Last Updated: Friday, March 30, 2012, 17:36
यह अजीब विडंबना है कि महंगाई जहां सुरसा की तरह मुंह फैलाए दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, वहीं गरीबी के मानक को घटाया जा रहा है। जाहिर सी बात है कि इन हालातों में गरीब अपनी गरीबी को कहां और कैसे बयां करें, खासकर उस हालात में जब गरीबी के ऐसे ‘निराशाजनक एवं अन्यायपूर्ण’ मानक तय होते हैं।