तीन साल में शिक्षा के अधिकार पर 1.13 लाख करोड़ रुपए खर्च

तीन साल में शिक्षा के अधिकार पर 1.13 लाख करोड़ रुपए खर्च

नई दिल्ली : छह से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू करने में पिछले तीन वर्ष के दौरान पूरे देश में कुल 1.13 लाख करोड़ रुपये खर्च किये गए हैं। सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मिली है।

आरटीई पर देशभर में कुल खर्च एवं लाभार्थियों की संख्या पर गौर करें तब 2010-11 में यह प्रति छात्र 2384 रुपये आता है जो 2011-12 में बढ़कर प्रति छात्र 2861 रुपये हो गया। अभी शिक्षा का अधिकार पर अमल के लिए होने वाले खर्च की हिस्सेदारी केंद्र और राज्य के बीच 68 : 32 के अनुपात में होती है। पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए यह अनुपात 90 : 10 है। सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2010-11 में आरटीई के मद में देशभर में 37.24 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराये गए जिसमें से 31.35 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए। इस अवधि में आरटीई के लाभार्थियों की संख्या 13 करोड़ 89 हजार 841 थी।

2011-12 में आरटीई के मद में देशभर में 42.43 हजार करोड़ रूपये उपलब्ध कराये गए जिसमें से 37.83 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए। इस अवधि में आरटीई के लाभार्थियों की संख्या 12 करोड़ 93 लाख 95 हजार 848 थी। आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2012-13 में आरटीई के मद में देशभर में 47.96 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराये गए जिसमें से 44.08 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। मुरादाबाद स्थित आरटीआई कार्यकर्ता सलीम बेग ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद अब तक देश में इस पर हुए कुल खर्च, स्वीकृत बजट, लाभार्थियों की संख्या आदि का ब्यौरा मांगा था।

मंत्रालय ने 2010-14 के बीच शिक्षा के अधिकार पर अमल पर 2.3 लाख करोड़ रूपये की जरूरत का अनुमान व्यक्त किया था हालांकि उसे अपेक्षित बजट नहीं मिला है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़ी स्थायी समिति की हाल की रिपोर्ट में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) में छात्र एवं शिक्षकों के बीच 27 : 1 का अनुपात जरूरी बताया गया है और ऐसे में बड़ी संख्या में शिक्षकों की कमी गंभीर चिंता व्यक्त की गई है।

संसदीय समिति रिपोर्ट में कहा गया है कि, अगर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लक्ष्य को हासिल करना है तो विभाग, राज्य सरकारों के साथ समन्वय स्थापित कर इतनी बड़ी संख्या में रिक्त पदों के कारणों का पता लगाये और इसे भरने की दिशा में पहल करे। गौरतलब है कि देशभर में सरकार, स्थानीय निकाय एवं सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों के 45 लाख पद हैं। शिक्षा के अधिकार कानून के तहज 2012.13 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत 19.82 लाख पद मंजूर किये गए और 31 दिसंबर 2012 तक 12.86 लाख पद भरे गए। अभी 6 . 96 लाख पद रिक्त है जिसमें 3 लाख पद प्राथमिक शिक्षा स्तर पर हैं।

समिति ने कहा कि जरूरी शिक्षकों और नियुक्त शिक्षकों के बीच कोई कमी नहीं होनी चाहिए। लक्ष्य के अनुरूप शिक्षकों की भर्ती के लिए ‘मिशन’ के तहत काम किया जाए और इस कार्य में सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ समन्वय कर इसकी समीक्षा की जाए। छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून एक अप्रैल 2010 से लागू हो गया था जिसके तहत सभी राज्यों के लिए इसे तीन वर्ष में अधिसूचित करना अनिवार्य बनाया दिया गया था। 31 मार्च 2013 को इसकी मियाद समाप्त होने पर देश के सभी राज्यों ने इस कानून को अधिसूचित कर दिया है।

कुशल शिक्षकों की भारी कमी आरटीई के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। देश के विभिन्न राज्यों में 6.96 लाख शिक्षकों के पद रिक्त हैं जिसमें उत्तरप्रदेश में 1.59 लाख, बिहार में 2.05 लाख, पश्चिम बंगाल में 61,623, झारखंड में 38422, मध्यप्रदेश में 79110, महाराष्ट्र में 26704, गुजरात में 27258 शिक्षक पद रिक्त हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने पाया है कि आरटीई लागू होने के बाद यह व्यवस्था बनायी गई है कि केवल उन लोगों की शिक्षकों के रूप में नियुक्ति की जायेगी जो शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण होते हैं। समिति को बताया गया कि सीबीएसई ने तीन बार सीटीईटी परीक्षा ली और 25 राज्यों ने भी टीईटी आयोजित की है।

समिति ने कहा कि उसे यह जानकार काफी आश्चर्य हुआ है कि इसके परिणाम हतोत्साहित करने वाले है। रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षक पात्रता परीक्षा में जून 2011 में परीक्षा में बैठने वालों में केवल 7.59 प्रतिशत पास हुए जबकि जनवरी 2012 में 6.43 प्रतिशत और नवंबर 2012 में 0.45 प्रतिशत उत्तीर्ण हुए। समिति ने कहा है कि यह काफी परेशान करने वाला है कि टीईटी के तीसरे दौर में पास करने वाले परीक्षार्थियों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई। यह समझ से परे है कि प्रथम पत्र में उपस्थित नहीं होने वालों को किस प्रकार से दूसरे पत्र में बैठने की अनुमति दी जा सकती है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, September 8, 2013, 12:31

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