Last Updated: Friday, September 14, 2012, 10:13
इंदौर : कोई साढ़े नौ दशक पहले सार्वजनिक मंच से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कह गए वे ऐतिहासिक शब्द मानो आज भी हिन्दी पट्टी के इस प्रमुख शहर की फिजा में तैर रहे हैं। इन शब्दों के जरिये बापू ने हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा बनाये जाने का मार्मिक आह्वान किया था। उस वक्त इसकी प्रतिध्वनि आजादी पाने के लिये अंग्रेजों से लोहा ले रहे देश में दूर.दूर तक सुनायी दी थी। इससे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आग और भभक उठी थी।
मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति के प्रचार मंत्री अरविंद ओझा ने बताया कि ‘महात्मा गांधी ने 29 मार्च 1918 को यहां आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। इस दौरान उन्होंने अपने उद्बोधन में पहली बार आह्वान यह किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। ओझा ने कहा कि जब बापू ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने की अपील की, तब देश गुलामी के बंधनों से आजाद होने के लिये संघर्ष कर रहा था। उस दौर में इस मार्मिक अपील ने देशवासियों के दिल को छू लिया था और उनके भीतर मातृभूमि की स्वतंत्रता की साझी भावना बलवती हो गई थी।
उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी ने आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान इंदौर से पांच ‘हिन्दी दूतों’ को देश के उन राज्यों में भेजा था, जहां उस वक्त इस भाषा का ज्यादा प्रचलन नहीं था। ‘हिन्दी दूतों’ में बापू के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी शामिल थे। ओझा ने बताया कि हिन्दी के प्रचार.प्रसार की इस अनोखी और ऐतिहासिक मुहिम के तहत ‘हिन्दी दूतों’ को सबसे पहले तत्कालीन मद्रास प्रांत के लिये रवाना किया गया था। (एजेंसी)
First Published: Friday, September 14, 2012, 10:13