसी की परिक्रमा करने से शिव लोक में स्थान प्राप्त होता है। गोवर्धन के सप्त कोसी की परिक्रमा से गोलोक और अयोध्या के 84 कोस की परिक्रमा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अयोध्या की परिक्रमा 84 किलोमीटर की इसलिए है क्योंकि भगवान श्री राम कौशल देश के राजा थे। कौशल देश की सीमा 84 कोस में फैली थी और अयोध्या इसकी राजधानी थी। भगवान राम के जीवन काल में ही संतों ने 84 कोस की परिक्रमा की शुरुआत की थी। वैसे तो नियम है कि चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर बैसाख नवमी तक यह परिक्रमा चलती है। लेकिन श्रद्धालु भक्त कभी भी कौशल राज्य की पवित्र भूमि की परिक्रमा कर सकते हैं।

First Published: Saturday, August 24, 2013, 12:49

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