Last Updated: Monday, July 23, 2012, 17:38
कानपुर : लगभग 98 साल की उम्र में भी कैप्टन लक्ष्मी सहगल को गरीबों का इलाज करना और उनकी सेवा करने की इतनी अधिक चिंता रहती थी कि दिल का दौरा पड़ने (19 जुलाई सुबह आठ बजे) से करीब 15 घंटे पहले भी आर्यनगर के क्लीनिक पर गरीब मरीजों की देखरेख कर रही थी।
यह कहना है उनकी बेटी और माकपा नेता तथा पूर्व सांसद सुभाषिनी अली का। कैप्टन सहगल के साथ अंतिम समय तक रही अली का कहना है कि उनको मरीजों की सेवा करने का एक अजब सा जुनून था। वह कभी इस बात का ख्याल नहीं करती थीं कि उनके मरीज के पास इलाज के लिये पैसा है या नहीं। बस वह इलाज शुरू कर देती थीं, तभी एक बार उनके पास आने वाली महिला रोगी उनकी प्रशंसक हो जाती थीं और हमेशा उनसे ही अपना इलाज कराने आती थीं और वह भी अपने मरीजों के लिये हमेशा तैयार रहती थीं।
सुभाषिनी ने संवाददाताओं से कहा कि वह कम्युनिस्ट विचार धारा से जरूर जुड़ी थी और हमेशा साम्यवाद की बात करती थी, लेकिन वह कभी भी कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से राज्य सभा की सांसद नहीं चुनी गयी, हालांकि वह कम्युनिस्ट आन्दोलन से लगातार जुड़ी रहीं। वह कभी राज्यसभा की सांसद भी नहीं रही।
आईएनए में उनकी सहयोगी और उनकी दोस्त करीब 92 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी मानवती आर्य ने संवाददाताओं से कहा कि वह देशभक्ति का एक जीता जागता नमूना थीं और हम सबकी प्रेरणा और मार्गदर्शक थीं। वह साम्यवाद की समर्थक थीं और देश में साम्यवाद चाहती थीं। उनका सपना देश में साम्यवाद लाना था और सभी को समान अधिकार दिलाना था।
नम आंखों से स्वतंत्रता सेनानी मानवती आर्य ने कहा कि कैप्टन सहगल को सच्ची श्रृद्धांजलि आम आदमी में देश प्रेम की भावना को बढ़ाना और देश में साम्यवाद की स्थापना करना है। फिल्म निर्देशक और लक्ष्मी सहगल के नाती शाद अली ने कहा कि वह उन्हें देश की आजादी की कहानियां सुनाया करती थी और अपने देश से प्रेम करने का पाठ पढ़ाती थी।
1952 से कानपुर में बतौर डॉक्टर प्रैक्टिस कर रही कैप्टन डा. लक्ष्मी सहगल का पहला प्यार उनका अपना पेशा था। वह अपने नाती (सुभाषिनी के बेटे) शाद की हर फिल्म सिनेमा हॉल में जाकर देखती थी फिर वह चाहे ‘बंटी और बबली’ हो या फिर ‘चोर मचायें शोर’। कैप्टन लक्ष्मी सहगल का शादी से पहले नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था। उनका जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास में हुआ था। उनके पिता डॉ. एस स्वामीनाथन एक मशहूर वकील थे और मद्रास उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। उनकी माता अम्मू स्वामीनाथन एक समाजसेवी थी और आजादी के आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी।
कैप्टन डॉ. सहगल को शुरू से ही इलाज के लिये बीमार गरीबों की परेशानी बैचेन कर देती थी और इसी के मद्देनजर उन्होंने गरीबो की सेवा के लिये डाक्टरी के पेश को चुना और 1938 में मद्रास मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। एक साल बाद उन्होंने महिला रोगों की चिकित्सा में डिप्लोमा भी किया। 1940 में वह अपने सपने को पूरा करने के लिये सिंगापुर चली गयी, जहां उन्होंने भारत से आने वाले मजदूरों (माइग्रेन्टस लेबर) के लिये क्लीनिक खोला।
देश की आजादी की मशाल लिये नेता जी सुभाष चन्द्र बोस दो जुलाई 1943 को सिंगापुर गये। उन्होंने वहां आजादी की लड़ाई के लिये एक महिला रेजीमेंट बनाने की बात कही और रानी लक्ष्मी बाई रेजीमेंट गठित की। इसमें लक्ष्मी सहगल कर्नल की हैसियत से शामिल हुई। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और उसके बाद वह कानपुर में ही रहने लगी और यहीं मेडिकल प्रैक्टिस करने लगी। उनकी पुत्री माकपा नेता सुभाषिनी अली के अनुसार वह दो बहनें है और उनकी एक बहन अनीसा पुरी है।
उन्हें 1998 में पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2002 में वामपंथी पार्टियों की तरफ से वह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव मैदान में भी उतरी। इस चुनाव में एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति चुने गये थे।
इस दौरान उन्होंने कानपुर में मरीजों को देखना जारी रखा और आर्यनगर स्थ्ति क्लीनिक में मरीजों का भारी जमावड़ा रहता था। आज उनके निधन से कानपुर के लोगों सहित पूरे देश की आंखे नम है, क्योंकि वह हमेशा समाज और मरीजों की सेवा में लगी रहती थी।
मैकराबर्ट अस्पताल में आज जहां उनका शव रखा हुआ था। वहां उनके अंतिम दर्शनों के लिये लोगों की भारी भीड़ लगी हुई थी और उनके कम्युनिस्ट साथी लाल सलाम के नारे लगा रहे थे। (एजेंसी)
First Published: Monday, July 23, 2012, 17:38