Last Updated: Wednesday, January 25, 2012, 08:55
ज़ी न्यूज ब्यूरो नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नरेंद्र मोदी सरकार को बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति से गुजरात में साल 2003 से 2006 के दौरान हुए सभी मुठभेड़ों में लोगों की हत्याओं की जांच करने को कहा है। न्यायालय ने निगरानी प्राधिकार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एमबी शाह से कहा कि वह तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपें। है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले निगरानी प्राधिकरण से गुजरात में वर्ष 2002 से 2006 के बीच हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों में हत्याओं के मामलों की पड़ताल करने और तीन महीने में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। गुजरात सरकार ने पिछले साल अप्रैल में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एमएस शाह को उक्त अवधि में कथित फर्जी मुठभेड़ों में हत्याओं की जांच पर नजर रखने को कहा था।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद ने कहा कि एक निगरानी प्राधिकरण बनाया गया और इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश उसके अध्यक्ष हैं, इस तथ्य को संज्ञान में लेते हुए हम चाहेंगे कि अध्यक्ष दोनों रिट याचिकाओं में अंकित कथित फर्जी मुठभेड़ के सभी मामलों को देखें। पीठ ने वर्ष 2002 से 2006 के बीच गुजरात में हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि जांच पूरी तरह हो ताकि प्रत्येक मामले में सचाई सामने आए। इन याचिकाओं में एक तरह से संकेत दिया गया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कथित रूप से आतंकवादियों के तौर पर निशाना बनाया गया।
पीठ ने कहा कि निगरानी प्राधिकरण के अध्यक्ष के पास एक स्वतंत्र टीम गठित करने की आजादी होगी, जिसमें गुजरात विशेष कार्य बल या बाहर से अधिकारी हो सकते हैं। अदालत ने कहा कि निगरानी इकाई के अध्यक्ष मुठभेड़ में मौत के किसी भी मामले में पुलिस के पूर्ववर्ती रिकार्ड या मानवाधिकार संस्थाओं के रिकार्ड मंगा सकते हैं,जिनका जिक्र रिट याचिकाओं में किया गया है।
हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि निगरानी इकाई उन मामलों को नहीं देखेगी जिनकी जांच अन्य एजेंसियां शीर्ष अदालत के आदेशों पर कर रहीं हैं। पीठ ने यह भी कहा कि निगरानी प्राधिकरण के अध्यक्ष चाहें तो मामले में याचिकाकर्ताओं के या मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों का पक्ष सुन सकते हैं।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस मुद्दे पर याचिकाएं काफी सालों से लंबित हैं लेकिन आज तक कोई अहम फैसला नहीं सुनाया गया है और एसटीएफ की नियुक्ति और निगरानी प्राधिकरण की स्थापना जैसे घटनाक्रम मामले के लंबित रहने के दौरान हुए।
शीर्ष अदालत वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज और गीतकार जावेद अख्तर की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। वर्गीज ने गुजरात में पुलिस द्वारा इस अवधि में कथित फर्जी मुठभेड़ों में 21 लोगों की मौत के मामले में जांच की मांग की थी। जावेद अख्तर ने प्रदेश में कथित फर्जी मुठभेड़ों में विशेष जांच दल द्वारा पड़ताल कराने की मांग की थी। अख्तर ने दावा किया कि निर्दोष लोगों, खासतौर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को आतंकवादियों के तौर पर निशाना बनाया जा रहा है।
उन्होंने अपनी याचिका में अक्तूबर 2002 में कथित अपराधी समीर खान की हत्या के मामले में अखबारों की खबरों तथा एक पत्रिका के स्टिंग आपरेशन का हवाला दिया। खान पुलिस हिरासत में था और 21, 22 अक्टूबर, 2002 की दरमियानी रात को उसे मार दिया गया। उसने कथित तौर पर एक पुलिसकर्मी की रिवाल्वर छीन ली।
First Published: Thursday, January 26, 2012, 15:14