Last Updated: Wednesday, July 24, 2013, 10:47

नई दिल्ली : प्रति व्यक्ति खपत के आधार पर देश की आबादी में गरीबों का अनुपात 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत पर आ गया। यह 2004-05 में 37.2 प्रतिशत पर था। योजना आयोग ने एक प्रकार से अपने पूर्व के विवादास्पद गरीबी गणना के तरीके के आधार पर ही यह आंकड़ा निकाला है।
योजना आयोग के अनुसार, तेंदुलकर फार्मूला के तहत 2011-12 में ग्रामीण इलाकों में 816 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह से कम उपभोग करने वाला व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे था। शहरों में राष्ट्रीय गरीबी की रेखा का पैमाना 1,000 रुपये प्रति प्रति व्यक्ति प्रति माह का उपभोग है।
इसका मतलब है कि शहरों में प्रतिदिन वस्तु और सेवा पर 33.33 रुपये से अधिक खर्च करने वाला और ग्रामीण इलाकों में 27.20 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। इससे पहले आयोग ने कहा था कि शहरी इलाकों में प्रतिदिन 32 रुपये से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। उसकी इस गणना से काफी विवाद पैदा हुआ था। योजना आयोग ने आज जो गरीबी का आंकड़ा दिया है वह उसी गणना के तरीके पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि पिछले सात साल में देश में गरीबों की संख्या घटी है।
आयोग ने कहा कि पांच व्यक्तियों के परिवार में खपत खर्च के हिसाब से अखिल भारतीय गरीबी की रेखा ग्रामीण इलाकों के लिए 4,080 रुपये मासिक और शहरों में 5,000 रुपये मासिक होगी। हालांकि, राज्य दर राज्य हिसाब से गरीबी की रेखा भिन्न होगी। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, July 24, 2013, 10:47